अब पति नहीं छिपा पाएंगे सैलरी, पत्नी को कमाई जानने का पूरा हक, कोर्ट ने दे दिया ये आदेश
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अब पति नहीं छिपा पाएंगे सैलरी, पत्नी को कमाई जानने का पूरा हक, कोर्ट ने दे दिया ये आदेश

Delhi High Court: पति अक्सर भरण-पोषण के दायित्वों से बचने के लिए अपनी वास्तविक आय छिपाते हैं. अब इसी तरह के एक मामले पर कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है. दिल्ली हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के पिछली आदेश को रद्द करते हुए पत्नी को अपने पति की रियल इनकम जानने के लिए बैंक अधिकारियों समेत गवाहों को बुलाने की इजाजत दी है.

 

अब पति नहीं छिपा पाएंगे सैलरी, पत्नी को कमाई जानने का पूरा हक, कोर्ट ने दे दिया ये आदेश

Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा है कि पत्नी अपने पति की रियल इनकम जानने के लिए बैंक अधिकारियों समेत गवाहों को बुला सकती है. जस्टिस रविंदर डुडेजा ने 11 पन्नों के विस्तृत फैसले में सीआरपीसी की धारा 311 के तहत पत्नी की याचिका स्वीकार कर ली और फैमिली कोर्ट के पहले के फैसले को पलट दिया, जिसमें उसकी याचिका खारिज कर दी गई थी.

जस्टिस ने कहा कि, 'वैवाहिक मुकदमेबाजी, खासकर जहां वित्तीय निर्भरता और छिपाने का आरोप लगाया जाता है. वहां पर एक संवेदनशील और व्यावहारिक नजरिए की जरूरत है.' जस्टिस ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा मांगे गए दस्तावेज और गवाह सब्सिडियरी या अप्रासंगिक नहीं हैं, बल्कि वे भरण-पोषण के निर्धारण को सीधे प्रभावित करते हैं, जो उसके जीवन-यापन से संबंधित मामला है.' अदालत ने कहा, 'परिवार न्यायालय को हद से ज्यादा तकनीकी नजरिया अपनाने के बजाय, सीआरपीसी की धारा 311 के तहत अपनी ताकतों की अधिक उद्देश्यपूर्ण व्याख्या अपनानी चाहिए थी.' यह देखते हुए कि पति अक्सर भरण-पोषण के दायित्वों से बचने के लिए अपनी वास्तविक इनकम को छिपाते हैं, अदालत ने कहा, 'यह असामान्य नहीं है कि जब पति और पत्नी के बीच वैवाहिक मतभेद होते हैं, तो कई बार पति अपनी वास्तविक आय को दबाते हैं और अपनी पत्नियों को वैध बकाया भुगतान से बचने के लिए अपनी संपत्ति को स्थानांतरित करने का सहारा लेते हैं.'

याचिकाकर्ता पत्नी और प्रतिवादी पति की शादी 16 फरवरी, 2012 को हुई थी. पत्नी ने आरोप लगाया था कि शादी के बाद दहेज की मांग पूरी करने के लिए पति और उसके परिवार द्वारा उसके साथ घरेलू हिंसा की. यह भी आरोप लगाया गया था कि प्रतिवादी और उसके परिवार ने ससुराल में ताला लगा दिया और पत्नी को उसका ज्वैलरी या नकदी लौटाए बिना ही छोड़ दिया.

पत्नी ने पति की इनकम उजागर करने के लिए शक्ति नगर में मौजूद प्रोपर्टी के दस्तावेज़ को प्रमाणित करने की मांग की थी. आरोप लगाया गया था कि पति ने अपनी प्रोपर्टी छिपाने के लिए नोएडा स्थित अपनी प्रोपर्टी की बिक्री से मिली राशि अपनी मां को ट्र्रान्सफर कर दी थी. यह भी आरोप लगाया गया था कि पति ने अपनी वास्तविक प्रोपर्टी  का खुलासा करने से बचने के लिए जानबूझकर अपनी प्रोपर्टी को छुपाया था, जिसमें 2014 में चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर के रूप में उनकी नियुक्ति और कई संपत्तियों की मिलकियत शामिल है.

पति ने कोर्ट में ये तर्क दिया 

दूसरी तरफ, पति ने कोर्ट में तर्क दिया कि गवाहों को बुलाने की मांग वाली याचिका याचिकाकर्ता के मामले से संबंधित नहीं थी. पति ने आगे तर्क दिया कि कार्यवाही के दौरान उसके द्वारा अपनाई गई देरी की कई तरकीबों का हवाला दिया. उसने आरोप लगाया कि पत्नी ने भरण-पोषण याचिका को पटरी से उतारने के इरादे से कई आवेदन दायर किए. हालांकि, जस्टिस ने कहा कि फैमिली कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 311 के तहत याचिकाकर्ता के आवेदन को खारिज करने में गलती की है.

अदालत ने आगे कहा, 'सीआरपीसी की धारा 311 अदालत को कार्यवाही के किसी भी फेज में गवाहों को बुलाने, वापस बुलाने या उनसे दोबारा पूछताछ करने का व्यापक अधिकार देती है. इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि सच्चाई सामने आए और इंसाफ मिले. हालांकि, साथ ही इस ताकत का इस्तेमाल सावधानी, निष्पक्षता और न्यायिक दिमाग के साथ किया जाना चाहिए ताकि यह देरी या मिसयूज का साधन न बने.' अदालत ने कहा, 'याचिकाकर्ता के मुताबिक, 05.08.2013 को नोएडा स्थित फ्लैट की बिक्री से मिली राशि में से प्रतिवादी ने 5.25 लाख रुपये अपनी मां के एक्सिस बैंक खाते में ट्रान्सफर कर दिए. उसी दिन प्रतिवादी के परिवार के सदस्यों के अलग-अलग बैंक खातों में भी भारी मात्रा में नकदी जमा की गई.'

'याचिकाकर्ता का इरादा फ्लैट की बिक्री से मिली राशि का पता लगाना है'

हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ऐसे रिकॉर्ड्स के जरि से यह प्रदर्शित करना चाहता है कि प्रतिवादी ने भरण-पोषण भुगतान के अपने दायित्व से बचने के लिए जानबूझकर नोएडा फ्लैट की बिक्री से प्राप्त राशि को परिवार के सदस्यों के नाम पर ट्रान्सफर कर दिया. कोर्ट ने कहा कि अपने परिवार के सदस्यों के बैंक स्टेटमेंट मंगाने की मांग करके याचिकाकर्ता का इरादा फ्लैट की बिक्री से मिली राशि का पता लगाना था.

कोर्ट ने दिया ये निर्देश

कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को यह साबित करने का अवसर न देने से भरण-पोषण कार्यवाही का मकसद ही विफल हो जाएगा. उसके मुताबिक, हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और याचिकाकर्ता पत्नी को संबंधित रिकॉर्ड के साथ संबंधित गवाहों को बुलाने की इजाजत देने का निर्देश दिया.

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मोहम्मद अमजद शोएब

मोहम्मद अमजद शोएब पूर्णिया से निकलकर दिल्ली में पत्रकारिता कर रहे. जर्नलिज्म में पोस्ट ग्रेजुएट हैं. अमजद को क्रिकेट से बेइंतहा मोहब्बत है. स्पोर्ट्स उनकी ज़िन्दगी है. इसी अटूट रिश्ते ने उन्हें पत्र...और पढ़ें

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