बतख नहीं सूअर ज्यादा खाने लगे चीनी लोग.. इधर भारत में दिख गया असर, शटलकॉक के दाम हुए तिगुने
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बतख नहीं सूअर ज्यादा खाने लगे चीनी लोग.. इधर भारत में दिख गया असर, शटलकॉक के दाम हुए तिगुने

Market Crisis: चीन के लोग अब बतख की बजाय सूअर खा रहे हैं. ऐसे में बतखों का प्रोडक्शन ही कम हो गया. बतख और हंस के पंखों से बनने वाले शटलकॉक की कीमतें पिछले डेढ़ साल में कई गुना बढ़ गई हैं.

बतख नहीं सूअर ज्यादा खाने लगे चीनी लोग.. इधर भारत में दिख गया असर, शटलकॉक के दाम हुए तिगुने

Shuttlecock Price Hike: चाइनीज लोगों के खान पान को लेकर हमेशा ही चर्चा रहती है. तमाम चीजों में से एक लंबे समय से बतख का मांस भी वहां लोगों की पसंदीदा डिश रही है. लेकिन हाल के सालों में वहां के लोगों का रुझान तेजी से सूअर के मांस की ओर बढ़ा है. इस बदलाव का असर केवल चीन की रसोई तक ही सीमित नहीं है. बल्कि भारत में बैडमिंटन खेल तक पहुंच गया है. बतख और हंस के पंखों से बनने वाले शटलकॉक की कीमतें पिछले डेढ़ साल में कई गुना बढ़ गई हैं. जिससे देशभर की बैडमिंटन अकादमियां परेशान हैं.

कच्चे माल की मांग और बढ़ा दी..
असल में इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया कि बेंगलुरु के एक कोच ने हाल ही में उच्च गुणवत्ता वाले AS 2 शटलकॉक का ऑर्डर ₹2,700 में दिया. जबकि 2024 के अंत में यही शटलकॉक ₹1200 में मिल रहे थे. उनका अनुमान है कि साल के अंत तक कीमत ₹3,000 तक पहुंच सकती है. चीन में बतख और हंस की संख्या घटने से पंखों की कमी हो गई. यही कारण है कि शटलकॉक के निर्माण पर असर पड़ा है. भारत चीन और इंडोनेशिया जैसे देशों में बैडमिंटन की बढ़ती लोकप्रियता ने इस कच्चे माल की मांग और बढ़ा दी है.

मांस के लिए कम पक्षी पाले जा रहे..
इतना ही नहीं रिपोर्ट के मुताबिक भारत के राष्ट्रीय कोच पुलेला गोपीचंद का कहना है कि यह केवल कीमत बढ़ने का मामला नहीं बल्कि खेल के भविष्य से जुड़ी गंभीर समस्या है. उच्च स्तर के शटलकॉक में हंस के पंख इस्तेमाल होते हैं क्योंकि वे ज्यादा मजबूत और टिकाऊ होते हैं. चीन की फैक्ट्रियों में यह पंख मांस उपयोग के बाद ही निकाले जाते हैं. लेकिन अब वहां मांस के लिए कम पक्षी पाले जा रहे हैं जिससे उत्पादन प्रभावित हुआ है.

कीमतों में तेज उछाल आया..

रिपोर्ट में एक और केस स्टडी की गई है. पिछले कुछ महीनों में कीमतों में तेज उछाल आया है. चेन्नई के एक कोच ने बताया कि मध्य स्तर के शटलकॉक की कीमत ₹1200 से बढ़कर ₹1700 हो गई और फिर अचानक ₹2250 से ₹2700 पर पहुंच गई. कई जगह तो स्टॉक भी नहीं मिल रहा. हालत यह है कि कई अकादमियों के मासिक खर्च में ₹50,000 तक की बढ़ोतरी हो गई है.

कोचों और खिलाड़ियों का मानना है कि अगर यही हाल रहा तो बैडमिंटन आम लोगों की पहुंच से बाहर हो सकता है. मुंबई के एक कोच का कहना है कि भारत सरकार को आयात शुल्क घटाकर और सब्सिडी देकर इस संकट से निपटना चाहिए. इससे शटलकॉक की कीमतें नियंत्रण में रहें और खिलाड़ी बिना आर्थिक दबाव के खेल जारी रख सकें.

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गौरव पांडेय

देश-दुनिया-खेल की खबरों के विद्यार्थी हैं. राजनीतिक रुझानों पर ध्यान रखते हैं. तेज ब्रेकिंग करते हैं. विश्लेषण करने में एक्सपर्ट हैं.

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