DNA Analysis: कल हमने स्ट्रे डॉग्स को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद शुरू हुए विवाद का विश्लेषण किया था. हमने आपको दिखाया था कि कैसे ये विवाद Mass वर्सेज Class का बन चुका है. कुत्तों के अधिकारों को लेकर मशाल मार्च कर रहे हैं. उनकी मशालों में तेल कहां से आता है. डॉग एक्टिविज्म के नाम पर देश में कितना बड़ा बिजनेस चल रहा है.
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DNA Analysis: DNA मित्रों, कल हमने स्ट्रे डॉग्स को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद शुरू हुए विवाद का विश्लेषण किया था. हमने आपको दिखाया था कि कैसे ये विवाद Mass वर्सेज Class का बन चुका है, कैसे एक खास तबका अदालत के फैसले का विरोध सड़कों पर उतरकर कर रहा है और आज हम डॉग लवर्स की हिंसा का वीडियो विश्लेषण करेंगे. आज हम आपको ये भी बताएंगे कि जो लोग कुत्तों के अधिकारों को लेकर मशाल मार्च कर रहे हैं. उनकी मशालों में तेल कहां से आता है. डॉग एक्टिविज्म के नाम पर देश में कितना बड़ा बिजनेस चल रहा है. आज हम उसका पूरा लेखा जोखा आपको दिखाएंगे लेकिन सबसे पहले आपको आज के दो बड़े अपडेट्स बता देते हैं.
आज कुछ वकीलों की ओर से सुप्रीम कोर्ट की अलग अलग बेंच के 'विरोधाभासी आदेश' होने की दलील देते हुए CJI से दखल देने की मांग की गई थी. जिसके बाद CJI बीआर गवई ने इस मामले की सुनवाई के लिए तीन जजों की बेंच का गठन कर दिया है. जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एन वी अंजारिया की नई बेंच कल इस मामले पर सुनवाई करेगी अब इस मामले पर दूसरा अपडेट ये है कि सोशल मीडिया पर डॉग लवर्स की हिंसा का एक वीडियो वायरल है. जिसमें सुप्रीम कोर्ट के सामने ही डॉग लवर्स एक वकील पर हमला करते हुए दिखाई दे रहे हैं. ये कथित डॉग लवर्स इस मुद्दे को लेकर किस तरह एक्टिव हैं इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा लीजिए की एक तरफ तो ये सुप्रीम कोर्ट के अंदर बार बार इस मुद्दे को उठा रहे हैं और इधर कोर्ट के बाहर ये हाथापाई पर उतर आए हैं.
| 'डॉग लवर्स' की हिंसा का 'वीडियो विश्लेषण'... क्या 'डॉग लवर्स'..अदालत पर दबाव बना रहे?
डॉग लवर्स अब प्रेशर वाली रणनीति अपना रहे हैं? @RahulSinhaTV pic.twitter.com/5HKXUxaJT0
— Zee News (@ZeeNews) August 13, 2025
सुप्रीम कोर्ट के अंदर दलील पर दलील और बाहर वकीलों से साथ हाथापाई इसे क्या माना जाए. दरअसल कथित डॉग लवर्स प्रेशर वाली रणनीति पर काम कर रहे हैं. डॉग लवर्स अदालत पर प्रेशर बनाने की कोशिश कर रहे हैं. सोशल मीडिया पर कैंपेन के जरिये भी प्रेशर बनाया जा रहा है और तो और अब ये मीडिया पर भी प्रेशर डाल रहे हैं. आज ये कथित डॉग लवर्स जी मीडिया के गेट के सामने पहुंच गए. करीब दो दर्जन एनिमल एक्टिविस्ट हाथों मे तख्तियां लिए नारेबाजी करने हमारे दफ्तर के मेन गेट के आगे विरोध प्रदर्शन भी किया गया. ऐसा प्रदर्शन अधिकारों की आवाज है या मीडिया पर दबाव बनाने की कोशिश इसका फैसला हम अपने दर्शकों पर छोड़ते हैं.
ऐसी तस्वीरों के सामने आने के बाद सवाल उठता है कि जब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से मास यानी आम आदमी खुश है. वो तबका जो स्ट्रे डॉग्स के आंतक से परेशान है जब वो इस फैसले का समर्थन कर रहा है तो फिर इसका विरोध करने वाले लोग क्यों हावी हो रहे हैं. आगे बढ़ने से पहले आपको ये याद दिला दें की कल हमने एक पोल किया था. हमने आपसे पूछा था की क्या डॉग्स को शेल्टर होम्स में भेजने के इस को देश के हर शहर में लागू कर देना चाहिए 89% लोगों ने इसका समर्थन किया था बल्कि सिर्फ 11% लोग इसके विरोध में थे.
लेकिन कुत्तों को शेल्टर होम्स में भेजने वाली इस बहस में सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक यही 11% लोग कैसे डॉमिनेट कर रहे हैं तो इसका जवाब है एनिमल एक्टिविज्म की इकॉनॉमी. जो लाखों-करोड़ों रुपये की है. एनिमल राइट्स के नाम पर इस देश में जो अलग अर्थव्यवस्था चलती है अब उसका लेखा-जोखा देखिये. एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया ने साल 2024 में जानवरों से संबंधित NGOs को 4 करोड़ से ज्यादा की फंडिंग की है. CSR फंडिंग यानी अलग अलग कंपनियां दान के रूप में सालाना 140 करोड़ रुपये इन NGOs को देती हैं. एक अनुमान के मुताबिक भारत में कुत्तों से संबंधित NGOs को सालाना 500 से 600 करोड़ रुपये डोनेशन की शक्ल में मिलते हैं.
इसके अलावा आज के जमाने में सोशल मीडिया पर कई ऐसे ग्रुप्स और अकाउंट्स हैं जो एनिमल वेलफेयर के नाम पर क्राउड फंडिंग करते हैं. इनमें से कई ग्रुप्स तो वाकई जानवरों की सेवा में जुटे रहते हैं लेकिन कईयों के खाते का कोई लेखा-जोखा नहीं, क्या यही लोग आज सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ सड़कों पर उतरे हैं. क्या यही इकॉनॉमी इस पूरे विरोध प्रदर्शन को फंड कर रही है. क्या इन लोगों को ये डर सता रहा है कि अगर कुत्तों को शेल्टर होम्स में शिफ्ट कर दिया जाएगा तो कुत्तों की सेवा के नाम पर इन्हें मिलने वाला पैसा आना बंद हो जाएगा.
एक तरफ तो स्ट्रीट डॉग्स को लेकर सुप्रीम कोर्ट कल सुनवाई करने वाला है लेकिन कुत्तों के काटने की समस्या से जूझते देश के दूसरे राज्यों से भी इस मामले में अहम अपडेट आया है. राजधानी दिल्ली के बाद अब राजस्थान में भी स्ट्रीट जॉग्स को लेकर राजस्थान हाई कोर्ट ने विशेष अभियान चलाकर आवारा कुत्तों और अन्य जानवरों को हटाने के लिए आदेश दिया है. राजस्थान हाईकोर्ट ने जयपुर, जोधपुर और उदयपुर में नगर निकायों को शहर की सड़कों से आवारा कुत्तों और अन्य जानवरों को हटाने का निर्देश दिया है. साथ ही अदालत ने ये भी निर्देश दिए हैं कि शिफ्ट करने के दौरान कुत्तों को कम से कम शारीरिक नुकसान हो. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जो कोई भी इस काम में बाधा डालेगा उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.
देश में हर साल करीब 30 लाख लोग डॉग बाइट के शिकार हो जाते हैं. सालाना करीब 50 लोगों की रेबीज से मौत हो जाती है. ऐसे में समस्या वाकई बड़ी है और इसी को देखते हुए मद्रास हाई कोर्ट की मदुरई बेंच के सामने एक याचिकाकर्ता ने कुछ आंकड़े पेश किए थे.. और इन आंकड़ों पर कोर्ट ने क्या कहा आपको वो भी जरूर देखना चाहिए. सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि तमिलनाडु में इस साल अकेले 3.67 लाख कुत्तों के काटने की घटनाएं हो चुकी हैं. इतना ही नहीं कुत्तों के काटने से रेबीज़ से 20 लोगों की मौत भी हो चुकी है. इस पर अदालत ने कहा कि वो सुप्रीम कोर्ट के विस्तृत दिशानिर्देशों का अध्ययन करने के बाद इस पर संयुक्त औपचारिक आदेश जारी करेंगे. यानी एक तरफ जहां कथित डॉग लवर्स सुप्रीम कोर्ट पर प्रेशर बना रहे हैं. वहीं अब देश के अलग अलग राज्यों में स्ट्रीट डॉग्स का मुद्दा अदालत पहुंचता जा रहा है. ऐसे में जो विवाद दिल्ली-NCR से शुरू हुआ. वो अब पूरे देश में बहस का मुद्दा बनता जा रहा है.