Kargil War 1999: भारतीय अधिकारियों ने पाक टीम को 10 मिनट तक इंतजार करवाया ताकि उन्हें एहसास हो कि उन्होंने कारगिल में शांति प्रक्रिया के बीच कैसी कायराना हरकत की. बैठक में तीन घंटे तक बातचीत चली जिसमें भारतीय DGMO ने क्लियर निर्देश दिए.
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देश आज कारगिल विजय दिवस मना रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु समेत कई नेताओं ने जांबाज भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि दी है. हर साल की तरह इस बार भी कारगिल से जुड़ी कई वीरगाथाएं सामने आ रही हैं. इसी कड़ी में एक कहानी ऐसी है जो पाकिस्तान की शर्मनाक हालत और उसकी कायरता को उजागर करती है. हालांकि उसकी हालत आज भी वैसी ही है लेकिन उस समय भारतीय अधिकारियों के सामने ही पाकिस्तान के एक अधिकारी ने खुद कबूल किया कि उसे 'जूते खाने' के लिए अकेले भेजा गया है.
पाकिस्तानी सैनिक पीछे हट रहे थे..
असल में ये बात है 11 जुलाई 1999 की. जब कारगिल में भारतीय सेना के भारी दबाव में पाकिस्तानी सैनिक पीछे हट रहे थे. भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की फोन पर बात हुई. फिर DGMO स्तर की बैठक तय हुई. ताकि पाकिस्तानी सेना पूरी तरह एलओसी के पार लौटे. इसके बाद भारतीय DGMO लेफ्टिनेंट जनरल निर्मल चंद्र विज और उनके डिप्टी ब्रिगेडियर मोहन भंडारी अटारी बॉर्डर पहुंचे.
'अकेले क्यों आए हो तौकीर?'
बैठक से पहले जब भंडारी पाकिस्तानी पक्ष से मिलने पहुंचे तो वहां पाकिस्तान के DGMO लेफ्टिनेंट जनरल तौकीर जिया अकेले खड़े सिगरेट पी रहे थे. भंडारी ने उनसे हैरानी में पूछा कि अकेले क्यों आए हो तौकीर? इस पर पाक अधिकारी ने जो जवाब दिया वह इतिहास में दर्ज हो गया. उन्होंने कहा कि 'क्या करूं.. मियां साहब ने जूते खाने के लिए अकेले भेज दिया.'
भारतीय अधिकारियों ने पाक टीम को 10 मिनट तक इंतजार करवाया ताकि उन्हें एहसास हो कि उन्होंने कारगिल में शांति प्रक्रिया के बीच कैसी कायराना हरकत की. बैठक में तीन घंटे तक बातचीत चली जिसमें भारतीय DGMO ने क्लियर निर्देश दिए कि पीछे हटते समय पाकिस्तान कोई बारूदी सुरंग नहीं लगाएगा. लेकिन पाकिस्तान ने इस भरोसे को भी तोड़ते हुए भारतीय सैनिकों पर हमले जारी रखे. इससे नाराज होकर भारतीय सेना ने 15 से 24 जुलाई तक भारी गोलाबारी कर पाकिस्तानी पोस्ट्स को सबक सिखाया.
24 जुलाई को ही पाकिस्तान ने पूरी तरह वापसी की और 25 जुलाई को युद्ध का औपचारिक अंत हुआ. अगर पाकिस्तान ने शांति की शर्तें शुरू से मानी होती तो ये लड़ाई 16 या 17 जुलाई को ही खत्म हो सकती थी. लेकिन यही तो फर्क है एक जिम्मेदार लोकतंत्र और एक भ्रमित देश के नेतृत्व में. जहां एक तरफ भारत और भारत के नेता हैं तो दूसरी तरफ मियां साहब जो अपने अफसरों को सिर्फ जूते खाने के लिए भेजते हैं.
FAQ
Q1: भारतीय सेना ने पाकिस्तान के DGMO से क्या शर्तें रखीं?
Ans: भारतीय DGMO ने पाक सेना को बिना बारूदी सुरंग बिछाए LOC से पूरी तरह पीछे हटने को कहा था.
Q2: क्या पाकिस्तान ने पीछे हटते वक्त शर्तों का पालन किया?
Ans: नहीं पाकिस्तान ने शर्तों का उल्लंघन करते हुए हमारे सैनिकों पर हमले जारी रखे.
Q3: भारत ने पाकिस्तान के इस व्यवहार का क्या जवाब दिया?
Ans: भारतीय सेना ने 15 से 24 जुलाई तक भारी गोलाबारी कर पाक पोस्ट्स को करारा जवाब दिया.