Harappa Sabhyata: पाकिस्तानी सरहद के पास भारत को एक खजाना मिला है, जो करीब पांच हजार साल पुराना है. सबसे खास बात यह है कि ये खजाना थार के रेगिस्तान के पास मिला है, जो पाकिस्तानी सरहद के पास सादेवाला गांव से महज 17 किलोमीटर की दूरी पर है.
Trending Photos
Harappa Sabhyata: हाल ही में भारतीय पुरातत्वविदों ( Indian archaeologists ) ने राजस्थान के जैसलमेर में पाकिस्तानी सरहद के पास हड़प्पा की एक नई जगह ढूंढी है. यहां से चूड़ियां, मनके, मिट्टी के बर्तन और अन्य हड़प्पा दौर के अवशेष मिले हैं. ये खोज भारत और पाकिस्तान की साझा सभ्यता, सिंधु घाटी संस्कृति की ऐतिहासिक गवाही देती है. ये वस्तुएं न सिर्फ उस वक्त की जीवनशैली और कारीगरी को दर्शाती हैं, बल्कि यह भी संकेत देती हैं कि दोनों देशों की जड़ें एक साझा सांस्कृतिक विरासत में हैं. ऐसे में चलिए जानते हैं इस मिले हुए हड़प्पा स्थल में क्या खास चीजें मिली हैं और इनकी अहमियत क्या है?
राजस्थान के जैसलमेर जिले में रताड़िया री डेरी नाम की जगह पर भारतीय पुरातत्वविदों को 4500 साल पुराने हड़प्पा सभ्यता के सबूत मिले हैं. यह जगह रामगढ़ तहसील से 60 किलोमीटर और पाकिस्तानी सरहद के पास सादेवाला गांव से महज 17 किलोमीटर की दूरी पर है.
इस नई खोज से आर्कियोलॉजिस्ट्स को हड़प्पा सभ्यता 5000 साल पुरानी कहानी के सबूत भी मिल गए हैं. आर्कियोलॉजिस्ट्स को मौके से लाल और गेहुएं रंग के मिट्टी के बर्तन, कटोरे, सुराही, कप और सुराख वाले जार और
कुछ पत्थर के ब्लेड भी मिले हैं, जो हाथ की कारीबरी है. खास बात यह है कि ये ब्लेड रोहरी (पाकिस्तान) से लाए गए चर्ट पत्थर से बने हुए हैं. मिट्टी और शंख से बनी चूड़ियां भी मिली हैं. इसके अलावा तिकोने, गोल और इडली जैसे टेराकोटा भी मिले हैं. यह खोज राजस्थान यूनिवर्सिटी में इतिहास और भारतीय संस्कृति विभाग की एक टीम ने की है.
यह पहली बार है कि थार के रेगिस्तान में एक पुरातात्विक स्थल खोजा गया है, जिसका ज़िक्र इंडियन जर्नल ऑफ साइंस में हुआ है. यह स्थल रताड़िया री डेरी में मिला, जहां से लाल और गेहुएं रंग के हाथ से बने मिट्टी के बर्तन मिले हैं. इनमें कटोरे, सुराही, कप और छेद वाले बर्त्तन शामिल हैं, जिन पर आकृतियां बनी हैं. साथ ही पत्थर के ब्लेड, चूड़ियां, टेराकोटा केक, और चक्कियां भी मिली हैं. ब्लेड रोहरी (पाकिस्तान) के चर्ट पत्थर से बने हुए हैं. जबकि कुछ वेज आकार की और आयताकार ईंटें भी मिली हैं, जो हड़प्पा सभ्यता की याद दिलाती हैं. एक भट्टी भी मिली है, जिसके बीच खंभा है. ऐसी भट्टियां पहले कंमेर और मोहनजोदड़ो में भी पाई गई थीं. दीवारों के अवशेषों से पता चलता है कि यहां किसी वक्त प्लांड तामीरी काम हुआ था. यह खोज थार की प्राचीन सभ्यता की तरफ इशारा करती है.
हड़प्पा सभ्यता इसलिए मशहूर है, क्योंकि यह भारत की सबसे पुरानी और विकसित सभ्यता है. सिंधु नदी के पास होने की वजह से इसे पहले सिंधु घाटी सभ्यता भी कहा जाता था. हालांकि, बाद में इसका नाम हड़प्पा सभ्यता पड़ा, जो एक प्रमुख पुरातात्विक स्थल है. इसमें चौड़ी सड़कें, पक्के घर और बेहतर पानी निकासी की व्यवस्था थी, जो उस वक्त की किसी भी दूसरी सभ्यता में नहीं मिलती हैं.