DNA: 18 करोड़ का प्रोजेक्ट... ये क्या? कल तो यहां सड़क थी, कहां लापता हो गई?
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DNA: 18 करोड़ का प्रोजेक्ट... ये क्या? कल तो यहां सड़क थी, कहां लापता हो गई?

DNA Analysis: एक शहर में, सड़कों पर इतने गड्ढे थे कि लोग उन्हें 'गड्ढा-नेशनल पार्क' कहते थे. एक दिन, एक आदमी गड्ढे में गिर गया. जब उसे निकाला गया, तो उसने कहा, 'वाह! यह तो रोमांचक था. मैंने आज तक इतने सारे जानवरों को एक साथ नहीं देखा.' आप सोच रहे होंगे कि मैं आपको यह चुटकुला क्यों सुना रहा हूं? मैं चुटकुला नहीं सुना रहा, ये हकीकत है.

DNA: 18 करोड़ का प्रोजेक्ट... ये क्या? कल तो यहां सड़क थी, कहां लापता हो गई?

DNA Analysis: पेड़ भले कंफ्यूजन में हैं लेकिन ग्वालियर का गड्ढा भरने वाला विभाग किसी कन्फ्यूजन में नहीं है। वो इस बात को लेकर क्लियर है कि जब गड्ढे का वीडियो वायरल होगा तभी गड्ढे भरने हैं. हम आपको जिस गड्ढे के बारे में बता रहे हैं वो दरअसल 18 करोड़ रुपये का गड्ढा है. जिसका DNA टेस्ट करना आज जरूरी है. लेकिन उससे पहले जानिए गड्ढे से ही जुड़ी एक और बात.

एक शहर में, सड़कों पर इतने गड्ढे थे कि लोग उन्हें 'गड्ढा-नेशनल पार्क' कहते थे. एक दिन, एक आदमी गड्ढे में गिर गया. जब उसे निकाला गया, तो उसने कहा, 'वाह! यह तो रोमांचक था. मैंने आज तक इतने सारे जानवरों को एक साथ नहीं देखा.' आप सोच रहे होंगे कि मैं आपको यह चुटकुला क्यों सुना रहा हूं? मैं चुटकुला नहीं सुना रहा, ये हकीकत है.  क्या इस तरह के गड्ढे में एक पूरी भैंस नहीं समा सकती है?

18 करोड़ का प्रोजेक्ट
जो तस्वीरें वायरल हुईं हैं, उसमें इतनी बड़ी गाड़ी धंस सकती है तो गैंडा जैसा विशाल जानवर भी धंस सकता है. ये तस्वीरें ग्वालियर के चेतकपुरी रोड की हैं. 18 करोड़ के प्रोजेक्ट के तहत 15 दिन पहले इस सड़क का निर्माण कराया गया. मंगलवार को यहां एक गिट्टी से भरा डंपर ऐसा फंसा कि फिर बड़ी मशक्कत के बाद ही उठ सका.

लोग कंफ्यूजन में हैं कि आखिर 18 करोड़ रुपए गए तो गए कहां?
ये सड़क 3 अलग-अलग जगहों पर धंस गई. एक बार नहीं बार-बार धंस गई. लोग कंफ्यूजन में हैं कि आखिर 18 करोड़ रुपए गए तो गए कहां? सॉल्यूशन ढूंढा जा रहा है, जो मिलने वाला नहीं है. भ्रष्टाचार का ये गड्ढा तब तक भरने वाला नहीं है, जब तक ये खबर मीडिया में न दिखाई जाए. सोशल मीडिया में वायरल न हो जाए.

12 दिनों में 8 बार सड़क धंसी
पिछले 12 दिनों में 8 बार सड़क धंसी है. अब जेसीबी मशीनें आई हैं. गड्ढे भरे जा रहे हैं. लेकिन आप यही सुन रहे हैं कि ग्वालियर स्मार्ट सिटी बनने जा रहा है. आपको इसी तरह 'ऑल इज वेल' का गाना सुनाया जा रहा है.

दो सदस्यीय तकनीकी दल गठित
पर हकीकत ये है कि सारे शहर में 'गड्ढे पे गड्ढा, गड्ढे में गाड़ी' का दृश्य नजर आ रहा है. आप उम्मीद करते रहिए एक न एक दिन ये गड्ढा भरेगा. लेकिन प्रशासन को अगर कुछ करना होता तो पहले ही कर लिया होता, मीडिया में खबर को वायरल होने तक रुकने की जरूरत ही क्यों पड़ती? खबरें दिखाए जाने के बाद प्रशासन की नींद खुली है. गड्ढों को भरा जा रहा है. कलेक्टर रूचिका चौहान ने जांच के आदेश दिए हैं. दो सदस्यीय तकनीकी दल गठित की गई है. पांच दिन में जांच की रिपोर्ट मांगी गई है.

जांच के लिए जो प्वाइंट्स तय किए गए हैं. उनमें ये पता लगाना है कि सड़क निर्माण की तकनीकी स्वीकृति किसने दी? किस एजेंसी और ठेकेदार ने ये काम किया है? यह परखा जा रहा है कि सड़क निर्माण के नियमों का पालन हुआ या नहीं? सीवर लाइन के काम के बाद गिट्टी भरने के काम को सही तरह से अंजाम दिया गया या नहीं? रोड धंसने की वजहें क्या हैं? प्रथम दृष्ट्या कौन-कौन दोषी है?

खास बात यह है कि यह सड़क केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के महल जय विलास के सामने से होकर गुजरती है. महल से कुछ ही दूरी पर यह सड़क बार-बार धंसक रही है. इस चेतकपुरी रोड पर स्टॉर्म वॉटर ड्रेनेज लाइन डाली गई थी. 14 करोड़ रुपए की लागत इस पर आई थी. इसके बाद 4 करोड़ रुपए खर्च करके इसके ऊपर सड़क निर्माण किया गया. यानी 18 करोड़ रुपए पूरी तरह से गड्ढे में चले गए.

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ज़ी न्यूज़ डेस्क

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