सावन शिवरात्रि के दिन ही शिवलिंग पर पवित्र नदियों का जल क्‍यों चढ़ाते हैं कांवड़िए?
Advertisement
trendingNow12848692

सावन शिवरात्रि के दिन ही शिवलिंग पर पवित्र नदियों का जल क्‍यों चढ़ाते हैं कांवड़िए?

Kanwad Jal Date 2025: कांवड़ यात्रा शुरू हो चुकी है और कावड़िए गंगा समेत विभिन्‍न पवित्र नदियों का जल अपने कांधों पर उठाकर भगवान शिव का अभिषेक करने के लिए निकल चुके हैं. जानिए सावन शिवरात्रि के दिन ही जल क्‍यों चढ़ाया जाता है? 

सावन शिवरात्रि के दिन ही शिवलिंग पर पवित्र नदियों का जल क्‍यों चढ़ाते हैं कांवड़िए?

Kanwad Yatra Story in Hindi: सावन महीने में गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक करने का बड़ा महत्‍व है. सावन महीना शुरू होते ही कांवड़ यात्रा शुरू हो जाती है. शिव जी के भक्‍त कावड़िए पैदल यात्रा करके गंगा जल भरने जाते हैं और फिर अपने कांधों पर कांवड़ों में गंगाजल भरकर लाकर शिवधामों में शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं. वैसे तो सावन के पूरे महीने में शिवलिंग का जलाभिषेक करना बेहद पुण्‍यदायी माना जाता है. लेकिन सावन शिवरात्रि के दिन को गंगाजल से शिवलिंग के अभिषेक के लिए विशेष माना गया है. इसलिए जल तारीख भी कहा जाता है. इस साल सावन शिवरात्रि 23 जुलाई 2025, बुधवार को है. जानिए कांवड़ यात्रा की परंपरा कैसे शुरू हुई और पहला कावड़िया किसे माना जाता है. 

यह भी पढ़ें: खाली जेब, काम-काज में मंदी, रिश्‍तों में कड़वाहट...'शुक्र' देंगे 3 राशि वालों को भारी परेशानी!

रावण था पहला कांवड़िया 

लंका का प्रतापी राजा रावण भगवान शिव का परम भक्त भी था. यह भी कहा जाता है कि वह शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तप करता था. जिससे उसे कई सिद्धियां भी भगवान शिव ने वरदान के रूप में दी थीं. भले ही रावण में अहंकार, क्रोध, मोह, लालच, ईर्ष्या जैसे कई दुर्गुण थे, लेकिन वह प्रकांड विद्वान और शिव जी का परम भक्‍त था. उसने शिवतांडव स्‍तोत्र की रचना की थी. वह रोजाना सुबह-शाम भोलेनाथ की आराधना करता था. 

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब त्रेता युग में समुद्र मंथन हुआ तो उसमें से सबसे पहले कालकूट विष निकला, जिसे पीने के लिए कोई भी देवता या असुर तैयार नहीं हुए. तब भगवान शिव ने संसार की रक्षा के लिए उस विष को स्वयं ग्रहण कर लिया. हालांकि उन्होंने उसे कंठ में ही रोक लिया, जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया और वे नीलकंठ कहलाए. लेकिन इस विष के प्रभाव से उनके शरीर में अत्यधिक गर्मी और जलन होने लगी. जैसे ही यह बात रावण को पता चली, तब उसने भगवान शिव की पीड़ा को शांत करने के लिए कांवड़ में भरकर पवित्र गंगाजल लाया और उसे महादेव पर चढ़ाया. कहा जाता है कि गंगाजल के शीतल प्रभाव से शिव जी को विष की पीड़ा से राहत मिली. 

यह भी पढ़ें: होगा विकराल महायुद्ध, खुद इंसान लाएगा प्रलय, करीब है भविष्‍यवाणी सच होने की तारीख!

तब से ही शिवजी को गंगाजल अर्पित करने के लिए कांवड़ यात्रा निकाली जाती है. इस तरह रावण पहला कांवड़िया कहलाया और अब हर साल लाखों शिवभक्‍त कांवड़िया शिव जी का गंगाजल से जलाभिषेक करते हैं. चूंकि सावन महीने की शिवरात्रि को फागुन माह की महाशिवरात्रि की तरह बेहद महत्‍वपूर्ण माना जाता है इसलिए कांवड़िए प्रमुख तौर पर सावन शिवरात्रि के दिन ही जलाभिषेक करते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान शिव प्रसन्न होकर अपने भक्तों को सुख, शांति, धन, आरोग्यता और समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं.

यह भी पढ़ें: 16 महीने तक तूफान मचाएंगे राहु-केतु, 5 राशि वालों पर होगा घातक असर, गले पड़ेंगे विवाद और कर्ज!

(Disclaimer - प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में सामान्य जानकारियों की मदद ली है. Zee News इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

About the Author
author img

TAGS

Trending news

;