मक्का-मदीना का तो पता होगा, लेकिन इस जगह भी गैर मुस्लिम नहीं रख सकता कदम
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मक्का-मदीना का तो पता होगा, लेकिन इस जगह भी गैर मुस्लिम नहीं रख सकता कदम

कुछ जगहें ऐसी होती हैं कि वहां पर सिर्फ एक विशेष धर्म के लोग ही दाखिल हो सकते हैं. आज हम आपको मक्का और मदीना के अलावा एक और जैसी जगह के बारे में बताने जा रहे हैं जहां गैर मुस्लिमों के जाने पर पाबंदी है. 

मक्का-मदीना का तो पता होगा, लेकिन इस जगह भी गैर मुस्लिम नहीं रख सकता कदम

अगर किसी से सवाल किया जाए कि वो कौन सी जगह है जहां गैर-मुस्लिम नहीं जा सकते? तो सभी का जवाब होगा मक्का में मौजूद 'काबा' होगा. हालांकि ऐसा नहीं है, ऐसी कई और भी जगहें हैं जहां पर सिर्फ मुसलमानों को ही जाने की इजाजत होती है. इस्लाम के मानने वालों के अलावा हिंदू हो या कोई धर्म का व्यक्ति वहां नहीं जा सकता. आज हम आपके एक ऐसी ही जगह के बारे में बताने जा रहे हैं. यह जगह मोरक्को में है, जिसे 'मराकश' के नाम भी जाना जाता है.

इस्लामी सल्तनत के संस्थापक थे इदरीसी

इस कस्बे का नाम है 'मौलाय इदरीस' है. यह छोटा-सा कस्बा सदियों तक बाहरी दुनिया की नजरों से ओझल रहा है. ‘मौलाय इदरीस’ एक ऐसी पवित्र जगह है जिसे लोग सुकून और शांति के लिए पसंद करते हैं. इस रंग-बिरंगे कस्बे का संबंध मोरक्को की पहली इस्लामी सल्तनत के संस्थापक इदरीस प्रथम से है. कहा जाता है कि उन्होंने यहां के खंडरों को अपने लिए चुना था, ताकि वो यहां से इस्लाम का प्रचार प्रसार कर सकें. हालांकि 791 में उन्हें जहर दे दिया गया था और उनकी मृत्यु हो गई थी. जिसके बाद उन्हें नजदीक में ही दफनाया गया था. 

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पैगंबर मोहम्मद (स.) से मिलता है इदरीसी का वंश

इस दरगाह की शोहरत की वजह से ही यह कस्बा दुनिया भर में पहचाना जाता है. मोरक्को की सबसे पवित्र और मशहूर दरगाह माना जाता है. कहा जाता है कि इदरीस प्रथम का वंश पैगंबर हजरत मोहम्मद (स.) के खानदान से मिलता है. इदरीस प्रथम की यह दरगाह मोरक्को के रिफ पर्वत श्रृंखला में मौजूद ‘जबल जरहून’ के नीचे बसा हुआ है.

1912 में खत्म हुई पाबंदी

रिपोर्ट्स में बताया गया कि यहां पर सिर्फ मुस्लिम ही जा सकते थे और गैर मुसलमानों के आने पर पाबंदी थी. BBC उर्दू की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस कस्बे में गैर मुस्लिमों की एंट्री पर पाबंदी 1912 में खत्म कर दी गई थी. हालांकि अभी-भी पूरी तरह से गैर मुस्लिमों पर पाबंदी नहीं हटी थी. गैर मुस्लिम लोग सिर्फ दिन में यहां आ सकते थे वो रात नहीं रुक सकते थे.

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रात रुकने की भी मिली इजाजत

हालांकि 2005 में मोरक्को के बादशाह हम्द (Sixth) के हुक्म पर गैर मुस्लिमों को यहां रात रुकने की भी इजाजत दी गई. इस इजाजत का मकसद पश्चिमी सभ्यताओं और मोरक्को के बीच की खाई को पाटना के साथ-साथ मौलाय इदरीस को दुनिया से परिचित कराना बताया गया. अब मुस्लिम कस्बे में जा सकते हैं लेकिन दरगाह के अंदर जाने की इजाज़त अब भी सिर्फ मुस्लिमों को है.

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ताहिर कामरान

पत्रकारिता की रहगुज़र पर क़दम रखते हुए 2015 में एक उर्दू अख़बार से अपने सफ़र का आग़ाज़ किया. उर्दू में दिलचस्पी और अल्फ़ाज़ की मोहब्बत धीरे-धीरे पेशे में ढल गई. उर्दू के बाद हिंदी-पंजाबी अख़बारों म...और पढ़ें

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