Vikram Batra: कैप्टन विक्रम बत्रा कारगिल युद्ध के सबसे बहादुर जवानों में से एक थे. उन्होंने पॉइंट 5140 और 4875 पर दुश्मनों से जबरदस्त मुकाबला किया. 'ये दिल मांगे मोरट' उनका प्रसिद्ध नारा बना. देश के लिए शहीद हुए और उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. उनकी कहानी आज भी हर भारतीय के लिए गर्व की बात है.
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Vikram Batra: जब भी कारगिल युद्ध की बात होती है, एक नाम सबसे पहले याद आता है 'कैप्टन विक्रम बत्रा'. उनकी बहादुरी, जोश और जज्बे ने ना सिर्फ दुश्मनों के होश उड़ा दिए, बल्कि देश के करोड़ों दिलों को भी छू लिया. उनका नारा 'ये दिल मांगे मोर' आज भी हर देशभक्त के दिल में गूंजता है.
शुरुआत से ही कुछ अलग थे विक्रम
कैप्टन विक्रम बत्रा का जन्म 9 सितंबर 1974 को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में हुआ था. बचपन से ही वो पढ़ाई में तेज और खेल-कूद में आगे थे. उनके माता-पिता दोनों शिक्षक थे, और वो हमेशा अपने बेटे को देश की सेवा करते देखना चाहते थे.
सपना था फौज में जाने का
विक्रम ने 1995 में चंडीगढ़ से B.S.C की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद उन्होंने NDA (नेशनल डिफेंस एकेडमी) और फिर IMA (इंडियन मिलिट्री एकेडमी) देहरादून से ट्रेनिंग ली. 1997 में वो इंडियन आर्मी की 13 JAK Rifles (जम्मू एंड कश्मीर राइफल्स) में लेफ्टिनेंट बने.
कारगिल युद्ध में असली हीरो
साल 1999, जब कारगिल में जंग शुरू हुई, तो विक्रम बत्रा की यूनिट को टाइगर हिल और पॉइंट 5140 जैसे खतरनाक इलाकों को दुश्मनों से खाली कराने की जिम्मेदारी दी गई. विक्रम ने पूरी प्लानिंग और हिम्मत के साथ पॉइंट 5140 पर कब्जा किया. ऑपरेशन के बाद उन्होंने रेडियो पर जोश से कहा 'ये दिल मांगे मोर' और यही लाइन उनकी पहचान बन गई.
पॉइंट 4875 पर आखिरी लड़ाई
पॉइंट 4875 (अब बत्रा टॉप कहा जाता है) की लड़ाई सबसे मुश्किल मानी जाती है. यहां दुश्मन ऊंचाई पर था और गोलीबारी लगातार हो रही थी. विक्रम ने जान की परवाह किए बिना अपने साथी सैनिकों को बचाया और दुश्मनों से डटकर लड़े. 7 जुलाई 1999 को वो इस मिशन में शहीद हो गए. उस वक्त उनकी उम्र सिर्फ 24 साल थी.
परमवीर चक्र से सम्मानित
कैप्टन विक्रम को शहीद होने के बाद भारत के सबसे बड़े वीरता सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. ये सम्मान हर भारतीय के गर्व देशभक्ति की निशानी है.
आज भी जिंदा है उनकी यादें
पालमपुर में उनकी एक मूर्ति है, जिसे देखने हर साल हजारों लोग आते हैं. उनके नाम पर स्कूल, पार्क और रास्ते बने हैं. 2021 में उनकी जिंदगी पर बनी फिल्म 'शेरशाह' भी आई, जिसमें सिद्धार्थ मल्होत्रा ने उनका रोल निभाया.