मानव सभ्यता के विकास में सबसे अहम कड़ी रही है औजारों की खोज. जिसका विकास पुरापाषाण काल में हुआ. जिनकी मदद से वे शिकार करते थे, भोजन इकट्ठा करते थे और खुद की रक्षा भी करते थे. इन तकनीकों को जानकर आपको एहसास होगा कि उस आदिम युग में भी मानव मस्तिष्क कितना विकसित था.
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मानव सभ्यता का इतिहास औजारों के विकास से गहराई से जुड़ा है. आज भले ही हम अत्याधुनिक मशीनों का उपयोग करते हैं, पर एक समय ऐसा भी था जब हमारे पूर्वज केवल पत्थरों के सहारे अपनी दुनिया गढ़ते थे. पुरापाषाण काल, यानी जब मानव ने पहली बार पत्थरों का उपयोग हथियार और औजार बनाने के लिए किया. वह समय असल में मानव की अद्भुत बुद्धि और रचनात्मकता का प्रमाण है. जहां से मानव सभ्यता के विकास की पूरी तस्वीर बदल गई.
औजार बनाने की तकनीकें
दुनिया भर में उन्नत किस्म के हथियार बनाए जा रहे हैं, लेकिन इन हथियारों की नींव आज से हजारों साल पहले पड़ चूकी थी. जिसका श्रेय पुरापाषाण काल को जाता है. आइए जानते हैं, पुरापाषाण काल में किस तरह से औजारों को बनाया जाता था.
1. ब्लॉक-ऑन-एनविल तकनीक (Block-on-anvil Technique)-
उत्तराखंड मुक्त विश्व विद्यालय द्वारा प्रकाशित, प्राचीन भारत का इतिहास के मुताबिक, इस विधि में जिस पत्थर से औजार बनाना होता था, उसे किसी बड़ी चट्टान जिसे 'एनविल' या निहाई कहते थे, पर जोर से मारा जाता था. इस प्रहार से पत्थर का एक हिस्सा, यानी 'फलक' एक टुकड़ा टूटकर अलग हो जाता था. इस तकनीक से आमतौर पर बड़े आकार के और थोड़े खुरदरे औजार ही बनते थे. यह शुरुआती और सरल तरीकों में से एक थी.
2. स्टोन हैमर तकनीक या ब्लॉक-ऑन-ब्लॉक तकनीक (Stone Hammer Technique or Block-on-Block Technique)-
यह विधि पूर्व पाषाण काल में मानव द्वारा औजार बनाने के लिए सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाती थी. इसमें, जिस पत्थर का औजार बनाना होता था, उसे एक जगह पर रखा जाता था. फिर, दूसरे हाथ से एक अन्य पत्थर जिसे 'हथौड़ा पत्थर' कहते थे, उससे चोट की जाती थी. इस तरीके से फलक उतारकर औजार बनाए जाते थे. इस तरीके से मानव दोधारी यानी दोनों तरफ धार वाले औजार भी बना पाता था, जिससे उनकी उपयोगिता बढ़ जाती थी.
3. स्टेप फ्लैकिंग तकनीक (Step Flacking Technique)-
यह तकनीक थोड़ी और उन्नत थी. इस विधि में, जिस पत्थर का औजार बनाना होता था, उस पर दूसरा पत्थर मारकर सबसे पहले मध्य भाग में एक निशान बना लिया जाता था. यह निशान इस बात को ध्यान में रखकर बनाते थे कि किस प्रकार का औजार बनाना है. बाद में, उसी निशान की मदद से पत्थरों को स्टेप्स यानी पट्टियों में फलक उतारकर औजार बनाया जाता था. इस विधि द्वारा खासकर हाथ की कुल्हाड़ियों का निर्माण संभव था, जो अधिक बेहतर होती थीं.
4. सिलिंड्रिकल हैमर तकनीक (Cylinderical Hammer Technique)-
यह औजार बनाने की सबसे बेहतर विधियों में से एक थी. इस विधि में पत्थर का औजार बनाने के लिए एक बेलनाकार यानी सिलैंडरनुमा हथौड़े का प्रयोग किया जाता था. यह हथौड़ा हड्डी, सींग या किसी नरम पत्थर का बना हो सकता था. इस तकनीक से छोटे-छोटे फलक भी आसानी से उतारे जा सकते थे, जिससे बहुत ही सुंदर एशुलियन प्रकार की हस्त कुल्हाड़ियां बनाई जाती थीं. ये औजार पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा धारदार और कुशल होते थे, जिससे प्राचीन मानव की कार्य क्षमता में काफी सुधार हुआ था.
मानव सभ्यता में औजारों का महत्व
ये तकनीकें केवल पत्थर तोड़ने के तरीके नहीं थीं, बल्कि ये मानव सभ्यता के विकास की नींव थीं. इन सरल लेकिन प्रभावी औजारों ने ही हमारे पूर्वजों को बेहतर ढंग से शिकार करने, भोजन तैयार करने और खुद को सुरक्षित रखने में सक्षम बनाया. इन्हीं शुरुआती औजारों ने मानव को प्राकृतिक चुनौतियों का सामना करने और दुनिया पर अपनी छाप छोड़ने में मदद की, जिससे भविष्य में और भी बड़ी तकनीकी क्रांतियों का रास्ता खुला. यह वाकई हैरान करता है कि कैसे कुछ पत्थरों और सूझबूझ से मानव ने अपनी प्रगति का सफर शुरू किया.
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