Kargil War 1999: 19 साल की उम्र में ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव ने कारगिल युद्ध के दौरान टाइगर हिल पर चढ़ाई करते हुए 17 गोलियां झेलीं. इसके बावजूद दुश्मन के कैंप पर कब्जा किया. उनकी बहादुरी के लिए उन्हें देश के सर्वोच्च वीरता सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.
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Kargil War 1999: 19 साल की उम्र में ज्यादातर लोग कॉलेज में होते हैं या अपनी पहली नौकरी की तैयारी कर रहे होते हैं. लेकिन एक जवान ऐसा भी था जो टाइगर हिल की सीधी चढ़ाई पर, दुश्मन की गोलियों के बीच, अपने साथियों से आगे निकल गया. उसे तीन गोलियां लगीं, फिर भी वो रुका नहीं. अकेले दुश्मन के कैंप तक पहुंचा और वहां जो किया, उसी ने कारगिल की लड़ाई का रुख बदल दिया. ये कहानी है योगेंद्र सिंह यादव की, जिन्हें बाद में इस वीरता के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.
कौन हैं योगेंद्र सिंह यादव?
योगेंद्र सिंह यादव उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के औरंगाबाद गांव के रहने वाले हैं. उनका जन्म 10 मई 1980 को हुआ था. उनका परिवार सेना से जुड़ा रहा है, उनके पिता भी फौज में थे. योगेंद्र शुरू से ही देशसेवा का जज्बा रखते थे. 16 साल की उम्र में उन्होंने इंडियन आर्मी जॉइन की और 18 ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट का हिस्सा बने.
टाइगर हिल ऑपरेशन में शामिल
साल 1999, कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान की सेना ने भारत की कई ऊंची पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया था. इन्हीं में एक अहम पोस्ट थी 'टाइगर हिल'. 4 जुलाई 1999 की रात को योगेंद्र यादव के दल को टाइगर हिल पर चढ़ाई का जिम्मा मिला. ये सीधी और बेहद खतरनाक चढ़ाई थी, ऊपर से दुश्मन लगातार फायरिंग कर रहा था.
17 गोलियां खाकर भी रुके नहीं
चढ़ाई के दौरान योगेंद्र सिंह यादव को दुश्मन की तरफ से 17 गोलियां लगीं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. वो रेंगते हुए पहले कैंप तक पहुंचे, वहां मौजूद तीन पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया, और बाकी साथियों के लिए रास्ता साफ किया. उनकी इस बहादुरी की वजह से भारतीय सेना को टाइगर हिल पर कब्जा करने में बड़ी कामयाबी मिली.
बहादुरी पर मिला परमवीर चक्र
ऑपरेशन के बाद सेना को लगा कि योगेंद्र यादव शहीद हो गए हैं. इसी कारण उन्हें शुरू में 'मरणोपरांत' (मृत्यु के बाद) परमवीर चक्र देने का ऐलान हुआ. बाद में जब पता चला कि वो जिंदा हैं और अस्पताल में इलाज चल रहा है, तो उन्हें जीवित रहते हुए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.