जासूसी का काम जानलेवा होता है. एक गलती और सब खत्म. पर कुछ जासूस इतिहास में अमर हो जाते हैं. ये कहानी है एक ऐसे शख्स की, जो दुश्मन मुल्क का राष्ट्रपति बनने वाला था, पर उसकी किस्मत में कुछ और ही लिखा था.
यह कहानी गोलान हाइट्स से जुड़ी है. यह एक पहाड़ी इलाका है, जहां से जॉर्डन नदी गुजरती है और इजरायल को अपने पानी का 30-40 फीसद हिस्सा मिलता है. 1967 से पहले, इस पर सीरिया का कब्जा था और वे इजरायली बस्तियों पर हमले करते थे. 1967 के सिक्स-डे वॉर में इजरायल ने इसे जीत लिया. इस जीत के पीछे उसी जासूस का अहम हाथ था.
एली कोहेन का जन्म 26 दिसंबर, 1924 को मिस्र के अलेक्जेंड्रिया में एक यहूदी परिवार में हुआ था. उनके माता-पिता, शौल और सोफिया, आर्थोडॉक्स यहूदी थे. कोहेन बचपन से ही वे देशभक्त थे. 1947 में जब इजरायल बन रहा था, तो मिस्र में यहूदियों के लिए माहौल मुश्किल हो गया. एली जायोनी आंदोलन से जुड़े और कई यहूदियों को इजरायल भेजने में मदद की. 1951 में उन्हें गिरफ्तार भी किया गया. इन हालातों के कारण, 1956 में उन्होंने मिस्र छोड़कर इजरायल का रुख किया.
इजरायल पहुंचकर एली कोहेन ने मोसाद में शामिल होने का सपना देखा, पर उन्हें दो बार रिजेक्ट किया गया. वे हार नहीं माने. इजरायली आर्मी में काम करते हुए उन्होंने अपनी काबिलियत साबित की. वहीं, कोहेन की आवाज पर जबरदस्त कंट्रोल और शानदार याददाश्त थी. 1960 में, मेजर जनरल मेयर एमीट ने उनकी प्रतिभा को पहचाना. एली ने मोसाद जॉइन कर लिया और छह महीने की कड़ी ट्रेनिंग ली, जिसमें उन्हें कुरान और सीरियाई तौर-तरीके सिखाए गए. उन्हें सीरिया में जासूसी करने का मिशन मिला.
सीरिया जाने से पहले, एली कोहेन को अर्जेंटीना भेजा गया. वहां वे 'कमाल अमीन थाबेट' नाम के एक अमीर सीरियाई बिजनेस मैन बन गए. वे बड़ी पार्टियां रखते थे और सीरियाई मंत्रियों को महंगे तोहफे देते थे. इससे उन्होंने अपनी पैठ बनाई. 1962 में, वे ब्यूनस आयर्स से फ्लाइट से दमिश्क पहुंचें. यहीं उनकी मुलाकात अमीन अल-हाफिज से हुई, जो 1963 में सीरिया के राष्ट्रपति बने. हाफिज ने उन्हें रक्षा मंत्री का पद भी ऑफर कर दिया, और यहां तक कहा कि उनके बाद एली से बेहतर कोई राष्ट्रपति नहीं हो सकता.
दमिश्क में, एली कोहेन एक शानदार घर में रहते थे, जिसमें खुफिया रेडियो ट्रांसमिशन केबल लगे थे. वे हमेशा सायनाइड की बोतल रखते थे. ताकि पकड़े जाने पर तुरंत जान दे दें. 1961 से 1965 तक, उन्होंने सीरियाई सरकार में रुतबा बढाया और इजरायल को अहम जानकारी भेजी. सीरिया ने जॉर्डन नदी का पानी मोड़ने का प्लान बनाया. एली को यह बात पहले ही पता चल गई. उन्होंने इजरायल को खबर दी और सीरियाई प्रशासन को ये प्लान बदलने पर मजबूर किया. उन्होंने सैन्य ठिकानों की जानकारी भी भेजी.
कोहेन ने गोलान हाइट्स पर यूकेलिप्टस के पेड़ लगाने का सुझाव दिया. सीरियाई कमांडर, जो उनके दोस्त थे. उन्हें उन जगहों का दौरा कराया जहां वे हथियार रखते थे. कोहेन ने ये सब मोसाद को बताया. इन पेड़ों को एक नक्शे की तरह इस्तेमाल किया गया, जिससे 1967 के सिक्स-डे वार में इजरायल को सीरियाई ठिकानों पर बमबारी करने में मदद मिली और उन्होंने गोलान हाइट्स पर कब्जा कर लिया.
नवंबर 1964 में, एली कोहेन अपने परिवार से मिलने इजरायल आए. उन्हें खतरा महसूस हुआ, पर मोसाद ने उन्हें एक आखिरी मिशन के लिए सीरिया वापस भेज दिया. यही उनका आखिरी मिशन साबित हुआ. जनवरी 1965 में, सोवियत संघ की मदद से सीरिया ने एली कोहेन को रंगे हाथों पकड़ लिया, क्योंकि उनके रेडियो मैसेज इंटरसेप्ट हो गए थे.
गिरफ्तारी की खबर मिलते ही इजरायल और कई देशों ने एली कोहेन की जान बख्शने की अपील की, पर सीरिया ने किसी की न सुनी. एली कोहेन को 18 मई, 1965 को सीरिया की राजधानी दमिश्क के मरजेह स्क्वायर पर, सरेआम फांसी दे दी गई. एली कोहेन का शव आज तक इजरायल को नहीं सौंपा गया. यह जासूसी के इतिहास की सबसे निर्मम मौतों में से एक थी.
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