Kishanganj Muslim Voters Influence: किशनगंज विधानसभा सीट पर मुस्लिम वोट बैंक का बड़ा प्रभाव है. 2020 के विधानसभा इलेक्शन में मुस्लिम मतदाताओं ने अहम भूमिका निभाई थी, जिसके चलते कांग्रेस को जीत मिली थी. यहां मुस्लिम वोटर्स 60 फीसद हैं, जो चुनाव परिणामों को प्रभावित करता है. अगर आगामी चुनाव में मुस्लिम वोटों का बंटवारा होता है, तो भाजपा को फायदा हो सकता है. जानिए कैसे...
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Kishanganj Muslim Vote Bank: बिहार विधानसभा इलेक्शन की आहट के साथ राज्य में राजनीतिक सरगर्मियां तेज़ हो गई हैं. इस वक्त सबसे ज्यादा किशनगंज विधानसभा सीट की चर्चा हो रही है. चूंकि यह क्षेत्र मुस्लिम बहुल इलाका है और यहां मुस्लिम वोट किंगमेकर की भूमिका निभाते हैं. इस चुनाव में इस सीट पर सियासी मुकाबला बेहद दिलचस्प होने वाला है, क्योंकि मुस्लिम वोटों के लिए महागठबंधन, NDA और AIMIM के बीच कड़ी संघर्ष होने वाला है. क्योंकि AIMIM ने चुनावी दंगल में कूदने का ऐलान किया है.
किशनगंज की 2011 की जनगणना के मुताबिक, यहां की कुल आबादी का एक बड़ा हिस्सा मुस्लिम समुदाय का है. यहां 19 में से 17 बार मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव जीते हैं, जिससे पता चलता है कि इस क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं का महत्व बहुत ज़्यादा है. 1967 के बाद से यहां से कोई भी हिंदू उम्मीदवार नहीं जीत पाया है, जिससे साफ़ है कि मुस्लिम वोटों की एकता यहां की राजनीति का एक बड़ा घटक है.
AIMIM की है मजबूत पकड़
हाल ही में एआईएमआईएम ने मुस्लिम वोटों में सेंध लगाने के लिए अपनी सक्रियता बढ़ा दी है. पार्टी का लक्ष्य मुस्लिम मतदाताओं के बीच अपनी पकड़ मजबूत करना और कांग्रेस के पारंपरिक प्रभाव को चुनौती देना है. अगर AIMIM 2025 में अपनी स्थिति मजबूत कर पाती है, तो इससे कांग्रेस की जीत पर असर पड़ सकता है और मुस्लिम वोटों का बंटवारा बीजेपी को फायदा पहुंचा सकता है.
कांग्रेस का पारंपरिक प्रभाव
कांग्रेस ने अब तक किशनगंज विधानसभा सीट सबसे ज़्यादा बार जीती है. 2020 में इज़हारुल हुसैन की जीत ने पार्टी की स्थिति मज़बूत की, हालांकि मुस्लिम वोटों में AIMIM की सेंध के कारण कांग्रेस को चुनौती का सामना करना पड़ा. कांग्रेस इस बार भी अपनी पारंपरिक पकड़ बनाए रखने की कोशिश करेगी, लेकिन मुस्लिम वोटों में बंटवारा उसकी राह में मुश्किलें खड़ी कर सकता है.
बीजेपी और हिंदू वोट
बीजेपी ने अब तक किशनगंज सीट कभी नहीं जीती है, लेकिन हर बार कांटे का मुक़ाबला रहा है. अगर हिंदू वोट एकजुट हो जाएं और मुस्लिम वोट बंट जाएं, तो भाजपा पहली बार यह सीट जीत सकती है. 2020 में AIMIM के बढ़ते प्रभाव ने कांग्रेस और भाजपा के बीच मुक़ाबले को त्रिकोणीय बना दिया था. वहीं, बीजेपी की उम्मीदवार स्वीटी सिंह कई बार इस विधानसभा सीट जीतने के करीब पहुंची, लेकिन हर बार मामूली अंतर से हार गई.
कम वोटों से हार गई थीं बीजेपी की उम्मीदवार
साल 2010 में वे सिर्फ़ 264 वोटों से और 2020 में 1,381 वोटों से हारी थीं. 2015 में हिंदू वोटों के बंटवारे के कारण उनकी हार का अंतर बढ़कर 8,609 हो गया था. आमतौर पर मुस्लिम वोटों के बंटवारे के कारण उनकी हार का अंतर कम रहा है. साल 2020 में कांग्रेस के इज़हारुल हुसैन 61,078 वोटों से जीते, जबकि स्वीटी सिंह को 59,697 और AIMIM के कमरुल होदा को 41,904 वोट मिले. 2024 के लोकसभा इलेक्शन में कांग्रेस के मोहम्मद जावेद को इसी क्षेत्र में 19,608 वोटों की बढ़त मिली थी.
बीजेपी रच सकती है इतिहास
किशनगंज विधानसभा में 60 फीसद से ज़्यादा मुस्लिम मतदाता हैं. 2020 में कुल 2.93 लाख मतदाता थे, जो 2024 में बढ़कर 3.16 लाख हो गए हैं. हालांकि, मतदान प्रतिशत में कमी आई है. अगर मुस्लिम वोट फिर से बंट जाते हैं और हिंदू वोट एकजुट हो जाते हैं, तो बीजेपी के लिए रास्ता साफ़ हो सकता है, लेकिन कांग्रेस अभी भी मज़बूत स्थिति में है. त्रिकोणीय मुक़ाबला होने की पूरी संभावना है. अगर एआईएमआईएम 2025 में मुस्लिम वोटों में सेंध लगाने में कामयाब हो जाती है और साथ ही हिंदू वोट एकजुट रहते हैं, तो यहां भाजपा की जीत की संभावनाएं बढ़ सकती हैं.