सट्टेबाजी का अखाड़ा, सिंगापुर कनेक्शन: सेबी की आड़ में कौन-सा गेम खेल रही थीं माधवी पुरी बुच? जानें पूरी इनसाइड स्टोरी
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सट्टेबाजी का अखाड़ा, सिंगापुर कनेक्शन: सेबी की आड़ में कौन-सा गेम खेल रही थीं माधवी पुरी बुच? जानें पूरी इनसाइड स्टोरी

करोड़ों निवेशकों की उम्मीदों, सपनों और उनकी मेहनत की कमाई का प्रतीक माने जाने वाला भारतीय शेयर बाजार आज एक बड़े संकट और अविश्वास के दौर से गुजर रहा है. सेबी (SEBI) जैसे प्रतिष्ठित रेगुलेटर पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं.

सट्टेबाजी का अखाड़ा, सिंगापुर कनेक्शन: सेबी की आड़ में कौन-सा गेम खेल रही थीं माधवी पुरी बुच? जानें पूरी इनसाइड स्टोरी

करोड़ों निवेशकों की उम्मीदों, सपनों और उनकी मेहनत की कमाई का प्रतीक माने जाने वाला भारतीय शेयर बाजार आज एक बड़े संकट और अविश्वास के दौर से गुजर रहा है. सेबी (SEBI) जैसे प्रतिष्ठित रेगुलेटर पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं और इन सवालों के केंद्र में हैं सेबी की पूर्व चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच. जेन स्ट्रीट स्कैंडल के खुलासे के बाद यह स्पष्ट हो रहा है कि यह सिर्फ एक रेगुलेटरी चूक नहीं, बल्कि संभावित निजी स्वार्थ, नीति आधारित मुनाफाखोरी और संगठित सट्टेबाजी के जाल की एक खौफनाक कहानी है. आइए जानते हैं इस पूरे प्रकरण की इनसाइड स्टोरी, जो तकनीक, ट्रेडिंग और ताकत का खतरनाक कॉम्बिनेशन है.

1. वीकली एक्सपायरी: सट्टेबाजों को खुला मैदान
माधबी पुरी बुच के कार्यकाल में जो सबसे विवादास्पद कदम उठाया गया, वह था वीकली ऑप्शन एक्सपायरी की शुरुआत. पहले डेरिवेटिव्स मार्केट में केवल मंथली एक्सपायरी होती थी, जिससे अस्थिरता और सट्टेबाजी सीमित रहती थी. लेकिन वीकली एक्सपायरी ने हाई-फ्रीक्वेंसी ट्रेडर्स (HFTs) और बड़े प्लेयर्स के लिए हर हफ्ते जुगाड़ से मुनाफा कमाने का नया रास्ता खोल दिया. हर गुरुवार को बाजार में जबरदस्त उतार-चढ़ाव देखने को मिला. रिटेल इन्वेस्टर्स भ्रमित और नुकसान में रहे, लेकिन कुछ चुनिंदा ट्रेडर्स ने भारी मुनाफा कमाया. एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह बदलाव जानबूझकर लाया गया, ताकि एक खास वर्ग को फायदा हो और बाकी बाजार को भ्रमित किया जा सके.

2. दिखावे की सख्ती और असली खेल
एक तरफ बुच सार्वजनिक मंचों पर F&O ट्रेडिंग को जोखिम भरा बताती रहीं, दूसरी तरफ उन्होंने ही उस सिस्टम को बढ़ावा दिया जो सट्टेबाजी के लिए अनुकूल था. वे F&O ट्रेडिंग की संख्या सीमित करने, लॉट साइज बढ़ाने की बातें करती रहीं. लेकिन असल में जमीनी कार्रवाई और फैसले सिर्फ बड़े ट्रेडर्स के हित में जाते रहे. क्या यह एक फेक प्रतिबंध का नाटक था, ताकि आम निवेशकों को डराकर हटाया जाए और पीछे से बड़े निवेशक पूरे सिस्टम पर हावी हो सकें?

3. सिंगापुर कनेक्शन: टकराव या षड्यंत्र?
सबसे गंभीर आरोप माधबी पुरी बुच पर यह लग रहे हैं कि उनके और सिंगापुर में स्थित कुछ पारिवारिक निवेशों के बीच हितों का टकराव (Conflict of Interest) था. सूत्रों के मुताबिक, सिंगापुर के कुछ फंड्स, जो हाई-फ्रीक्वेंसी और डेरिवेटिव्स स्ट्रैटेजी पर आधारित थे, उन पर बुच के पारिवारिक हित जुड़े थे. ये फंड्स वही स्ट्रैटेजी अपनाते थे जो बाद में जेन स्ट्रीट के केस में उजागर हुई. यह आरोप बेहद गंभीर है, क्योंकि एक रेगुलेटर जिसकी जिम्मेदारी होती है बाजार में निष्पक्षता बनाए रखने की, अगर खुद ही उससे निजी लाभ ले रही हो, तो भरोसे का क्या होगा?

4. NSE ने दिया था अलर्ट, लेकिन सेबी रहा खामोश
सूत्रों के अनुसार NSE ने जनवरी 2024 से SEBI को लगातार अलर्ट भेजे, जिनमें असामान्य वोलैटिलिटी, IV (Implied Volatility) में अचानक उछाल और इंडेक्स के शातिर मूवमेंट्स की जानकारी दी गई. 28 नवंबर से 30 दिसंबर 2024 तक, कई बार IV में तीन सिग्मा से ऊपर की छलांग देखी गई, जिससे इंडेक्स में 400 से 1900 पॉइंट तक की चालें हुईं. 17 दिसंबर 2024 को 350 पॉइंट की चाल हुई, जिसे SEBI ने खुद अपनी रिपोर्ट में “मिडवीक मैनिपुलेशन” माना. लेकिन इन सभी डेटा के बावजूद सेबी की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं की गई. क्या इसलिए क्योंकि इस पूरे गेम से कहीं ना कहीं सेबी प्रमुख खुद लाभान्वित हो रही थीं?

5. जेन स्ट्रीट स्कैम: ₹4,843 करोड़ नहीं, ₹1 लाख करोड़ का खेल?
SEBI की रिपोर्ट में जेन स्ट्रीट पर ₹4,843 करोड़ के अवैध मुनाफे का आरोप है. लेकिन अंदरूनी सूत्रों का दावा है कि यह असली आंकड़े का सिर्फ एक हिस्सा है. असल लूट का आंकड़ा ₹1 लाख करोड़ तक हो सकता है. जेन स्ट्रीट के साथ 3-4 और सहयोगी फर्में भी इस मैनिपुलेशन में शामिल थीं. यह किसी एक दिन का मामला नहीं, बल्कि साल भर चलने वाला एक संगठित घोटाला था, जिसे SEBI की निगरानी में खुली छूट मिल रही थी.

6. विवादों की कुंडली: हिंडनबर्ग से कांग्रेस तक
जेन स्ट्रीट स्कैंडल से पहले भी माधबी पुरी बुच का कार्यकाल विवादों से भरा रहा. हिंडनबर्ग रिपोर्ट में अडानी समूह पर गंभीर आरोप लगे थे, लेकिन सेबी की तरफ से ढीली और रहस्यमयी जांच की गई. कांग्रेस पार्टी ने कई बार प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बुच की नियुक्ति प्रक्रिया, पारदर्शिता और हितों के टकराव पर सवाल उठाए थे. इन सभी विवादों को जोड़ें तो साफ होता है कि SEBI की निष्पक्षता उसी समय से संदेह के घेरे में थी.

7. नया चेहरा, नई उम्मीद?
सेबी के नए प्रमुख तुहिन कांता पांडे ने जेन स्ट्रीट पर कार्रवाई करते हुए अपनी मंशा स्पष्ट की है. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या जांच केवल जेन स्ट्रीट तक सीमित रहेगी? या फिर बुच के कार्यकाल, उनके फैसलों और कथित लाभ की स्वतंत्र, पारदर्शी और सार्वजनिक जांच की जाएगी? क्योंकि जब तक रेगुलेटर की भूमिका ही साफ नहीं होती, तब तक बाजार में विश्वास बहाल नहीं हो सकता.

 

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