ऑफिस में AC, घर में परदे और बाहर धूप की दूरी! कैसे मॉडर्न लाइफस्टाइल बना रही है भारत को 'विटामिन-डी डिफिशियेंट'?
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ऑफिस में AC, घर में परदे और बाहर धूप की दूरी! कैसे मॉडर्न लाइफस्टाइल बना रही है भारत को 'विटामिन-डी डिफिशियेंट'?

भारत एक ऐसा देश है जहां साल भर धूप की कोई कमी नहीं होती, फिर भी देश की बड़ी आबादी विटामिन डी की कमी से जूझ रही है. एक ताजा अध्ययन के अनुसार, हर पांचवां भारतीय इस कमी से जूझ रहा है.

ऑफिस में AC, घर में परदे और बाहर धूप की दूरी! कैसे मॉडर्न लाइफस्टाइल बना रही है भारत को 'विटामिन-डी डिफिशियेंट'?

भारत एक ऐसा देश है जहां साल भर धूप की कोई कमी नहीं होती, फिर भी देश की बड़ी आबादी विटामिन डी की कमी से जूझ रही है. हाल ही में ICRIER और ANVKA फाउंडेशन द्वारा किए गए एक अध्ययन में सामने आया कि हर पांचवां भारतीय इस कमी से जूझ रहा है. यह समस्या देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग लेवल की है, लेकिन पूर्वी भारत में स्थिति सबसे ज्यादा खराब है, जहां लगभग 39% लोग इस कमी से पीड़ित पाए गए.

विटामिन डी की कमी के पीछे सबसे बड़ा कारण हमारी बदलती लाइफस्टाइल है. आज के दौर में शहरी जीवन का मतलब है कि सुबह से शाम तक एसी ऑफिस में बैठना, घर पर मोटे परदों के पीछे रहना और बाहर निकलते समय सनस्क्रीन लगाना या छाता लेकर निकलना. इन सभी चीजों का असर यह होता है कि शरीर को नेचुरल रूप से मिलने वाला विटामिन डी अब नहीं मिल पाता.

ऑफिस के लंबे घंटे, स्क्रीन टाइम और इनडोर एक्टिविटीज के कारण लोग धूप में कुछ मिनट भी नहीं बिता पाते. वहीं, महिलाएं विशेष रूप से ज्यादा प्रभावित हैं क्योंकि पारंपरिक कपड़े, धूप से बचने की सामाजिक सोच और घरेलू जिम्मेदारियों के चलते वे भी पर्याप्त सूरज की रोशनी नहीं ले पातीं.

विटामिन डी की कमी सिर्फ हड्डियों तक सीमित नहीं
विटामिन डी की कमी से सिर्फ हड्डियां ही नहीं, पूरा शरीर प्रभावित होता है. इससे बच्चों में रिकेट्स और बड़ों में हड्डियों की कमजोरी (ऑस्टियोमलेशिया) जैसी समस्याएं होती हैं. इसके साथ ही मसल्स की कमजोरी, थकान, मूड में उतार-चढ़ाव और डिप्रेशन भी हो सकते हैं. यह कमी दिल की बीमारी, मधुमेह और कुछ प्रकार के कैंसर के खतरे को भी बढ़ा सकती है.

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एक्सपर्ट का क्या कहना
आकाश हेल्थकेयर के मैनेजिंग डायरेक्टर और स्टडी के को-ऑथर डॉ. आशीष चौधरी का कहना है कि विटामिन डी की कमी एक मूक महामारी है. यह सिर्फ हड्डियों की समस्या नहीं है, बल्कि पूरे शरीर के इम्यून सिस्टम को प्रभावित करती है और गंभीर बीमारियों का कारण बन सकती है. इस पर ध्यान देना जरूरी है क्योंकि इसका असर सिर्फ पर्सनल हेल्थ पर नहीं, बल्कि पूरे देश की हेल्थकेयर सिस्टम और आर्थिक स्थिति पर भी पड़ता है.

समाधान क्या है?
विशेषज्ञों का मानना है कि इस चुनौती से निपटने के लिए एक नेशनल लेवल की स्ट्रेटेजी की जरूरत है. इसमें शामिल होना चाहिए:
- दूध, तेल और अनाज जैसे रोजमर्रा के फूड में विटामिन डी का फोर्टिफिकेशन.
- खतरे वाले ग्रुप को विटामिन डी सप्लीमेंट निःशुल्क या रियायती दर पर उपलब्ध कराना.
- बड़े लेवल पर जागरूकता अभियान, खासतौर पर स्कूलों, ऑफिस और हेल्थ सेंटर के जरिए
- सस्ते और सरल जांच विकल्पों की उपलब्धता.
- अलग-अलग मंत्रालयों और संगठनों के बीच समन्वय.
 -2047 के लक्ष्य की ओर एक मजबूत कदम.

Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.

 

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शिवेंद्र सिंह

ज़ी न्यूज़ में सीनियर सब एडिटर. वर्तमान में बिजनेस और फाइनेंशियल न्यूज लिखते हैं. पत्रकारिता में राष्ट्रीय, क्षेत्रीय, खेल, स्वास्थ्य, लाइफस्टाइल, ट्रैवल बीट्स पर काम का 9 वर्षों का अनुभव. सटीकता औ...और पढ़ें

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