DNA: धराली में जलप्रहार के बाद अब एक और खतरा! कहीं फिर अचानक ना मच जाए तबाही; पढ़ें ग्राउंड रिपोर्ट
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DNA: धराली में जलप्रहार के बाद अब एक और खतरा! कहीं फिर अचानक ना मच जाए तबाही; पढ़ें ग्राउंड रिपोर्ट

Harsil Cloudburst: उत्तराखंड में आई आपदा का एक खौफनाक साक्ष्य हर्षिल झील के रूप में आई है. एक ऐसी अनचाही झील, जो बादल फटने के बाद बनी, जिसने वहां का भूगोल बदल दिया. भागीरथी नदी की धारा को बदल दिया. जो धराली, हर्षिल और आसपास के लोगों के लिए डर का नया पर्याय बन गई है. हजारों लोगों के लिए खतरे की घंटी बजा रही है.

DNA: धराली में जलप्रहार के बाद अब एक और खतरा! कहीं फिर अचानक ना मच जाए तबाही; पढ़ें ग्राउंड रिपोर्ट

Dharali Cloudburst: उत्तराखंड में जल-तांडव से हाहाकार मचा हुआ है. कहते हैं कि प्रकृति जब प्रतिशोध लेती है, क्रोधित पानी जब प्रचंड प्रहार करता है. जब त्रासदी आती है. तब उसके परिणाम कितने डरावने होते हैं. उसका 5 दिनों से पहाड़ साक्षात्कार कर रहा है.

उत्तराखंड में आई आपदा का एक खौफनाक साक्ष्य हर्षिल झील के रूप में आई है. एक ऐसी अनचाही झील, जो बादल फटने के बाद बनी, जिसने वहां का भूगोल बदल दिया. भागीरथी नदी की धारा को बदल दिया. जो धराली, हर्षिल और आसपास के लोगों के लिए डर का नया पर्याय बन गई है. हजारों लोगों के लिए खतरे की घंटी बजा रही है.

लोग भी देखकर हो रहे हैरान

सबसे पहले ये जानना जरूरी है कि जहां कल तक नदी बह रही थी, वहां अचानक विशालकाय जलाशय कैसे बन गया? हुआ ये कि बादल फटने के बाद बेहिसाब बारिश हुई. पहाड़ दरक गए। चट्टान टूटकर नीचे गिरी. मलबा जमा हो गया. नतीजा ये हुआ कि पत्थर के मलबे ने नदी के बीच में ही एक प्राकृतिक बांध बना दिया. गंगोत्री के हिमनद से निकलने वाली जो भागीरथी नदी बह रही थी, उसके बहाव में रूकावट आई. पीछे का पानी ठहरता चला गया. वहां पर करीब तीन किलोमीटर की एक अनचाही झील बन गई है. वही हर्षिल झील, जो अब चुनौती बनी हुई है.

धराली और आसपास के लोगों के लिए ये नई हर्षिल झील कितना बड़ा खतरा है? ये भी जानना बेहद जरूरी है. जहां ये झील बनी है, उसके नजदीक में सेना का कैम्प है. सेना के कैम्प के कई हिस्से उसी झील में डूब गए हैं. गंगोत्री नेशनल हाईवे डूब चुका है. आसपास के गांव और कस्बों पर बाढ़ के खतरे का मीटर बहुत ऊपर है. अगर पानी का दबाव बढ़ता है. अचानक मलबा हटता या टूटता है तो धराली और हर्षिल में फिर से तबाही आ सकती है. डराने वाली बात ये है कि हर्षिल और धराली पहले से ही भू-स्खलन और बाढ़ से प्रभावित है.

जी न्यूज के संवाददाता हर्षिल झील के पास पहुंचे. दृश्य बेहद डरावना था. उन्होंने जो देखा, कैमरों में कैद किया. अब आप समझिए कि जलाशय ने कैसे भूगोल बदल दिया है.

नदी के प्रवाह क्षेत्र में अगर मलबा जमा ही रहा. उसे जल्द से जल्द नहीं हटाया गया तो झील का ये बढ़ता पानी और बड़ा खतरा बन सकता है. क्योंकि जानकार बताते हैं कि पहाड़ी क्षेत्रों में नदियों के बीच झील बनना हमेशा ही खतरनाक होता है. ऐसा इसलिए क्योंकि जहां जमीन समतल है, वहां आसानी से पानी निकल जाता है, लेकिन जहां पहाड़ी इलाके हैं, वहां जल प्रवाह के बीच पहाड़ भी बाधा रहता है. ऐसे में झील से जल निकासी नहीं होती है, तो धीरे-धीरे पानी एक बड़े डैम का आकार ले लेता है. अगर ये पानी उस झील के टूटने के बाद डिस्चार्ज होता है तो उसकी मात्रा बहुत ज्यादा होती है. और खतरे इंटेनसिटी और कहीं ज्यादा रहती है.

जलप्रहार से हर्षिल तबाह

जाहिर है कि हर्षिल में नई मुसीबत खड़ी है. रास्ते में जगह-जगह पैर धंस रहे हैं. चुनौतियों को पार करते हुए जी न्यूज़ के संवाददाता यहां से थोड़ा और आगे बढ़े. सेना के उस कैम्प तक पहुंचे, जो जल-प्रहार से क्षतिग्रस्त है.

हर्षिल झील ने सेना कैम्प को बुरी तरह प्रभावित किया है. उत्तराखंड के लोग ऐसी ही झील वाली एक तबाही पहले भी झेल चुके है. ये बात तब की है, जब 12 बरस पहले यानी 2013 में केदारनाथ की त्रासदी आई थी. तब चौराबाड़ी ग्लेशियर के पास बनी एक झील का बांध फट गया था, जिससे मंदाकिनी नदी में बाढ़ आ गई. उसमें करीब पांच हजार लोगों की जान चली गई थी. उस घटना ने चौराबाड़ी झील का स्वरूप बदल दिया था. उसके अवशेष आज भी किसी जोखिम से कम नहीं हैं. यही वजह है कि जब से ये नई हर्षिल झील अस्तित्व में आई है, तब से ये लोगों को डरा रही है.

पांच साल पहले भी ऐसा हुआ था

हालांकि ऐसा नहीं है कि पहली बार नदी के बीच में अचानक अस्थाई झील बनी है. पांच साल पहले भी ऐसा ही हुआ था. ये 2021 की बात है. तब चमोली जिले में ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदियों में एक हैंगिंग ग्लेशियर टूट गया था. तब भी पत्थर के मलबों ने नदी के बहाव को रोक दिया था. भीषण बाढ़ की वजह से एक अस्थायी झील बन गई थी. हालांकि बाद में प्रशासन ने उस झील से पानी निकालने के लिए विशेष व्यवस्था की थी.

इस बार जब हर्षिल में झील बनी है, तब उपाय वही है. किसी तरह हर्षिल झील से पानी धीरे-धीरे निकले या फिर पानी को निकाला जाए. हालांकि राहत की बात ये है कि झील से धीरे-धीरे पानी बाहर निकल रहा है. लेकिन जब तक सारा पानी बिना नुकसान पहुंचाए निकल नहीं जाता, तब तक खतरा बना हुआ है. भागीरथी नदी का मैप बदलने वाली ये अस्थायी मगर अनचाही झील का डर सबको सता रहा है. आसपास के लोगों का कहना है कि जब तक इसका समाधान नहीं हो जाता, तब तक डर का मीटर ऊपर ही रहेगा.

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रचित कुमार

नवभारत टाइम्स अखबार से शुरुआत फिर जनसत्ता डॉट कॉम, इंडिया न्यूज, आजतक, एबीपी न्यूज में काम करते हुए साढ़े 3 साल से ज़ी न्यूज़ में हैं. शिफ्ट देखने का लंबा अनुभव है.

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