जंगल के जय-वीरू नहीं रहे! जब त‌क साथ रहे कोई बाल बांका नहीं कर पाया, अकेले पाकर दुश्मनों ने किया था वार, अमर हुई दोस्ती?
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जंगल के जय-वीरू नहीं रहे! जब त‌क साथ रहे कोई बाल बांका नहीं कर पाया, अकेले पाकर दुश्मनों ने किया था वार, अमर हुई दोस्ती?

गुजरात के अहमदाबाद गिर के जंगल के जय और वीरू की दहाड़ अब हमेशा के लिए शांत हो गई है. दो ऐसे शेर जिनकी दोस्ती की कहानियां अब अमर हो गई हैं. जय और वीरू में वीरू की मौत एक महीने पहले हो गई थी. अब जय ने भी मंगलवार को आखिरी सांस ली. लेकिन उनकी यारी जंगल से लेकर शहर तक अमर हो गई.

 

जंगल के जय-वीरू नहीं रहे! जब त‌क साथ रहे कोई बाल बांका नहीं कर पाया, अकेले पाकर दुश्मनों ने किया था वार, अमर हुई दोस्ती?

गुजरात के अहमदाबाद गिर के जंगल के जय-वीरू की दहाड़ अब हमेशा के लिए शांत हो गई है. दो ऐसे शेर जिनकी दोस्ती की कहानियां अब अमर हो गई हैं. जय और वीरू में वीरू की मौत एक महीने पहले हो गई थी. अब जय ने भी मंगलवार को आखिरी सांस ली. लेकिन उनकी यारी जंगल से लेकर शहर तक अमर हो गई. आइए जानते हैं इन दोनों की कहानी जो भावुक कर देंगी. पीएम मोदी भी इनके मुरीद थे. 

जय और वीरु की जोड़ी खत्म: जंगल से शहर तक अमर हुई उनकी दोस्ती
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, अहमदाबाद गिर के जंगल की वो दहाड़ अब खामोश हो गई, जो जय-वीरू की थी. ये दो शेर जिनकी दोस्ती की मिसाल दी जाती थी, अब एक महीने के अंदर ही मौत की आगोश में चले गए. 7 जून को लड़ाई में दोनों को गंभीर चोटें आई थीं. वीरू 11 जून को ही जिंदगी से हार गया और जय ने मंगलवार दोपहर को आखिरी सांस ली. लेकिन उनकी यारी जंगल से लेकर शहर तक अमर हो गई.

'शोले' जैसी यारी, पीएम मोदी ने भी किया था दीदार
'शोले' फिल्म के जय-वीरू की तरह ये दोनों करीब पांच साल तक हमेशा साथ रहे, गिर के जंगल में अपनी ताकत और दोस्ती का झंडा बुलंद किया. यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस साल अपनी गिर यात्रा के दौरान इस अनोखी जोड़ी के दीदार किए थे. वन विभाग के एक अधिकारी ने कहा, "जब तक साथ थे, कोई इनका बाल बांका नहीं कर पाया. लेकिन अकेले पड़ने पर दुश्मन शेरों ने मौका पा लिया." जय और वीरू ने मलंका से कासिया नेस और गढ़ारिया तक जंगल के आधे पर्यटन क्षेत्र पर राज किया. इनके समूह में 15 मादा शेर, 8-9 युवा शेर और 14 छोटे शावक थे.

जब दुश्मनों ने किया हमला
7 जून को जय पर कासिया क्षेत्र के शेरों ने हमला किया. उसकी पीठ पर गहरे घाव बने, और उसे इलाज के लिए ले जाया गया. अकेले रह गए वीरू पर खोखर क्षेत्र के शेरों ने वार किया. वीरू की पीठ पर तीन-चार गहरे दांतों के निशान थे. उसने खाना छोड़ दिया और 11 जून को चल बसा. जय का इलाज भी चला. वन विभाग ने आधुनिक दवाओं से लेकर आयुर्वेद तक सब आजमाया, लेकिन जय को नहीं बचा पाए. डिप्टी कंजर्वेटर मोहन राम ने बताया, "हमने हर मुमकिन कोशिश की, लेकिन चोटें बहुत गंभीर थीं."

जंगल की मशहूर जोड़ी
जय-वीरू की खूबसूरती और दोस्ती पर कई डॉक्यूमेंट्री बनीं. घास वाले इलाकों में दिखने वाली ये जोड़ी हमेशा साथ रहती थी. वन कर्मियों ने इन्हें जय-वीरू नाम दिया. पिछले कुछ महीनों से दूसरी शेरों से टक्कर बढ़ रही थी, लेकिन इनकी एकता ने सबको दूर रखा. एक गार्ड ने कहा, "जय-वीरू का नाम और उनकी यारी हमेशा याद रहेगी." गिर में पहले धर्म-वीर की जोड़ी भी ऐसी ही मशहूर थी.

अमर हो गई दोस्ती
जय और वीरू के बिना गिर का जंगल सूना लगेगा, लेकिन उनकी दोस्ती की कहानी जंगल से लेकर शहर तक अमर हो गई. उनकी यारी की गूंज हमेशा वन कर्मियों और पर्यटकों के दिलों में रहेगी.

इससे खबर से जुड़े 5 सवाल और जवाब
1. जंगल के जय और वीरू कौन थे?
जय और वीरू गिर के जंगल के दो नर शेर थे, जिनकी दोस्ती और ताकत की वजह से उन्हें 'शोले' के जय-वीरू के नाम से जाना जाता था.

2. जंगल के जय और वीरू मौत कैसे हुई?
7 जून को आपसी लड़ाई में दोनों को गंभीर चोटें आईं. वीरू 11 जून को मर गया, और जय मंगलवार को इलाज के दौरान चल बसा.

3. जंगल के जय और वीरू की दोस्ती इतनी खास क्यों थी?
पांच साल तक साथ रहकर इन्होंने जंगल के बड़े हिस्से पर राज किया. 15 मादा शेरों और कई शावकों का समूह संभाला. उनकी यारी मिसाल थी.

4. जंगल के जय और वीरू की मौत पर वन विभाग ने क्या किया?
वन विभाग ने आधुनिक दवाओं और आयुर्वेद से इलाज किया, लेकिन दोनों की चोटें इतनी गहरी थीं कि उन्हें बचाया नहीं जा सका.

5. क्या जय-वीरू की कहानी खत्म हो गई?
नहीं, उनकी दोस्ती की कहानी जंगल से लेकर शहर तक अमर हो गई. उनकी यारी को हमेशा याद किया जाएगा.

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