India-UK FTA: भारत और ब्रिटेन ने गुरुवार को फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (एफटीए) पर हस्ताक्षर कर दिए. इस साइन के बाद एक नई उम्मीद जागी है. इस समझौते से जहां भारत को निर्यात बढ़ाने में मदद मिलेगी, वहीं उपभोक्ताओं को भी सस्ते और बेहतर प्रोडक्ट मिलेंगे.
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India UK Agreement: चार साल तक चली लंबी प्रक्रिया के बाद भारत और ब्रिटेन ने गुरुवार को फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (एफटीए) पर हस्ताक्षर कर दिए. दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों, नरेंद्र मोदी और कीर स्टार्मर, की मौजूदगी में समझौते को अंतिम रूप दिया गया. समझौते की शर्तों के बारे में अभी विस्तार से नहीं बताया गया है, लेकिन रिपोर्ट्स के मुताबिक समझौते के तहत भारत अब ब्रिटेन से आने वाले सामानों पर 15% की बजाय 3% औसत आयात शुल्क लगाएगा.
भारत से ब्रिटेन को होने वाले समुद्री उत्पादों के 99% निर्यात जैसे झींगा, फिश मील और फीड पर अब कोई शुल्क नहीं लगेगा. इस समझौते से जहां भारत को निर्यात बढ़ाने में मदद मिलेगी, वहीं उपभोक्ताओं को भी सस्ते और बेहतर प्रोडक्ट मिलेंगे. टेक्सटाइल, फार्मा, फूड प्रोसेसिंग और इंजीनियरिंग सेक्टर के लिए यह समझौता मील का पत्थर साबित हो सकता है. इतना ही नहीं, यह समझौता वैश्विक स्तर पर भारत की बढ़ती आर्थिक हैसियत की ओर भी इशारा करता है. यदि दुनिया के विकसित देश भारत के साथ मुफ्त व्यापार समझौता कर रहे हैं तो इसका साफ मतलब है कि उन्हें भारत में संभावनाएं दिख रही हैं. दूसरी ओर, भारत अब खुद को एक मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में पेश कर रहा है. उसे अपने उत्पादों के लिए बाजार की जरूरत है और फ्री ट्रेड एग्रीमेंट इसमें ममददगार हो सकता है. ये कैसे संभव है, ये समझने से पहले जानते हैं कि फ्री ट्रेड एग्रीमेंट होता क्या है.
एफटीए यानी बिना शर्तों के व्यापार
मुक्त व्यापार समझौता एक ऐसी व्यवस्था है जहां दो या दो से अधिक देश टैरिफ, कोटा और अन्य व्यापार बाधाओं को कम करके या पूरी तरह हटाकर एक दूसरे के लिए अपने बाजार को खोलते हैं. टैरिफ हटाने से दोनों देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं का व्यापार आसान हो जाता है. भारत और ब्रिटेन के बीच इस सममझौते से दोनों देशों के बीच सालाना व्यापार में 34 अरब डॉलर यानी 2.92 लाख करोड़ रुपये तक की वृद्धि होगी. यह समझौता केवल दो देशों के बीच व्यापार बढ़ाने तक सीमित नहीं है, न ही ये केवल आर्थिक आंकड़ों तक सीमित है. यह भारत को वैश्विक सप्लाय चेन और डिजिटल इकोनॉमी के केन्द्र में स्थापित कर सकता है. यह समझौता विश्व के लिए एक संदेश है कि भारत अब सिर्फ उभरती अर्थव्यवस्था नहीं, बल्कि एक वैश्विक आर्थिक शक्ति है.
निर्यात बढ़ने से कम होगा व्यापार घाटा
इस समझौते से भारत के निर्यात आधारित विकास को बढ़ावा मिलेगा. ब्रिटेन में भारतीय उत्पादों जैसे कपड़ा, केमिकल, फार्मा, ऑटो-पुर्जे, खाद्य वस्तुओं पर लगने वाले शुल्क में कटौती से निर्यात को बढ़त मिलेगी. निर्यात बढ़ने से व्यापार घाटा नियंत्रित होगा. समझौते से ब्रिटिश कंपनियों के भारत में आने की प्रक्रिया आसान होगी. इससे निर्माण, रिटेल, शिक्षा और वित्तीय सेवा क्षेत्रों में निवेश बढ़ेगा. उद्योग में तकनीक, प्रबंधन और पूंजी का संचार होगा जो देश के औद्योगिक विकास को गति देगा. ब्रिटिश निवेश और व्यापारिक विस्तार से देश में रोजगार के नए अवसर बनेंगे. मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत की अवधारणा को मजबूती मिलेगी. घरेलू उद्योगों को नए बाजार मिलेंगे. मेक इन इंडिया अभियान को प्रोत्साहन मिलेगा और भारत ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब बनने की दिशा में तेजी आगे बढ़ेगा.
उपभोक्ताओं को मिलेगा ये फायदा
इस समझौते से आम उपभोक्ता को भी सीधे राहत मिलेगी. टैरिफ घटने से कई आयातित वस्तुएं जैसे ब्रिटिश चॉकलेट, व्हिस्की, सौंदर्य प्रसाधन और कुछ विशेष तकनीकी उत्पाद भारतीय बाजार में सस्ते होंगे. निर्यात में वृद्धि और ब्रिटिश निवेश से औद्योगिक गतिविधियां बढ़ेंगी, जिससे विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे. इस समझौते से छात्रों और पेशेवरों के लिए वीजा प्रक्रियाएं सरल होने की संभावना भी है. ब्रिटेन की यूनिवर्सिटीज में भारतीय छात्रों को अधिक स्कॉलरशिप व कोर्स विकल्प मिल सकते हैं.
चीन-अमेरिका की बढ़ेगी टेंशन!
भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौता कई अन्य देशों को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से प्रभावित कर सकता है. यह चीन के लिए खास तौर पर चिंता का विषय हो सकता है क्योंकि भारतीय गारमेंट, फार्मा और ऑटो सेक्टर में ब्रिटिश निवेश बढ़ने से चीन के प्रभुत्व को चुनौती मिल सकती है. डिजिटल क्षेत्र में सहयोग से भारत-यूके टेक अलायंस बन सकता है जो चीन की तकनीकी पकड़ को संतुलित कर सकता है. भारत और यूरोपीय संघ के बीच लंबे समय से एफटीए को लेकर बातचीत चल रही है. ब्रिटेन के साथ सफल समझौते से अब ईयू पर दबाव बढ़ेगा कि वह भी भारत के साथ जल्दी समझौता करे. अमेरिका और भारत के बीच अब तक कोई पूर्ण एफटीए नहीं हुआ है. फिलहाल दोनों देशों के बीच ट्रेड डील को लेकर बातचीत चल रही है. ब्रिटेन के साथ समझौते से अमेरिका भी टैरिफ की दरों पर फिर से विचार करने को मजबूर हो सकता है.