'सांवले रंग को लेकर ताने मारना, खाना पकाने की आलोचना करना क्रूरता नहीं...', बॉम्बे HC के इस फैसले से मचा बवाल
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'सांवले रंग को लेकर ताने मारना, खाना पकाने की आलोचना करना क्रूरता नहीं...', बॉम्बे HC के इस फैसले से मचा बवाल

Bombay HC: हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि अपनी पत्नी के सांवले रंग और खाना बनाने की आलोचना क्रूरता नहीं है. अदालत ने इस मामले एक आरोपी को बरी कर दिया है.    

 

'सांवले रंग को लेकर ताने मारना, खाना पकाने की आलोचना करना क्रूरता नहीं...', बॉम्बे HC के इस फैसले से मचा बवाल

Bombay High Court: बॉम्बे हाईकोर्ट ने 27 साल पहले अपनी पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने और उसके प्रति क्रूरता दिखाने के लिए एक शख्स की दोषसिद्धि को खारिज कर दिया है.  कोर्ट का कहना है कि किसी महिला के सांवले रंग को लेकर उसे ताना मारना या उसे खाना पकाने में दोष निकालना क्रूरता नहीं है. कोर्ट आरोपी सदाशिव रूपनवार की ओर से दायर की गई अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसे साल 1998 में सेशन कोर्ट की ओर से उनकी 22 साल की पत्नी प्रेमा की मौत के बाद उसे आत्महत्या के लिए उकसाने और क्रूरता के लिए सजा सुनाई गई थी.    

पिता को किया रिहा पति बना दोषी 
प्रेमा अपनी शादी के 5 साल बाद जनवरी साल 1998 में अपने ससुराल से लापता हो गई था. उसका शव एक कुएं में मिला था. पुलिस ने प्रेमा के परिवार की शिकायत के आधार पर उसके रूपनवर और उसके पिता के खिलाफ उत्पीड़न समेत मौत का आरोप लगाया था. मामले में निचली अदालत ने पिता को तो बरी कर दिया था, लेकिन रूपनवर को दोषी करार देते हुए उसे उकसाने के लिए 5 साल की सजा सुनाई थी. उस समय 23 साल के रूपनवर अपील दायर की थी.     

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वैवाहिक जीवन को न बनाए गंभीर 
जस्टिस एस एम मोदक की एकल पीठ ने कहा कि आरोप केवल पति की ओर से पत्नी के सांवले रंग को ताना मारने और दोबारा शादी करने की धमकी तक ही सीमित थे. वहीं ससुर ने उसके खाना बनाने को लेकर आलोचना की थी. कोर्ट ने कहा,' इन्हें वैवाहिक जीवन से उपजे झगड़े कहा जा सकता है. ये घरेलू झगड़े हैं. इन्हें इतना गंभीर नहीं कहा जा सकता कि प्रेमा आत्महत्या के लिए मजबूर हो जाए.' कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष उत्पीड़न और आत्महत्या के बीच सीधा संबंध स्थापित करने में नाकाम रहा है. कोर्ट ने कहा,' उत्पीड़न हुआ था, लेकिन यह उस तरह का उत्पीड़न नहीं था जिसके आधार पर आपराधिक कानून लागू किया जा सके.' जस्टिस ने कहा कि आत्महत्या के लिए उकसाने के तहत दोषसिद्धि के लिए उकसाने और आत्महत्या दोनों को स्वतंत्रता से साबित किया जाना चाहिए.   

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निचली अदालत को फटकार 
कोर्ट ने विवाहित महिला के लिए क्रूरता की धारा के तहत दिए गए स्पष्टीकरण को गलत तरीके लागू करने के मामले में निचली अदालत की भी आलोचना की. कोर्ट ने कहा,' विद्वान न्यायाधीश इन धाराओं के मूल सिद्धांतों और तत्वों को भूल गए हैं.' वहीं कोर्ट ने रूपनवार को सभी आरोपों से बरी करते हुए उसकी सजा रद्द कर दी.  

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