Adivasi Divorce Practices: इसी साल की शुरुआत में एक आदिवासी दंपति तलाक मांगने पहुंचे तो छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने उल्टा वकील से ही पूछ लिया था कि आदिवासी क्लाइंट को तलाक किस तरह से दिया जाए. वो इसलिए क्योंकि आदिवासी समाज में ना तो हिंदू विवाह अधिनियम लागू होता है और ना ही विशेष विवाह अधिनियम.
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Divorce in tribal communities India:अगर पिछले कुछ सालों का ट्रेंड देखें तो तलाक लेने की दर बहुत तेजी से बढ़ी है. सिर्फ मेट्रो शहर ही नहीं बल्कि टू टियर शहरों में भी यह रफ्तार तेजी से बढ़ रही है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आदिवासियों में तलाक का क्या प्रोसेस है. यह सवाल जितना जटिल है, जवाब भी वैसा ही है.
दरअसल इसी साल की शुरुआत में एक आदिवासी दंपति तलाक मांगने पहुंचे तो छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने उल्टा वकील से ही पूछ लिया था कि आदिवासी क्लाइंट को तलाक किस तरह से दिया जाए. वो इसलिए क्योंकि आदिवासी समाज में ना तो हिंदू विवाह अधिनियम लागू होता है और ना ही विशेष विवाह अधिनियम. लिहाजा तलाक लेने के दौरान भी इन कानून का हवाला नहीं दिया जा सकता.
आदिवासियों में चलता है कस्टमरी लॉ
आदिवासी समुदाय की बात करें तो वहां की प्रथाएं, रीति-रिवाज या परंपराएं सब कस्टमरी लॉ यानी रूढ़ियों से चलते हैं. यही उनकी पहचान है. हालांकि आदिवासियों में तलाक बहुत कॉमन नहीं है. कुछ समुदायों में पत्नी को घर से बेदखल कर दिया जाता है. जबकि कुछ अन्य में ऐसा भी होता है कि अगर मर्द दूसरा विवाह करना चाहता है तो वह पहली पत्नी को कुछ पैसे देकर ऐसा कर सकता है. जबकि कुछ समुदायों में महिला को थोड़ी रकम देकर तलाक की प्रक्रिया पूरी की जाती है.
मगर ऐसे मामलों में आदिवासियों की जो पंचायत होती है, उसका फैसला सुप्रीम होता है. आदिवासियों में तलाक लेने की मुख्य वजह महिलाओं का बांझपन, वैवाहिक बंधन का टूटना, घरेलू मामलों के प्रति उदासीनता, पति के साथ रहने से इनकार, व्यभिचार, यौन अनिच्छा, आलस्य और आर्थिक अक्षमता माना जाता है. अगर आदिवासियों में महिलाएं पुरुषों को तलाक देना चाहें तो वे बीमारी, नशा, नपुंसकता, अन्य महिलाओं के साथ विवाहेतर यौन संबंध आदि के आधार पर दे सकती हैं. जबकि पुरुष इस आधार पर पत्नी को तलाक देते हैं कि वह पागल, चोर, डायन या बदचलन हो गई है.
आदिवासियों में कैसे लेते हैं तलाक
अब आपको विभिन्न आदिवासी समुदायों में तलाक की प्रक्रिया बताते हैं, जो बेहद अलग और दिलचस्प हैं. जैसे बैगा जनजाति की बात करें तो वहां एक लोटा गर्म पानी डालकर तलाक देने की प्रथा है. कहा जाता है कि ऐसा महिला को पवित्र करने के लिए किया जाता है. इसके बाद वह किसी दूसरे शख्स से विवाह कर सकती है. लेकिन पहले पति को जुर्माना वसूलने का हक है. ये जुर्मान गाय-बैल या कैश हो सकता है.
उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर के कोरवा आदिवासियों में पति का घर छोड़ने का आदेश ही पत्नी के लिए वहां से जाने और दोबारा शादी करने तक अपने माता-पिता के साथ रहने का फरमान होता है. जबकि भीलों में, पति ग्राम पंचायत बुलाकर अपनी पत्नी को तलाक देने की निशानी के तौर पर सार्वजनिक रूप से अपनी पगड़ी का एक टुकड़ा उसको दे देता है.
गोंडों में यह प्रथा काफी दिलचस्प है. यहां, अगर महिला अपने पति की इच्छा के बिना तलाक दे देती है, तो दूसरा पति पहले पति को मुआवज़ा देता है. मुआवज़े की रकम ग्राम पंचायत तय करती है.