पति-पत्नी का रिश्ता आपसी प्रेम और भरोसा पर टिका होता है लेकिन जब इसमें कोई गुंजाइश नहीं बचती तो लोग तलाक के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हैं. एक आईपीएस अधिकारी से जुड़ा मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था. आखिर में कोर्ट ने जो फैसला दिया वह महत्वपूर्ण है. कोर्ट ने आईपीएस अधिकारी से न सिर्फ माफी मांगने को कहा बल्कि इसे प्रचारित करने और भविष्य में पति या उसके परिवार को परेशान न करने का निर्देश दिया. पढ़िए पूरा मामला.
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Supreme Court IPS Divorce Case: एक वैवाहिक विवाद का निपटारा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि आईपीएस अधिकारी (महिला) को अपने पति से बिना शर्त माफी मांगनी होगी. यही नहीं, इसे अखबारों और सोशल मीडिया पर भी पब्लिश करवाना होगा. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इस कपल को तलाक की मंजूरी तो दे दी लेकिन साथ में जो आदेश दिया वो महत्वपूर्ण है. दोनों ने एक दूसरे पर आरोप लगाए थे लेकिन महिला के आरोप पर पति और उसके परिवार को काफी प्रताड़ना झेलनी पड़ी. ऐसे में कोर्ट ने आदेश दिया कि पत्नी, जो आईपीएस अधिकारी हैं उन्हें पति और उनके परिवार से बिना शर्त माफी मांगनी होगी. समझौते के तहत इसे अखबारों और सोशल मीडिया पर पब्लिश कराएं. यह मामला काफी अलग था. एक आईपीएस अधिकारी और दिल्ली के बिजनेसमैन कपल ने 2015 में शादी की थी. 2018 में वे अलग हो गए थे.
पहले मामला समझिए
शीर्ष अदालत दंपति की तरफ से दायर दो ट्रांसफर याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी. पत्नी ने यूपी में केस दायर किया था जबकि पति ने दिल्ली की रोहिणी अदालत में. आईपीएस अधिकारी ने तलाक की मांग की थी और गुजारा भत्ता या भरण-पोषण नहीं मांगा था. बदले में, पति ने अपनी आठ साल की बेटी की कस्टडी मांगी थी. यह वैवाहिक विवाद जल्द ही एक-दूसरे के खिलाफ दनादन मामलों की सीरीज बन गया. जी हां, पत्नी ने घरेलू हिंसा, बलात्कार का आरोप लगाया और आयकर संबंधी कंप्लेन कर दी. दूसरी तरफ, पति ने मानहानि का आरोप लगाया और पत्नी की आईपीएस उम्मीदवारी को चुनौती दे डाली.
पति से अलग होकर आईपीएस बनी महिला
दरअसल, महिला अपने पति से अलग होने और यूपी में गृहनगर जाने के तीन साल बाद 2022 में आईपीएस अफसर बनी थी. अदालत की तरफ से तय किए समझौते की शर्तों के अनुसार महिला ने गुजारा भत्ता या भरण-पोषण नहीं मांगा था.
पति और ससुर को जेल
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पत्नी द्वारा दायर मामलों के चलते पति 109 दिन तक और उसके पिता 103 दिन तक जेल में रहे. पूरे परिवार को शारीरिक एवं मानसिक आघात पहुंचा और उत्पीड़न का सामना करना पड़ा. उन्होंने जो कुछ सहा है, उसकी भरपाई किसी भी तरह से नहीं की जा सकती है.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला दिया?
शीर्ष अदालत ने आईपीएस अधिकारी और उसके माता-पिता को पति और उसके परिवार के सदस्यों से बिना शर्त माफी मांगने का निर्देश दिया. खास बात यह है कि इसे किसी मशहूर अंग्रेजी और एक हिंदी अखबार के राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित कराना होगा. सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश में कहा, 'यह माफीनामा सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी प्रकाशित और प्रसारित किया जाएगा.'
मां को मिली बच्ची की कस्टडी लेकिन...
सुप्रीम कोर्ट ने बच्ची की प्राइमरी कस्टडी मां को दी और पिता को उससे मिलने का अधिकार भी दिया. कोर्ट ने पति और उसके परिवार को पुलिस सुरक्षा भी प्रदान की है. साथ ही आईपीएस अधिकारी को चेतावनी दी कि वह भविष्य में आईपीएस अधिकारी के रूप में अपने पद और शक्ति या किसी दूसरे पद का उपयोग पति और उसके परिवार को किसी भी तरह से शारीरिक या मानसिक चोट पहुंचाने के लिए नहीं करेगी.
देश के चीफ जस्टिस बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने यह भी कहा कि यह माफीनामा लंबी कानूनी लड़ाई और उससे जुड़े भावनात्मक व मानसिक तनाव को सौहार्दपूर्ण ढंग से समाप्त करने के लिए दिया गया है. यह किसी भी पक्ष के प्रति पूर्वाग्रह से मुक्त है. इसका इस्तेमाल कभी भी उसके (महिला के) खिलाफ नहीं किया जाएगा.
संविधान के आर्टिकल 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को पूर्ण न्याय करने की शक्तियां मिली हुई हैं. इसके तहत अदालत सीधे तलाक दे सकती है. (Photo- AI)