Cloudburst In Tharali: धराली में फटे बादल के कारण आए सैलाब को देवदार के पेड़ रोक सकते थे, हालांकि आधुनिकरण के कारण आज इन पेड़ों की तादाद बेहद कम हो गई है.
उत्तराखंड में देवदार के घने जंगल होते हैं. ये पेड़ अपनी मजबूत लकड़ी और औषधीय गुणों के लिए जाने जाते हैं, खासतौर पर नैनीताल और अल्मोड़ा के जंगलों में ये पेड़ काफी पाए जाते हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हिमालय पर रिसर्च बुक लिख चुके प्रोफेसर शेखर पाठक का कहना है कि ये पेड़ धराली हादसा रोक सकते थे.
प्रोफेसर शेखर पाठक बताते हैं कि उत्तराखंड में कभी हिमालयी क्षेत्रों में जंगल देवदार के पेड़ों से भरे थे. यहां 1 वर्ग किलोमीटर में लगभग 400-500 देवदार पेड़ थे. आपदाग्रस्त धराली से ऊपर गंगोत्री वाले हिमालय में इनकी तादाद अधिक थी.
देवदार के पेड़ भले ही बादल फटे या भूस्खलन हो अपनी मजबूती के कारण मलबे और पानी को नीचे नहीं आने देते थे, लेकिन साल 1830 में इंडो-अफगान युद्ध से भागे अंग्रेज सिपाही फैडरिक विल्सन ने हर्षिल पहुंचकर देवदार को काटना शुरू कर दिया. ये दौर आज भी जारी है.
प्रोफेसर पाठक के मुताबिक देवदार के पेड़ों को काटकर मकान बनाए गए और कई प्रोजेक्ट शुरू किए गए. इसका परिणाम ये हुआ कि अब 1 वर्ग किमी में औसतन 200-300 पेड़ ही बचे हैं और वे भी कमजोर.
प्रोफेसर पाठक ने बताया कि हिमालय की मजबूती में देवदार के पेड़ों ने अहम जिम्मेदारी निभाई है. भूधंसाव या बादल फटने पर ये पेड़ हिमालय की मिट्टी को बिल्कुल जकड़ देता है. इसलिए हिमालयी लोग इसे ईश्वर की तरह पूजते हैं.
सीनियर जियोलॉजिस्ट प्रोफेसर एमपीएस बिष्ट के मुताबिक धराली के जिस इलाके में आपदा आई वहां पर पहले जंगल था, लेकिन फिर इन्हें काटकर खेत बनाए गए. बाद में सड़क बनने पर यहां मकान, बाजार और होटल बन गए.
ट्रेन्डिंग फोटोज़