Shubhanshu Shukla Axiom 4 Mission: भारत के अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने 12 बजते ही इतिहास रच दिया और 41 सालों के बाद दूसरे भारतीय बने जो अंतरिक्ष में जा रहे हैं. हालांकि ये सफर आसान नहीं होगा.
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International Space Station: यह मिशन ना सिर्फ भारत के लिए गर्व का विषय है बल्कि आने वाले गगनयान मिशन के लिए भी बहुत जरूरी है. लेकिन क्या आपको पता है कि उन्हें अंतरिक्ष में जाने में कुल 28 घंटों का समय लगेगा. यह मिशन फ्लोरिडा के कैनेडी स्पेस सेंटर से स्पेसएक्स के फाल्कन 9 रॉकेट और ड्रैगन अंतरिक्ष यान के जरिए लॉन्च किया गया.
कितनी ऊंचाई पर है ISS
अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन धरती से करीब 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर कम पृथ्वी कक्षा (Low Earth Orbit) में 28000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चक्कर लगा रहा है. इस तेज गति से घूमने वाले स्टेशन से अंतरिक्ष यान को सही तरीके से मिलना होता है. शुक्ला के साथ अन्य सदस्यों को लेकर गए यान ड्रैगन को इस यात्रा में 28 घंटे लगेंगे जिसके पीछे कई सारे कारण हैं.
ऑर्बिट का एडजस्टमेंट
अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन अपनी तय निश्चित कक्षा में तेज गति से घूमता रहता है. Dragon अंतरिक्ष यान को लॉन्च होने के बाद धीरे-धीरे व्यवस्थित करना होता है जिससे ISS की कक्षा से सही तालमेल बिठाया जा सके. इस प्रक्रिया को कोफेजिंग मैन्यूवर्स(Phasing Manoeuvres)कहते हैं. इस प्रक्रिया में यान अपनी ऊंचाई और गति को बार-बार बैलेंस करता है.
सुरक्षा बहुत जरूरी
ISS के साथ जुड़ना एक बहुत ही सटीक और कठिन काम है इसमें अंतरिक्ष यान को Space Station की गति और स्थिति के साथ अच्छे तरीके से मेल खाना होता है. इस दौरान की गई छोटी सी भूल भी बहुत खतरनाक साबित हो सकती है. इसी कारण से ड्रैगन धीरे-धीरे ISS के करीब पहुंचेगा जिससे सुरक्षा निश्चित की जा सके.
लग जाएंगे 28 घंटे
अंतरिक्ष में होने वाले मिशन के दौरान लॉन्च विंडो बहुत अधिक महत्वपूर्ण होता है. यह समय निश्चित है जिसमें रॉकेट को लॉन्च करना होता है जिससे वह कम ईंधन में और आसानी से ISS पहुंच सके. अगले 28 घंटों में, ड्रैगन धीरे-धीरे अपनी कक्षा को ISS की कक्षा के साथ मिलाएगा जो छोटे-छोटे थ्रस्टर फायरिंग के माध्यम से की जाती है. 26 जून को ड्रैगन ISS के हार्मनी मॉड्यूल के स्पेस-फेसिंग पोर्ट के साथ डॉक करेगा.