ब्रह्मांड में कहां हो सकती है एलियंस की सोसाइटी? वैज्ञानिकों ने खोज निकाली ज्योग्राफी; जानकर रह जाएंगे हैरान
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ब्रह्मांड में कहां हो सकती है एलियंस की सोसाइटी? वैज्ञानिकों ने खोज निकाली ज्योग्राफी; जानकर रह जाएंगे हैरान

न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी अबू धाबी के सेंटर फॉर एस्ट्रोफिजिक्स एंड स्पेस साइंस के लिए एलियंस की खोज को लेकर शोध कर रहे वैज्ञानिकों का कहना है कि कॉस्मिक किरणें भी इतनी ऊर्जा ले जा सकती हैं जो किसी दूरस्थ दुनिया में जीवन को बनाए रखने के लिए पर्याप्त हो।

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Researchers Claim About Alien: एलियन को लेकर सालों से हम कई तरह की किंवदंतियों का सामना करते आ रहे हैं। फिलहाल अभी तक एलियन की उपस्थिति को लेकर पुख्ता दावा कोई नहीं कर पाया है। एलियन जीवन की खोज को लेकर अब एक नए शोध में इस बात का दावा किया गया है कि एलियन ज्यादातर 'गोल्डीलॉक्स ज़ोन' तक सीमित है, यानी वह दूरी जहां किसी तारे से पर्याप्त प्रकाश और तरल पानी मौजूद हो सकता है ताकि जीवन पनप सके। हालांकि, इस अध्ययन ने इस सिद्धांत पर सवाल उठाए हैं। इसमें कहा गया है कि भले ही कोई ग्रह अपने मेजबान तारे से बहुत दूर हो, फिर भी वह जीवन को समर्थन दे सकता है। 

न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी अबू धाबी के सेंटर फॉर एस्ट्रोफिजिक्स एंड स्पेस साइंस के वैज्ञानिकों का कहना है कि कॉस्मिक किरणें भी इतनी ऊर्जा ले जा सकती हैं जो किसी दूरस्थ दुनिया में जीवन को बनाए रखने के लिए पर्याप्त हो। ये किरणें उच्च गति वाले कणों की किरणें हैं जो ब्रह्मांड में एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक उछलती हैं। इसके मुताबिक रेडियोलिसिस नामक प्रक्रिया उन पिंडों में शुरू हो सकती है जो अपने मेजबान तारे से बहुत दूर हैं। जब कॉस्मिक किरणें किसी ग्रह तक पहुंचती हैं, तो वे गहराई तक प्रवेश कर सकती हैं और भूमिगत जल भंडारों पर प्रहार कर सकती हैं, जिससे जल के कण विभाजित हो जाते हैं। यह अध्ययन विभिन्न तारा प्रणालियों में निवास योग्य क्षेत्र की परिभाषा को बदल सकता है।

इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एस्ट्रोबायोलॉजी के रिसर्च का दावा
रिसर्चर ने यह निर्धारित करने के लिए सिमुलेशन किए कि विभिन्न स्तरों के कॉस्मिक किरणों के संपर्क में आने से इन तीनों खगोलीय पिंडों की सतह पर क्या प्रभाव पड़ सकता है। इन चंद्रमाओं को इसलिए चुना गया क्योंकि वर्षों के शोध से वैज्ञानिकों को यह विश्वास हो गया है कि दोनों के बर्फीले सतह के नीचे पानी मौजूद है। प्रयोग का उद्देश्य यह समझना था कि क्या इन तीनों पिंडों पर रेडियोलिसिस हो सकता है। उन्हें कुछ आशाजनक परिणाम मिले, विशेष रूप से एनसेलेडस के संबंध में। रिसर्च में कहा गया है कि ये तीनों पिंड कुछ हद तक रेडियोलिसिस का समर्थन कर सकते हैं, जिसमें शनि का चंद्रमा सबसे आगे निकलकर उभरा है। यह खुलासा इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एस्ट्रोबायोलॉजी में प्रकाशित एक रिसर्च में किया गया। 

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रिसर्च के प्रमुख लेखक दिमित्रा एट्री का रिसर्च पर दावा
टीम ने उस क्षेत्र को एक नया नाम भी दिया जहां जीवन संभवतः पनप सकता है, इसे रेडियोलिटिक हैबिटेबल ज़ोन (विकिरणीय निवास योग्य क्षेत्र) नाम दिया। अध्ययन के प्रमुख लेखक, दिमित्रा एट्री ने एक बयान में कहा,'यह खोज हमारे सोचने के तरीके को बदल देती है कि जीवन कहां मौजूद हो सकता है। अब हम केवल सूर्य के प्रकाश वाली गर्म ग्रहों की तलाश करने के बजाय, उन ठंडे और अंधेरे स्थानों पर भी विचार कर सकते हैं, जहां सतह के नीचे कुछ पानी हो और जो कॉस्मिक किरणों के संपर्क में हों। जीवन उन स्थानों पर भी जीवित रह सकता है, जिनकी हमने पहले कभी कल्पना भी नहीं की थी।' 

दुनियाभर के खगोलशात्रियों को ब्रह्मांड में रहने लायक दुनिया की तलाश
अपने विश्लेषण के बाद, रिसर्चर्स का मानना है कि निवास योग्य क्षेत्र के बारे में सोच को बदलना चाहिए। विश्व भर के खगोलशास्त्री लगातार ब्रह्मांड में निवास योग्य दुनिया की तलाश कर रहे हैं। नवीनतम उम्मीदवार, जिसे जीवन की मेजबानी करने में सक्षम माना जा रहा है, वह है एक्सोप्लैनेट K2-18b, जो सिंह राशि में एक छोटे, लाल तारे की परिक्रमा करता है। इस रिसर्च के रिसर्चर के प्रयोगों के विषय में मंगल, शनि का चंद्रमा एनसेलेडस और बृहस्पति का चंद्रमा यूरोपा भी शामिल हैं। 

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रवीन्द्र सिंह

5 सालों तक टेलीविजन मीडिया के बाद बीते एक दशक से डिजिटल मीडिया में सक्रिय, देश-विदेश की खबरों पर पैनी नजर

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