DNA: जिस बीमारी में लुट जाता है इंसान, पुतिन के देश ने बना ली उसकी वैक्सीन; US-यूरोप का सूख गया हलक
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DNA: जिस बीमारी में लुट जाता है इंसान, पुतिन के देश ने बना ली उसकी वैक्सीन; US-यूरोप का सूख गया हलक

US-Europe Vaccine Companies: वैक्सीन की सबसे खास बात यह होती है कि यह बीमारी को सिर्फ कंट्रोल या कम नहीं करती, बल्कि इसे ले लेने से बीमारी होती ही नहीं है. अब सोशल मीडिया में ये बात तेजी से ट्रेंड कर रही है कि रूसी वैक्सीन का मानव परीक्षण शुरू होने की खबर आने के बाद अमेरिका और यूरोप की फार्मा कंपनियां सदमे में आ गई हैं.

DNA: जिस बीमारी में लुट जाता है इंसान, पुतिन के देश ने बना ली उसकी वैक्सीन; US-यूरोप का सूख गया हलक

Russia Cancer Vaccine: कैंसर से अब डरने की जरूरत नहीं है. अब न ये जानलेवा होगा और न ही इसके इलाज में आपकी जिंदगी भर की कमाई लुटानी पड़ेगी. रूस ने जो कैंसर की वैक्सीन तैयार की है उसका मानव परीक्षण करने जा रहा है. यानी कैंसर के खिलाफ विश्वयुद्ध में पुतिन विजेता बनकर उभरे हैं. राष्ट्रपति पुतिन ने यह भी वादा किया है कि मानवीय आधार पर यह वैक्सीन पूरी दुनिया को उपलब्ध करवाई जाएगी. इतना ही नहीं, शुरुआत में यह वैक्सीन मुफ्त उपलब्ध करवाई जाएगी.

टेंशन में अमेरिकी-यूरोपीय कंपनियां

वैक्सीन की सबसे खास बात यह होती है कि यह बीमारी को सिर्फ कंट्रोल या कम नहीं करती, बल्कि इसे ले लेने से बीमारी होती ही नहीं है. अब सोशल मीडिया में ये बात तेजी से ट्रेंड कर रही है कि रूसी वैक्सीन का मानव परीक्षण शुरू होने की खबर आने के बाद अमेरिका और यूरोप की फार्मा कंपनियां सदमे में आ गई हैं. आखिर रूसी वैक्सीन आने से अमेरिका और यूरोप की कंपनियों को क्या टेंशन है, आज हम इसका विश्लेषण करेंगे.

रविवार यानी 3 अगस्त को रूस की सरकारी समाचार एजेंसी RT से आई रिपोर्ट के मुताबिक, रूस अगले कुछ महीनों में कैंसर के खिलाफ नए टीके का मानव परीक्षण शुरू करने वाला है. कोविड-19 की वैक्सीन स्पुतनिक V बनाने वाले और महामारियों पर काम करने वाले 'गामालेया रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी एंड माइक्रोबायोलॉजी' के निदेशक अलेक्जेंडर गिंट्सबर्ग के मुताबिक यह वैक्सीन पर्सनलाइज्ड होगी. इसका इस्तेमाल किसी और के लिए नहीं किया जा सकेगा. ये परीक्षण मॉस्को स्थित हर्टसन रिसर्च इंस्टीट्यूट और ब्लोखिन कैंसर सेंटर में किए जाएंगे,जबकि गामालेया रिसर्च इंस्टीट्यूट वैक्सीन का उत्पादन करेगा.

कुछ लोगों का दावा है कि रूसी वैक्सीन की खबर से पश्चिमी कंपनियों में बेचैनी है. तर्क है कि रूस का मुफ्त वैक्सीन देने का वादा उन देशों को अपनी तरफ खींच सकता है जो महंगी अमेरिकी और यूरोपीय दवाओं का खर्च नहीं उठा सकते. इससे पश्चिमी कंपनियों की कमाई खत्म हो सकती है. आखिर इस दावे के पीछे तर्क क्या है? यह जानने से पहले हमें ये जान लेना चाहिए कि कैंसर की दवाइयों का कारोबार कितना बड़ा है.

कितना है कैंसर की दवाओं का बिजनेस

दुनिया में कैंसर की दवाइयों का कारोबार 2022 में 203 अरब डॉलर का था जो 2028 तक 400 बिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है. अमेरिका और यूरोप की कंपनियां इस बाजार के 60 से 65 फीसदी हिस्से को कंट्रोल करती हैं. सिर्फ अमेरिकी कंपनियों की हिस्सेदारी ही 45 से 50 फीसदी है. मॉडर्ना, मर्क, बायोएनटेक, रोश, और फाइजर जैसी कंपनियां इस क्षेत्र में अग्रणी हैं. वर्ष 2023 में अकेले मर्क की Keytruda दवा की बिक्री 25 बिलियन डॉलर की रही और यह कंपनी की कुल आय का लगभग 40 फीसदी थी. यानी मर्क कंपनी सिर्फ कैंसर की दवा से ही 40 फीसदी कमाई कर रही है.

सवाल ये है कि एक बार में इलाज हो जाने से अमेरिकी और यूरोपीय कंपनियों को दिक्कत क्या है? तो जवाब यह है कि फार्मा कंपनियां पेटेंट के जरिए अपनी दवाओं पर एकाधिकार रखती हैं. एक स्थायी इलाज उनकी मौजूदा दवाओं के बाजार को प्रभावित कर सकता है. दूसरी तरफ इसके खिलाफ तर्क यह है कि कोई भी कंपनी स्थायी इलाज को ढूंढने से क्यों बचेगी? उल्टा वो इसे बाजार में लाकर मार्केट लीडर बनने की कोशिश करेगी.

महंगा होता है कैंसर का इलाज

साजिश के दावे के पक्ष में तर्क यह भी है कि कैंसर का इलाज लंबे समय तक चलता है, जिसमें कीमोथेरेपी, रेडिएशन, और इम्यूनोथेरेपी जैसी महंगी प्रक्रियाएं शामिल हैं. मिसाल के तौर पर, Keytruda की एक खुराक की कीमत 10,000 डॉलर यानी भारतीय रुपए में साढ़े 8 से 9 लाख रुपए तक हो सकती है. अगर एक बार की वैक्सीन से कैंसर ठीक हो जाए, तो यह लंबे समय तक चलने वाले इलाज की मांग को कम कर सकती है. इसके जवाब में दलील यह है कि फार्मा कंपनियां हर साल अरबों डॉलर रिसर्च में खर्च करती हैं. 2023 में दुनिया भर में फार्मा R&D पर खर्च 250 बिलियन डॉलर से ज्यादा था, जिसमें ऑन्कोलॉजी यानी कैंसर से जुड़े क्षेत्र में सबसे ज्यादा खर्च हुआ. अगर कंपनियां इलाज रोक रही होतीं, तो इतना खर्च क्यों करतीं?

कुछ लोग दावा करते हैं कि फार्मा कंपनियों ने अतीत में सस्ते या वैकल्पिक उपचारों को दबाया है ताकि उनकी महंगी दवाएं बिकती रहें. इसके जवाब में तर्क यह है कि वर्ष 2020 से 2023 के बीच, अमेरिका में FDA ने 50 से अधिक नई ऑन्कोलॉजी दवाओं को मंजूरी दी. अगर कंपनियां इलाज रोक रही होतीं, तो इतनी नई दवाएं बाजार में नहीं आतीं.

ऐसे में सलाह यही है कि पहले रूसी वैक्सीन के डेटा सार्वजनिक हो जाएं तभी पश्चिमी कंपनियों को लेकर किसी नतीजे पर पहुंचा जाए. इस बात का कोई ठोस सबूत सामने नहीं आया है कि अमेरिकी और यूरोपीय कंपनियां जानबूझ कर कैंसर का इलाज रोकने की कोशिश कर रही हैं.

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रचित कुमार

नवभारत टाइम्स अखबार से शुरुआत फिर जनसत्ता डॉट कॉम, इंडिया न्यूज, आजतक, एबीपी न्यूज में काम करते हुए साढ़े 3 साल से ज़ी न्यूज़ में हैं. शिफ्ट देखने का लंबा अनुभव है.

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