Iran Supreme Leader Khamenei: ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्लाह अली खामनेई के उत्तराधिकारी की तलाश तेज हो गई है. खामनेई की बड़ती उम्र और खतरे को देखते हुए ईरान में नए सुप्रीम लीडर को लेकर कयास तेज हैं.
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Ayatollah Ali Khamenei Networth: इजरायल पूरी शिद्दत से ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली खामनेई की जान के पीछे पड़ा है. इजरायली पीएम बेंजामिन नेतन्याहू ने दो टूक कहा है कि खामनेई के खात्मे के साथ ही सारी समस्याओं का हल हो जाएगा. इजरायल-अमेरिका ने उसके परमाणु बम बनाने के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. ईरान के सर्वोच्च नेता के पास 95 अरब डॉलर (789 हजार करोड़ रुपये) की संपत्ति होने का दावा किया जाता है. ये चल-अचल संपत्ति 2024 तक 150 अरब डॉलर यानी 12 लाख 45 हजार करोड़ तक हो गई है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, खामेनेई परिवार का रियल एस्टेट, तेल-गैर से लेकर बैंकिंग और इन्फ्रास्ट्रक्चर की बड़ी कंपनियों में निवेश है. ये सारी कंपनियां सेताद समिति के तहत आती हैं. इसलिए ईरान के कानूनों के दायरे में ये कंपनियां नहीं आती हैं. संसद या राष्ट्रपति भी इस पर सवाल नहीं उठा सकते. आइए जानते हैं कि अयातुल्लाह अली खामनेई की ईरान में अहमियत क्या है...
अयातुल्लाह शब्द के अर्थ की बात करें तो ये शिया मुसलमानों में एक सम्मानजनक उपाधि है. शीर्ष इस्लामिक पदों पर बैठे विद्वानों को ये उपाधि दी जाती है. इसका अर्थ 'ईश्वर का संकेत' या 'ईश्वर का महान चिन्ह' बताया जाता है.
वहीं खुमैनी शब्द कहां से आया तो जान लें कि इसका कनेक्शन भारत से है. दरअसल, खामनेई के दादा सैय्यद अहमद मुसावी का जन्म भारत में उत्तर प्रदेश के जिले बाराबंकी के किंतूर गांव में हुआ था. मुसावी के पिता दीन अली शाह ईरान से शिया इस्लाम का प्रचार करने के लिए 17वीं-18वीं सदी में भारत आए थे. हिन्दुस्तान से लगाव के कारण अहमद मुसावी ने अपने नाम के साथ हिन्दी जोड़ा. फिर वो 1830 में लखनऊ से इराक के नजफ शहर में अली की मजार की यात्रा के लिए गए और ईरान के मरकाजी प्रांत के छोटे कस्बे खुमैनी में जाकर बस गए.
मुसावी ने 1869 में मौत तक नाम से हिन्दी नहीं हटाया. उन्होंने तीन शादियां कीं और उनके पांच बेटों में से एक मुस्तफा थे, जिनके बेटे रुहोल्लाह थे. रुहोल्लाह ने नाम के आगे खुमैनी लगाया. ईरान में 1979 में इस्लामिक क्रांति की नींव तैयार करने में रुहोल्लाह का बहुत बड़ा हाथ था. ईरान में अमेरिका और पश्चिमी देशों के समर्थित सरकार के नेता और शाह वंश के शासक मोहम्मद रजा पहेलवी को रुहोल्लाह की अगुवाई में इस्लामिक कट्टरपंथियों ने उखाड़ फेंका. 1979 से 1989 तक रुहोल्लाह खुमैनी देश के सुप्रीम लीडर बने.
उत्तराधिकारी को लेकर बवाल
रुहोल्लाह की मौत के बाद उनके उत्तराधिकारी को लेकर बवाल हुआ, लेकिन आखिरकार उनके बेटे अयातुल्लाह अली खामनेई के हाथों में ही कमान आई. ईरान की सेना रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के प्रमुख के तौर पर खामनेई ने कमान संभालते ही विद्रोहियों, आलोचकों को कुचलने में कोई कसर नहीं छोड़ी. पाकिस्तान की मदद से ईरान में परमाणु कार्यक्रम शुरू किया गया.
खामनेई का उत्तराधिकारी कौन
खामनेई खुद ईरान में परिवारवाद के सख्त विरोधी रहे हैं. लेकिन 86 साल के खामनेई बेटे अपना दावा जताते रहे हैं. उनके दूसरे बेटे मुज्तबा को उत्तराधिकारी बनाया जा सकता है. लेकिन खुद अयातुल्लाह इसे गैर इस्लामिक परंपरा मानते हैं. शाह वंश को सत्ता से हटाकर कमान संभालने वाले अयातुल्लाह के बाद ईरान के भविष्य को लेकर इसीलिए सवाल उठ रहा है.
इस्लामिक क्रांति के जनक
हालांकि ईरान की करेंसी से लेकर स्कूली किताबों में भी अयातुल्ला और रुहोल्लाह खुमैनी ही छाए हैं. 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद ईरान लगातार आर्थिक प्रतिबंध झेल रहा है. उसकी हालत पाकिस्तान से कम बदतर नहीं है. ईरान की एक तिहाई से ज्यादा आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन गुजर बसर कर रही है. वहां लोकतंत्र समर्थक हजारों कार्यकर्ताओं को जेल में डाला गया है. अमेरिका और इजरायल का मानना है कि अगर खामनेई का खेल खत्म हो गया तो ईरान उनके पाले में आ जाएगा.
अयातुल्लाह अली खमनेई का लंबा शासन
अली खमनेई करीब 36 सालों से ईरान पर शासन कर रहे हैं. उन्होंने इस्लामिक क्रांति के दौरान रुहोल्लाह खुमैनी के साथ जबरदस्त काम किया.रुहोल्लाह की वफादारी का उन्हें इनाम भी मिला. ईरान-इराक युद्ध में उन्हें जिम्मेदारी दी गई. 1981 में उन पर आत्मघाती हमला हुआ, जिसमें वो बाल-बाल बच गए, लेकिन उनका दायां हाथ बेकार हो गया.उसी साल राष्ट्रपति मोहम्मद हसन रेजाई की हत्या के बाद वो राष्ट्रपति बने. फिर 1989 में दूसरी बार भी भारी बहुमत से चुने गए. 1989 में रुहोल्लाह खुमैनी की मौत होने पर संविधान में संशोधन कर उन्हें सुप्रीम लीडर बनाया गया, क्योंकि उनके पास तब अयातुल्लाह या मारजा (जिसका अनुयायी अनुसरण करते हैं) की उपाधि नहीं थी. 1994 से लेकर 2019-2020 तक ईरान में कई बड़े आंदोलन और विद्रोह हुए हैं, जिन्हें बुरी तरह कुचला गया.खामनेई के अपमान के आरोप में कई पत्रकारों, ब्लॉगरों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को कैद में रखा गया.