भारत की इंटेलिजेंस और सर्विलांस होगी चाक चौबंद, HAPS प्लेटफॉर्म से सातवें आसमान पर होगी आर्मी की ताकत!
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भारत की इंटेलिजेंस और सर्विलांस होगी चाक चौबंद, HAPS प्लेटफॉर्म से सातवें आसमान पर होगी आर्मी की ताकत!

भारतीय वायु सेना ने तीन हाई एल्टीट्यूड प्लेटफॉर्म सिस्टम्स (HAPS) की खरीद प्रक्रिया शुरू की है. सौर ऊर्जा से चलने वाले ये प्लेटफॉर्म स्ट्रेटोस्फियर में लंबे समय तक उड़ान भरकर इंटेलिजेंस और सर्विलांस मिशनों को अंजाम देंगे. ये सिस्टम सीमाओं और हिंद महासागर क्षेत्र में निगरानी और संचार को मजबूत करेंगे.

भारत की इंटेलिजेंस और सर्विलांस होगी चाक चौबंद, HAPS प्लेटफॉर्म से सातवें आसमान पर होगी आर्मी की ताकत!

Indian Air Force Defence System: भारत की सैन्य क्षमता की तूती यू हीं नहीं बोल रही है, इसके लिए भारतीय सेना लगातार प्रयासरत है और ठोस फैसले भी ले रही है. भारत सरकार भविष्य में, अपनी सैन्य क्षमता को पूरी तरीके से मेक इन इंडिया के तहत आगे बढ़ाना चाहती है. इसी कड़ी में भारत ने एक और बड़ा फैसला लिया है. जिसके तहत,  भारतीय वायु सेना (Indian Air Force) ने तीन हाई एल्टीट्यूड प्लेटफॉर्म सिस्टम्स (High Altitude Platform Systems - HAPS) की खरीद के लिए Request for Information (RFI) जारी की है. यह कदम भारत की इंटेलिजेंस, सर्विलांस और संचार क्षमताओं को बढ़ाने की दिशा में एक बड़ा प्रयास है. HAPS सोलर पावर से चलने वाले, लंबी अवधि तक उड़ने वाले अनमैन्ड प्लेटफॉर्म हैं, जो स्ट्रेटोस्फियर में 18-20 किमी ऊंचाई पर काम करेंगे. ये सिस्टम सीमाओं और हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में लगातार निगरानी कर सकते हैं.

  1. भारतीय वायु सेना ने तीन HAPS खरीदने के लिए RFI जारी किया
  2. अंतरिक्ष से महीनों तक निगरानी करेगा HAPS प्लेटफॉर्म
  3. Make in India के तहत 50% स्वदेशी सामग्री होगी अनिवार्य

HAP सिस्टम खरीदने के लिए RFI जारी
IDRW की रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय वायु सेना ने हाल ही में तीन हाई एल्टीट्यूड प्लेटफॉर्म सिस्टम्स (HAPS) के लिए आरएफआई (Request for Information) जारी किया है. यह कदम भारत की निगरानी और संचार क्षमताओं को सशक्त करने के लिए उठाया गया है. HAPS का मुख्य उद्देश्य स्ट्रेटोस्फियर (पृथ्वी के वायुमंडल की दूसरी परत यानी अंतरिक्ष) में उड़ान भरते हुए लगातार इंटेलिजेंस, सर्विलांस और कम्युनिकेशन मिशनों को पूरा करना है.

ये डिवाइसेस Make in India अभियान के तहत खरीदे जाएंगे, जिसमें कम से कम 50% स्वदेशी सामग्री होनी चाहिए. इससे न केवल आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिलेगा बल्कि भारतीय रक्षा तकनीक में नई उन्नति भी होगी.

क्या होगी HAPS प्लेटफॉर्म की खासियत?
HAPS प्लेटफॉर्म्स की सबसे खास बात है कि ये  सौर ऊर्जा से चलते हैं. जिसकी मदद से स्ट्रेटोस्फियर (लगभग 18-20 किमी ऊंचाई) में महीनों तक लगातार ऑपरेट कर सकते हैं. यह उन्हें सैटेलाइट्स की तरह लंबी अवधि तक निगरानी करने की क्षमता प्रदान करता है, लेकिन लागत कहीं कम रहती है.

ये प्लेटफॉर्म्स एडवांस्ड सेंसरों से लैस होंगे, जो Intelligence, Surveillance, Reconnaissance (ISR), Electronic Intelligence (ELINT) और Communications Intelligence (COMINT) में मदद करेंगे. साथ ही, ये अन्य ड्रोन और सैटेलाइट्स के बीच डेटा रिले का काम भी कर सकते हैं. यानी तुरंत डेटा ट्रांसफर करने की फैसिलिटीज होगी.

इंटिलिजेंस और सर्विलांस को मिलेगी मजबूती
HAPS के जरिए भारत सीमावर्ती इलाकों (जैसे पाकिस्तान और चीन से सटे क्षेत्रों) और हिंद महासागर क्षेत्र में 24 घंटे निगरानी कर सकेगा. यह रणनीतिक इलाकों पर लगातार नजर रखने और दुश्मन की गतिविधियों का तुरंत पता लगाने में बेहद कारगर साबित होगा.

इन प्लेटफॉर्म्स से असमान इलाकों, जैसे पहाड़ों या घने जंगलों में भी, मजबूत संचार नेटवर्क बनाना संभव होगा. जहां आमतौर पर ग्राउंड बेस्ड नेटवर्क्स विफल हो जाते हैं. इससे सैनिकों को ज्यादा बेहतर और त्वरित सूचनाएं मिल सकेंगी. और समय रहते ही, दुश्मन की गतिविधियों के बारे में जानकारी मिल जाएगी.

सैन्य मिशनों में गेमचेंजर साबित होंगे HAPS
HAPS प्लेटफॉर्म्स दुश्मनों के रेडार सिग्नल्स और कम्युनिकेशन इंटरसेप्ट कर सकते हैं, जिससे भारत को समय पर जरूरी खुफिया जानकारियां मिल सकेंगी. ये क्षमताएं क्रॉस-बॉर्डर आतंकवाद और चीनी घुसपैठ जैसे खतरों से निपटने में अहम भूमिका निभाएंगी.

इतना ही नहीं, HAPS नेटवर्क सेंट्रिक वॉरफेयर (Network Centric Warfare) को भी मजबूत करेंगे, जिसमें सभी सैनिक इकाइयों को रियल टाइम डेटा साझा करने की सुविधा होगी. इससे न केवल रणनीतिक फैसले लेने में तेजी आएगी, बल्कि ऑपरेशनल एफिशिएंसी भी बढ़ेगी.

क्या है भारतीय कंपनियों की तैयारी?
भारत में कई सरकारी और निजी संस्थान पहले से HAPS टेक्नोलॉजी पर काम कर रहे हैं. नेशनल एयरोस्पेस लैबोरेट्रीज़ (NAL) ने इसका एक छोटा प्रोटोटाइप तैयार कर लिया है और 2023 में इसकी टेस्टिंग की गई थी. पूरा स्केल मॉडल अगले 2-3 वर्षों में तैयार हो सकता है.

इसके अलावा, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) और न्यू स्पेस रिसर्च जैसी निजी कंपनियां भी HAPS पर तेजी से काम कर रही हैं. मार्च 2024 में न्यू स्पेस ने अपने प्रोटोटाइप के साथ 24 घंटे की फ्लाइट रिकॉर्ड की थी. वेंचर कंपनियां भी विदेशी साझेदारों के साथ मिलकर इस तकनीक को विकसित कर रही हैं.

ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि भारत जल्द ही HAPS प्लेटफॉर्म की मदद से, अपनी सैन्य क्षमता सातवें आसमान पर ले जाने में सक्षम होगी. जो न केवल देश की सुरक्षा के लिए अहम साबित होगा. बल्कि दुश्मन की हर गतिविधि को काउंटर करने में मदद करेगा.

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