Universities Admissions: छात्रों का भविष्य या राजनीति का खेल? ट्रंप ने चला बड़ा दांव, अब कॉलेज बताएंगे असली सच्चाई
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Universities Admissions: छात्रों का भविष्य या राजनीति का खेल? ट्रंप ने चला बड़ा दांव, अब कॉलेज बताएंगे असली सच्चाई

Transparency in College Admissions: अमेरिकी शिक्षा सचिव लिंडा मैकमोहन ने नेशनल सेंटर फॉर एजुकेशन स्टेटिस्टिक्स को यूनिवर्सिटीज से नस्ल, लिंग, परीक्षा स्कोर और जीपीए समेत डिटेल एडमिशन डेटा कलेक्ट करने का निर्देश दिया है ताकि नस्लीय पूर्वाग्रह का पता लगाया जा सके और उसे रोका जा सके.

Universities Admissions: छात्रों का भविष्य या राजनीति का खेल?  ट्रंप ने चला बड़ा दांव, अब कॉलेज बताएंगे असली सच्चाई

National Center for Education Statistics: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा जारी एक नई नीति के तहत, कॉलेजों को यह साबित करने के लिए डेटा जमा करना होगा कि वे एडमिशन प्रोसेस में नस्ल को ध्यान में नहीं रखते हैं. 2023 में, सुप्रीम कोर्ट ने एडमिशन प्रक्रिया में पॉजिटिव कार्रवाई के इस्तेमाल के खिलाफ फैसला सुनाया था, लेकिन कहा था कि अगर आवेदक अपने एडमिशन निबंधों में यह जानकारी साझा करते हैं, तो कॉलेज इस बात पर विचार कर सकते हैं कि नस्ल ने छात्रों के जीवन को कैसे आकार दिया है. ट्रंप कॉलेजों पर नस्ल पर विचार करने के लिए व्यक्तिगत बयानों और अन्य माध्यमों का इस्तेमाल करने का आरोप लगा रहे हैं, जिसे रूढ़िवादी अवैध भेदभाव मानते हैं.

प्रवेश प्रक्रिया में नस्ल की भूमिका, देश के कुछ सबसे प्रतिष्ठित कॉलेजों के खिलाफ ट्रंप प्रशासन की लड़ाई का एक हिस्सा रही है - जिन्हें रिपब्लिकन उदारवादियों का गढ़ मानते हैं. उदाहरण के लिए, नई नीति हाल ही में ब्राउन विश्वविद्यालय और कोलंबिया विश्वविद्यालय के साथ सरकार द्वारा किए गए समझौता समझौतों के कुछ हिस्सों के समान है, जिसके तहत उनके फेडरल रिसर्च मनी को बहाल किया गया था. विश्वविद्यालयों ने आवेदकों, प्रवेशित छात्रों और नामांकित छात्रों के नस्ल, ग्रेड पॉइंट औसत और मानकीकृत परीक्षा स्कोर के आंकड़े सरकार को देने पर सहमति व्यक्त की. स्कूलों ने सरकार द्वारा ऑडिट किए जाने और प्रवेश के आंकड़े जनता के लिए जारी करने पर भी सहमति व्यक्त की.

नया नियम क्या लाया गया है?
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक नया नियम लागू किया है, जिसके तहत कॉलेजों को यह साबित करना होगा कि वे छात्रों को एडमिशन देते समय उनकी नस्ल (Race) को ध्यान में नहीं रखते.

इस नियम की जरूरत क्यों पड़ी?
2023 में अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि कॉलेज एडमिशन में नस्ल के आधार पर विशेष फायदा (Affirmative Action) नहीं दिया जा सकता. हालांकि, अगर कोई छात्र अपनी एडमिशन निबंध (Essay) में बताए कि उसकी नस्ल ने उसके जीवन को कैसे प्रभावित किया है, तो कॉलेज उसे ध्यान में रख सकता है. ट्रंप का आरोप है कि कॉलेज इस तरीके का इस्तेमाल करके अब भी नस्ल को ध्यान में रख रहे हैं, जो उन्हें गलत और भेदभावपूर्ण लगता है.

नए नियम में कॉलेजों को क्या करना होगा?
अब कॉलेजों को सरकार को डेटा देना होगा, जिसमें हर आवेदन करने वाले, एडमिशन पाने वाले और पढ़ रहे छात्र की नस्ल, लिंग, ग्रेड और टेस्ट स्कोर की जानकारी होगी. यह डेटा नेशनल सेंटर फॉर एजुकेशन स्टैटिस्टिक्स इकट्ठा करेगा. अगर कॉलेज सही और समय पर डेटा नहीं देंगे, तो उनके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है.

क्या कॉलेज अभी नस्ल की जानकारी ले सकते हैं?
कानून के मुताबिक, कॉलेज एडमिशन प्रक्रिया में नस्ल की जानकारी नहीं मांग सकते. हां, जब छात्र एडमिशन लेकर पढ़ाई शुरू कर दें, तब उनसे नस्ल पूछी जा सकती है, लेकिन यह उनका हक है कि वे जवाब न दें. इसी वजह से कई बार कॉलेजों के पास छात्रों की नस्ल का पूरा डेटा नहीं होता.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद क्या असर पड़ा?
पहले साल के डेटा में किसी एक पैटर्न का पता नहीं चला. कुछ कॉलेजों में ब्लैक छात्रों की संख्या कम हुई, जैसे MIT और Amherst College में. वहीं, Yale, Princeton और University of Virginia में ज्यादा फर्क नहीं पड़ा. कई कॉलेजों ने अब ज्यादा निबंध या व्यक्तिगत बयान (Personal Statements) मांगना शुरू किया है, ताकि छात्रों के बैकग्राउंड के बारे में पता चल सके.

Affirmative Action के बिना विविधता बढ़ाने के क्या तरीके अपनाए गए?
कुछ कॉलेज गरीब परिवारों के छात्रों को प्राथमिकता देने लगे. कुछ ने अपने राज्य के हर स्कूल के टॉप स्टूडेंट्स को एडमिशन देने का वादा किया. उदाहरण के तौर पर, कैलिफोर्निया ने 1996 में नस्ल-बेस्ड फायदा बंद कर दिया, जिसके बाद Berkeley और UCLA जैसे टॉप कॉलेजों में ब्लैक और हिस्पैनिक छात्रों की संख्या आधी रह गई. बाद में उन्होंने कम-आय और पहली जेनरेशन के कॉलेज स्टूडेंट्स के लिए 500 मिलियन डॉलर खर्च किए, लेकिन नस्लीय विविधता पहले जैसी नहीं लौटी.

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अन्य राज्यों में क्या हुआ?
मिशिगन में 2006 के बाद भी ब्लैक छात्रों की संख्या 8% से घटकर 4% हो गई, जबकि हिस्पैनिक छात्रों की संख्या थोड़ी बढ़ी है. कॉलेजों ने गरीब इलाकों में काउंसलर भेजे, स्कॉलरशिप दीं और एडमिशन के नियम बदले, लेकिन नस्लीय विविधता पूरी तरह वापस नहीं आई.

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चेतन शर्मा

चेतन शर्मा 2013 से मीडिया इंडस्ट्री में काम कर रहे हैं. हिंदुस्तान अखबार से करियर की शुरुआत करते हुए दैनिक भास्कर, NBT में भी काम किया. साल 2016 में डिजिटल मीडिया में कदम रखा और जनसत्ता डॉट कॉम से ...और पढ़ें

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