DNA Analysis: जो लोग मालेगांव ब्लास्ट पर आज के फैसले का विरोध कर रहे हैं, वो एक हफ्ते पहले मुंबई लोकल बम ब्लास्ट केस में आरोपियों को बरी करने वाले अदालती फैसले पर मिठाई बांट रहे थे. इनकी मानसिकता देखिए.
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DNA Analysis: ध्यान देने वाली बात ये है कि जो लोग मालेगांव ब्लास्ट पर आज के फैसले का विरोध कर रहे हैं, वो एक हफ्ते पहले मुंबई लोकल बम ब्लास्ट केस में आरोपियों को बरी करने वाले अदालती फैसले पर मिठाई बांट रहे थे. इनकी मानसिकता देखिए. इस वक्त हम आपको जमीयत उलेमा-ए-हिंद के नेताओं का जश्न दिखा रहे हैं. ये तस्वीरें उस वक्त की हैं जब जमीयत के नेता कोर्ट के आदेश के बाद रिहा हुए 2006 मुंबई लोकल ब्लास्ट के आरोपियों के साथ जश्न मना रहे थे. आरोपियों को मिठाई खिला रहे थे. 2006 मुंबई लोकल ब्लास्ट में 187 लोगों की जान गई थी.
पीड़ित परिवार कोर्ट के फैसले से आहत हुए. उनका दर्द आंसू बनकर छलका. लेकिन जमीयत के नेता आरोपियों के साथ जश्न मनाते दिखे, मिठाई बांटते दिखे लेकिन उन्हें पीड़ितों का दर्द नहीं दिखा था. आज हम जमीयत का जिक्र क्यों कर रहे हैं इसे आप समझिए. मालेगांव ब्लास्ट केस के बहाने जिस तरह हिंदू आतंकवाद और भगवा आंतकवाद का नैरेटिव गढ़ा गया था. उस केस में बरी किए गए आरोपियों को सजा देने की मांग करने वालों को कानूनी मदद जमीयत उलेमा ए हिंद ही दे रहा था. यानी जमीयत इस केस में एक पक्ष के साथ खड़ा था.
मुंबई लोकल धमाके के आरोपियों की रिहाई को न्याय की जीत बतानेवाली जमीयत आज मालेगांव कोर्ट के फैसले पर सवाल उठा रही है. आज हमने इस विषय पर जमयीत का पक्ष जानने की कोशिश की. लेकिन जमीयत के नेताओं ने फिलहाल कुछ कहने से इनकार कर दिया. जमीयत का डबल स्टैंडर्ड समझिए. मुबंई लोकल ब्लास्ट के आरोपियों की रिहाई पर जमीयत जश्न मनाती है लेकिन मालेगांव ब्लास्ट केस में कोर्ट के फैसले पर जमीयत सवाल उठाती है. मुंबई लोकल ब्लास्ट केस में 187 पीड़ित परिवारों का दर्द जमीयत को नहीं दिखता, मालेगांव ब्लास्ट केस में 6 पीड़ित परिवार के लिए जमीयत सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कहती है.
मुंबई ब्लास्ट पर मिठाई..'मालेगांव' पर मातम! कोर्ट के फैसले पर सेलेक्टिव नजरिए का विश्लेषण @pratyushkkhare pic.twitter.com/G9rKWaTkwB
— Zee News (@ZeeNews) July 31, 2025
मालेगांव ब्लास्ट के बाद जो सनातन विरोधी सोच एक्टिव थी. जिस सनातन विरोधी सोच ने हिंदू और भगवा आतंकवाद का नैरेटिव प्रचारित किया. जमीयत उसी नैरेटिव को मौन समर्थन दे रही थी. कोर्ट से भगवा विरोधी सोच को सच साबित करने के लिए कानूनी मदद मुहैया करा रही थी. सनातन विरोधी नैरेटिव के मूक समर्थक आज भी कोर्ट के फैसले पर सवाल उठा रहे हैं. इस सनातन विरोधी सोच के DNA को समझिए. ये सोच खास वैचारिक नजरिए से एजेंडा तय करती है. अगर कोर्ट का फैसला इस समूह के सलेक्टिव सोच को सुहाता है तो ये आरोपियों के साथ जश्न मनाते हैं. अगर कोर्ट का फैसला इनके मुताबिक नहीं होता तो ये न्याय व्यवस्था पर, जांच एजेंसियों पर सवाल उठाते हैं.