क्या सिर्फ विकास से खुश रहा जा सकता है? सोनम वांगचुक ने क्यों कहा लद्दाख सोने का पिंजरा बनकर रह जाएगा
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क्या सिर्फ विकास से खुश रहा जा सकता है? सोनम वांगचुक ने क्यों कहा लद्दाख सोने का पिंजरा बनकर रह जाएगा

Sonam Wangchuk: लद्दाख में पर्यावरण के लिए काम करने वाले सोनम वांगचुक ने एक बार फिर लोगों के लिए आवाज बुलंद की है. उन्होंने कहा है कि सिर्फ विकास से खुश नहीं रहा जा सकता. लोगों को कुछ और भी चाहिए.

क्या सिर्फ विकास से खुश रहा जा सकता है? सोनम वांगचुक ने क्यों कहा लद्दाख सोने का पिंजरा बनकर रह जाएगा

Sonam Wangchuk: लद्दाख के पर्यावरण कार्यकर्ता और रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता सोनम वांगचुक ने कहा कि 2019 में केंद्र शासित प्रदेश (UT) बनने के बाद लद्दाख में तेजी से बुनियादी ढांचा विकसित हुआ है, सड़कें बनी हैं और बजट कई गुना बढ़ा है, लेकिन उनका मानना है कि सिर्फ विकास से लोग खुश नहीं रह सकते, अगर उनकी आवाज और इच्छाओं को महत्व न दिया जाए. 

वांगचुक ने उदाहरण देते हुए कहा कि तिब्बत में भी चीन ने विकास किया है, लेकिन वहां के लोग खुश नहीं हैं क्योंकि यह विकास उनके हाथ में नहीं है और न ही उनकी भलाई के लिए है. अगर लद्दाख में भी यही स्थिति दोहराई गई तो यह सोने का पिंजरा होगा.

वांगचुक का कहना है कि लद्दाख के लोग चाहते हैं कि उन्हें अपने भविष्य और विकास की दिशा तय करने का हक मिलना चाहिए. फिलहाल केंद्र सरकार और स्थानीय संगठनों- लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) के बीच चल रही बातचीत अटक गई है. 15 जुलाई को होने वाली मीटिंग पहले टली, फिर 25 और 28 जुलाई को भी नहीं हो पाई. इस देरी से जनता में असंतोष बढ़ रहा है. इसी वजह से करगिल में 10 अगस्त से तीन दिन क भूख हड़ताल आंदोलन भी शुरू हुआ है, जो 11 अगस्त को एक बड़ी जनसभा के साथ समाप्त होगा.

नेताओं में दूरदृष्टि की कमी

उन्होंने कहा कि लद्दाख के लोग हमेशा भारतीय सेना के साथ खड़े रहे हैं और हर जंग में उनका साथ दिया है, लेकिन कुछ नेताओं की दूरदृष्टि की कमी और कुछ कंपनियों को प्राथमिकता देने की नीति से जनता की मांगें अनदेखी हो रही हैं. उनका मानना है कि यह न सिर्फ लद्दाख बल्कि पूरे देश के लिए नुकसानदेह है और इससे सीमाई इलाकों की स्थिरता और सुरक्षा पर बुरा असर पड़ सकता है.

सरकार ने मांगों पर नहीं दिया ध्यान

वांगचुक ने चेतावनी दी कि अगर सरकार ने उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया, तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा. इसमें 5-6 हफ्तों की लंबी भूख हड़ताल या लेह से दिल्ली तक कई बार पैदल मार्च शामिल हो सकता है. उन्होंने कहा,'दुनिया को देखना चाहिए कि गांधी के रास्ते पर चलना कितना कठिन है.'

लद्दाख के लोगों को दी मुख्य मांगें

लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग कर 2019 में केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था. तब से यहां के लोग दो मुख्य मांगें कर रहे हैं, राज्य का दर्जा और संविधान की छठी अनुसूची के तहत विशेष सुरक्षा, ताकि उनकी जमीन, संस्कृति और रोजगार संरक्षित रह सके. आखिरी बार 27 मई को उच्च स्तरीय समिति (HPC) की मीटिंग नई दिल्ली में हुई थी, जिसमें रिजर्वेशन और डोमिसाइल से जुड़े मुद्दे सुलझाए गए थे, लेकिन अन्य महत्वपूर्ण मांगें, जैसे राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची का दर्जा, अब तक लंबित हैं, जिससे लद्दाख में असंतोष और आंदोलन का माहौल बना हुआ है.

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ताहिर कामरान

पत्रकारिता की रहगुज़र पर क़दम रखते हुए 2015 में एक उर्दू अख़बार से अपने सफ़र का आग़ाज़ किया. उर्दू में दिलचस्पी और अल्फ़ाज़ की मोहब्बत धीरे-धीरे पेशे में ढल गई. उर्दू के बाद हिंदी-पंजाबी अख़बारों म...और पढ़ें

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