Hariyali Teej 2025: शिव-पार्वती के विवाह के लिए कैसे मान गए पर्वतराज, क्या है हरियाली तीज व्रत कथा, पढ़ें
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Hariyali Teej 2025: शिव-पार्वती के विवाह के लिए कैसे मान गए पर्वतराज, क्या है हरियाली तीज व्रत कथा, पढ़ें

Hariyali Teej 2025 Katha In Hindi: धार्मिक मान्यतानुसार हरियाली तीज पर्व पर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है और व्रत का संकल्प किया जाता है. पौराणिक मत है कि माता पार्वती ने शिवजी को पति के रूप में पाने हेतु कठोर तपस्या की.

Hariyali Teej 2025 Katha
Hariyali Teej 2025 Katha

Hariyali Teej Vrat Katha 2025: हिंदू धर्म में हरियाली तीज का बहुत महत्व है. इस साल 27 जुलाई को हरियाली तीज का व्रत रखा जाएगा. धार्मिक महत्व के अनुसार सुहागिन महिलाएं इस दिन व्रत का संकल्प करती हैं और सजधज कर, सोलह शृंगार करके उत्साहपूर्वक शिवजी और माता पार्वती की पूजा करती हैं. इसके साथ ही माता पार्वती को16 शृंगार की सामग्री अर्पित करती हैं. शिव-पार्वती जी की पूजा कर सुहागिनें अपने पति की  लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं. इस दिन सुहागिन महिलाएं और कुंवारी कन्या हरियाली तीज व्रत कथा सुनती सुनाती हैं. 

हरियाली तीज व्रत कथा- Hariyali Teej Vrat Katha 2025
हरियाली तीज व्रत कथा के अनुसार देवी पार्वती अपने पूर्वजन्म में देवी सती थीं जो दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं. देवी सती भगवान शिव को वर के रूप में चुन चुकी थीं और उन्हें ही अपना पति मान चुकी थीं. उन्होंने अपने पिता दक्ष प्रजापति से द्रोह किया और अपनी इच्छा के अनुसार महादेव से विवाह कर लिया. दक्ष प्रजापति ने सती के विवाह के बाद भी शिव दी के विरोधी बने रहे और उन्हें अपने जमाता के रूप में कभी स्वीकार नहीं किया. 

दक्ष के घर मान हानि
एक समय आया जब दक्ष प्रजापति ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया और इस आयोजन के लिए उन्होंने सभी देवी देवताओं, नाग, किन्नर के साथ ही गंधर्व से लेकर ऋषियों को आमंत्रित किया. लेकिन महादेव और देवी सती को इस बड़े आयोजन में आने के लिए आममंत्रित नहीं किया.दक्ष प्रजापति के इस बड़े यज्ञ की चर्चा त्रिलोक में थी और देवी सती को भी इस बारे में पता चला और दुख भी हुआ कि उनके पिता ने उन्हें और महादेव को यज्ञ में आमंत्रित नहीं हुआ. हालांकि देवी सती इस आयोजन में बिना बुलाए ही जाने की जिद्द करने लगीं. हालांकि महादेव ने देवी सती को समझाया कि बिना बुलाए पिता के घर जाने से मान हानि होगी लेकिन सती देवी पिता के घर जाने के लिए इतनी आतुर थीं कि उन्होंने महादेव की बात भी नहीं मानी और आयोजन में चली है. 

शिवजी घोर साधना में लीन हुए 
वहीं, दक्ष प्रजापति ने जब देवी सती को अपने घर बिना बुलाए पाया तो भरी सभा में देवी सती और महादेव का अपमान करने लगे. महादेव को भला बुरा कहने लगे. इस पर देवी सती को बहुत पछतावा हुआ और वो दुख व क्रोध से भर गई. अंत में उन्होंने शिवजी अपमान स्वीकार नहीं किया और पिता के यज्ञ की अग्नि में शिव का ध्यान करते हुए प्रवेश कर गईं. दूसरी ओर देवी सती के देह त्याग की सूचना मिलते ही महादेव क्रोध से भर गए और वीरभद्र प्रकट किया जिसने पहले तो दक्ष प्रजापति के यज्ञ को नष्ट किया और उसका सिर कर दिया और बाद में गधे का सिर लगाया. वहीं महादेव देवी सती के वियोग में घोर साधना में लीन हो गए. इधर देवी सती ने देह त्याग के बाद 107 बार जन्म लिया लेकिन महादेव को पा न सकीं. लेकिन अपने 108वें जन्म में देवी सती ने पार्वती के रूप में पर्वतराज हिमालय के घर पुनर्जन्म लिया. माता पार्वती बचपन से ही शिव भक्ती में लीन रहती और शिव जी को ही अपने वर के रूप में पाने की इच्छा रखती थीं. इसके लिए उन्होंने अनेक वर्षो तक कठोर तपस्या की. 

शिवजी ने देवी पार्वती को स्वीकार किया
इस जन्म में देवी पार्वती ने महादेव को पति रूप में पाने के लिएमृतिका से शिवलिंग बनाया और भक्ति भाव से शिवजी की पूजन की और फिर घोर तपस्या में लीन हो गईं. देवी पार्वती ने अन्न जल त्याग दिया और पत्ते खाकर तब करती रहीं, आगे चलकर उन्होंने पत्ते भी त्याग दिए. किसी भी मौसम में देवी पार्वती ने कभी अपनी तपस्या कभी नहीं छोड़ी. अंत में प्रसन्न होकर सावन माह की हरियाली तीज पर महादेव प्रकट हुए और देवी पार्वती को वरदान दिया कि मुझे पति रूप में पाने की तुम्हारी इच्छा पूर्ण होगी, तुम मेरी अर्धांगिनी होगी. इस तरह देवी हरियाली तीज पर देवी पार्वती को भगवान शिव से मनोनुकूल वर पाने का वरदान शिवजी से प्राप्त हुआ. देवी पार्वती ने भगवान शिव से आग्रह किया जि पर महादेव ने कहा कि जो भी कुंवारी कन्या सावन के हरियाली तीज पर व्रत का संकल्प कर शिव-देवी पार्वती की पूजा करेगी उसे इच्छानुसार सुयोग्य पति की प्राप्ति होगी, वहीं सुहागन महिला हरियाली तीज का व्रत कर सुखी वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद प्राप्त कर पाएंगे. 

पर्वतराज ने दी विवाह की स्वीकृति
अंत में माता पार्वती ने अपने पिता पर्वतराज हिमालय को सारी बात बताई. जिस पर पर्वतराज ने अपनी पुत्री देवी पार्वती का शिवजी से विवाह करने के लिए मान गए. बाद में विधि-विधान से शिव पार्वती शुभ विवाह संपन्न हुआ.

(Disclaimer - प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में सामान्य जानकारियों की मदद ली है. Zee News इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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