Buddhism: जातिवाद और कर्मकांडों से दूर होने के बावजूद भारत से लुप्त क्यों हो गया बौद्ध धर्म? वे वजहें, जिन पर नहीं होती बात
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Buddhism: जातिवाद और कर्मकांडों से दूर होने के बावजूद भारत से लुप्त क्यों हो गया बौद्ध धर्म? वे वजहें, जिन पर नहीं होती बात

Reasons for the decline of Buddhism: जात-पात और कर्मकांडों से दूर होने की वजह से तेजी से उभरा बौद्ध धर्म महज 1500 सालों में ही भारत से लुप्त क्यों हो गया. आखिर ऐसी क्या वजहें रहीं कि आज देश में इसका कोई नामलेवा नहीं है.

 

एआई फोटो
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What reasons for the decline of Buddhism: दुनिया में बौद्ध धर्म को मानने वाले करीब डेढ़ दर्जन देश हैं, जहां के अधिकतर लोग अभी भी इस शांतिप्रिय धर्म का अनुसरण करते हैं. इन देशों में बौद्ध राजकीय धर्म का दर्जा रखता है. लेकिन हैरानी की बात ये है कि जिस भारत में इस धर्म की उत्पत्ति हुई और वहां से यह दुनिया में फैला. उस देश में अब बौद्ध धर्म न के बराबर सिमटकर रह गया है. आखिर ऐसा क्यों है कि जातिवाद और वैदिक कर्मकांड के खिलाफ हवा के ताजा झोंके की तरह देश में उभरा यह अहम धर्म भारत से लुप्त हो गया. ऐसी क्या वजह रही है कि तमाम खूबियों के बावजूद करोड़ों भारतीयों ने इस धर्म से अपना मुंह मोड़ लिया. यह सवाल आपके मन में भी अक्सर कौंधते होंगे. आज इस लेख में हम आपको मन में उठने वाले ऐसे ही तमाम सवालों का जवाब देने जा रहे हैं. 

कैसे हुई बौद्ध धर्म की उत्पत्ति?

सबसे पहले आपको बताते हैं कि बौद्ध धर्म की उत्पत्ति कैसे हुई. इतिहासकारों के अनुसार, बौद्ध धर्म का जन्म लगभग 6ठी शताब्दी ईसा पूर्व भारत में हुआ. इसके संस्थापक सिद्धार्थ गौतम थे, जो बाद में गौतम बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुए. सिद्धार्थ का जन्म लुंबिनी (वर्तमान नेपाल) में 563 ईसा पूर्व के आसपास एक शाक्य राजवंश के राजकुमार के रूप में हुआ. 29 वर्ष की आयु में, उन्होंने सांसारिक जीवन का त्याग कर दिया और आत्मज्ञान की खोज में निकल पड़े. 35 वर्ष की आयु में उन्हें बोधगया (बिहार) में पीपल के एक वृक्ष के नीचे निर्वाण (ज्ञानोदय) प्राप्त हुआ और वे बुद्ध बन गए.

किन 4 मूल सत्यों पर टिका है बौद्ध धर्म?

बौद्ध धर्म का मूल दर्शन 4 आर्य सत्य (दुख, दुख का कारण, दुख का निवारण और निवारण का मार्ग) और अष्टांगिक मार्ग पर आधारित है. यह धर्म अहिंसा, करुणा, और आत्म-संयम पर जोर देता है. बुद्ध के उपदेशों ने जाति व्यवस्था और वैदिक कर्मकांडों के खिलाफ एक सरल और समावेशी दर्शन प्रस्तुत किया, जिसने इसे जनसामान्य में लोकप्रिय बनाया. सम्राट अशोक (268-232 ईसा पूर्व) ने बौद्ध धर्म को अपनाकर इसे भारत और विदेशों (श्रीलंका, दक्षिण-पूर्व एशिया) में फैलाया.

भारत से गायब क्यों हो गया बौद्ध धर्म?

भारत में बौद्ध धर्म का पतन एक लंबी चलने वाली प्रक्रिया थी. अनेक ऐसे कारण थे, जिन्होंने इस खूबसूरत धर्म को भारत से हमेशा के लिए विदा कर दिया. इसकी वजहें निम्नलिखित रही:-

हिंदू धर्म का पुनरुत्थान

7वीं से 12वीं शताब्दी के बीच हिंदू धर्म में भक्ति आंदोलन और दार्शनिक सुधारों ने इसे पुनर्जन्मन प्रदान किया. हिंदू धर्म ने बौद्ध धर्म के कई तत्वों, जैसे अहिंसा और ध्यान, को आत्मसात कर लिया, जिससे बौद्ध धर्म की विशिष्टता कम हुई. हिंदू धर्म के मंदिर और अनुष्ठान बौद्ध मठों की तुलना में अधिक आकर्षक और जन-उन्मुख थे. जैसे आदि शंकराचार्य ने पूरे देश में घूम-घूमकर फिर से सनातन धर्म को प्रतिष्ठित करने में अहम योगदान दिया. 

बौद्ध मठों पर निर्भरता

बौद्ध धर्म मुख्य रूप से मठों (विहारों) और भिक्षुओं पर निर्भर था, जो जनसामान्य से कुछ हद तक कटे हुए थे. मठों की समृद्धि ने उन्हें भ्रष्टाचार और आलस्य का शिकार बना दिया, जिससे आम लोगों का विश्वास कम हुआ. मठों को सम्राट अशोख और कनिष्क जैसे राजाओं ने राजकीय संरक्षण प्रदान किया. जब वे सम्राट नहीं रहे तो बौद्ध धर्म को यह संरक्षण भी कम हो गया और मठ धीरे-धीरे कमजोर पड़ते चले गए.

इस्लामी आक्रमण और मठों का विनाश

12वीं और 13वीं शताब्दी में, तुर्की और मुस्लिम आक्रमणकारियों (जैसे बख्तियार खिलजी) ने बौद्ध मठों, जैसे नालंदा और विक्रमशिला, को नष्ट कर दिया. ये मठ बौद्ध धर्म के प्रमुख केंद्र थे. उनके विनाश ने बौद्ध विद्वानों और भिक्षुओं को तिब्बत, श्रीलंका, और दक्षिण-पूर्व एशिया की ओर पलायन करने के लिए मजबूर किया. इससे भारत में बौद्ध धर्म का तेजी से पतन होता चला गया. 

बौद्ध धर्म की आंतरिक कमजोरियां

बौद्ध धर्म में महायान और वज्रयान जैसे नए संप्रदायों का उदय हुआ, जिनमें जटिल तांत्रिक प्रथाएं शामिल थीं. ये प्रथाएं आम जनता के लिए समझने में कठिन थीं और हिंदू तंत्रवाद से मिलती-जुलती थीं, जिससे बौद्ध धर्म की पहचान धुंधली हुई. बौद्ध धर्म ने वैदिक कर्मकांडों की आलोचना की थी लेकिन वह स्वयं एक जटिल दार्शनिक और मठ-केंद्रित धर्म बन गया, जो जनसामान्य से दूरी बनाता गया.

हिंदू धर्म का लचीलापन

हिंदू धर्म ने समय के साथ अपनी कमजोरियों को दूर किया. वह सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से अधिक लचीला और समावेशी हो गया.कर्मकांडों को दूर कर धर्म पालन को सरल बनाया गया. जातिवाद को धीरे-धीरे एक कुरीति के रूप में स्वीकार किया गया. इसने बौद्ध समुदायों को अपनी एक इकाई व्यवस्था में समाहित कर लिया. इसके चलते कई बौद्ध अनुयायी धीरे-धीरे हिंदू परंपराओं में लौट गए. 

क्या भारत में फिर से पनप पाएगा बौद्ध धर्म?

भारत से पतन के बावजूद बौद्ध धर्म अभी देश से पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है. भारत में आज भी इस खूबसूरत धर्म का पालन करने वाली एक बड़ी आबादी बसती है. अरुणाचल प्रदेश, मैक्लॉडगंज, सिक्किम और दिल्ली में बड़ी संख्या में बौद्ध धर्मावलंबी रहते हैं. संविधान निर्माता कहे जाने वाले डॉक्टर बी आर अंबेडकर की वजह से लाखों दलितों ने भी बौद्ध धर्म को अपनाया था, जिससे एक छोटा जीवनदान मिला. वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बीआर गवई, केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू और अरुणाचल प्रदेश के सीएम पेमा खांडू को बौद्ध धर्म की बड़ी हस्ती के रूप में आप देख सकते हैं. हालांकि अब इसका प्रभाव पहले की तरह नहीं रहा और बौद्ध के रूप में धर्मांतरित हुए लोग धीरे धीरे अपने मूल सनातन धर्म में वापस लौट रहे हैं.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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देविंदर कुमार

अमर उजाला, नवभारत टाइम्स और जी न्यूज चैनल में काम कर चुके हैं. अब जी न्यूज नेशनल हिंदी वेबसाइट में अहम जिम्मेदारी निभा रहे हैं. राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय और जियो पॉलिटिकल मामलों पर गहरी पकड़ हैं. धर...और पढ़ें

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