कृष्ण और द्रौपदी: वो रिश्ता जिसने दिया रक्षाबंधन को जन्म, जब एक साड़ी के टुकड़े ने बना दिया भाई-बहन का अटूट बंधन
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कृष्ण और द्रौपदी: वो रिश्ता जिसने दिया रक्षाबंधन को जन्म, जब एक साड़ी के टुकड़े ने बना दिया भाई-बहन का अटूट बंधन

Raksha Bandhan history Krishna Draupadi: रक्षा बंधन का पर्व कितना पुराना है और इसकी शुरूआत कब हुई. इसका सही-सही जवाब पाने के लिए, जब इतिहास और पौराणिक ग्रंथों के पन्नों को पलटते हैं तो मालूम चलता है. इसकी नींव, युगों पहले पड़ चुकी थी.

कृष्ण और द्रौपदी: वो रिश्ता जिसने दिया रक्षाबंधन को जन्म, जब एक साड़ी के टुकड़े ने बना दिया भाई-बहन का अटूट बंधन

Raksha Bandhan history Krishna Draupadi: रिश्ते कई तरह के होते हैं, कुछ जन्म से मिलते हैं, तो कुछ हालात पैदा करते हैं. लेकिन महाभारत में कृष्ण और द्रौपदी का रिश्ता इन सबसे परे था. यह एक ऐसा रिश्ता था, जिसने प्रेम, सम्मान और विश्वास की एक नई मिसाल पेश की. यह सिर्फ भाई-बहन का रिश्ता नहीं था, बल्कि एक-दूसरे के प्रति समर्पण और सुरक्षा का वचन था. कहते हैं कि इसी रिश्ते ने भारत के सबसे पवित्र त्योहारों में से एक, रक्षाबंधन को जन्म दिया था.

  1. द्रौपदी के साड़ी टुकड़े से शुरू हुई राखी
  2. कृष्ण ने दिया द्रौपदी को सुरक्षा का वचन
  3. भरे दरबार में निभाया गया वो पवित्र वादा

एक घाव से जन्मा था भाई-बहन का रिश्ता
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, एक बार कृष्ण अपनी उंगली पर लगी चोट से परेशान थे, जिससे लगातार खून बह रहा था. उस समय द्रौपदी वहीं मौजूद थीं. उन्होंने जैसे ही कृष्ण की उंगली से बहते खून को देखा, तो वह व्याकुल हो गईं. उन्हें और कुछ नहीं सूझा, और उन्होंने बिना सोचे-समझे अपनी कीमती साड़ी का एक टुकड़ा फाड़ दिया. उन्होंने उस टुकड़े को कृष्ण की उंगली पर बांध दिया, जिससे खून बहना बंद हो गया. द्रौपदी का यह सहज और निस्वार्थ प्रेम देखकर कृष्ण की आंखें भर आईं. उस छोटे से कपड़े के टुकड़े ने कृष्ण के दिल को छू लिया.

कृष्ण ने दिया आजीवन सुरक्षा का वचन
द्रौपदी के इस निःस्वार्थ प्रेम को देखकर कृष्ण ने उसी पल एक वचन लिया. उन्होंने कहा, ‘हे द्रौपदी, तुमने आज मेरे घाव को भर दिया है. मैं तुम्हारे इस ऋण को कभी नहीं भूलूंगा. जब भी तुम्हें मेरी जरूरत होगी, मैं तुम्हारी रक्षा करूंगा.’ कृष्ण ने उस कपड़े के टुकड़े को एक 'रक्षा सूत्र' मानकर स्वीकार किया और द्रौपदी को आजीवन सुरक्षा का वचन दिया. यह कोई औपचारिक त्योहार नहीं था, बल्कि एक अटूट और भावनात्मक बंधन की शुरुआत थी, जो खून के रिश्ते से कहीं बढ़कर था.

जब भरे दरबार में निभाया गया था वो वचन
कई साल बाद, जब महाभारत की सबसे दर्दनाक घटना घटी, तब कृष्ण ने अपना वचन निभाया. कौरवों ने द्रौपदी का चीरहरण करने का प्रयास किया. भरी सभा में जब सभी बड़े-बड़े योद्धा खामोश थे और द्रौपदी असहाय थीं, तब उन्होंने अपने उस भाई को याद किया, जिसे उन्होंने अपनी साड़ी का एक टुकड़ा दिया था.

जैसे ही द्रौपदी ने कृष्ण को पुकारा, उन्होंने अपनी शक्ति से उसकी साड़ी को इतना लंबा कर दिया कि दुशासन उसे खींचते-खींचते थक गया, लेकिन वह द्रौपदी के सम्मान को नहीं छीन पाया. इसी तरह, कृष्ण ने अपने दिए हुए वचन को निभाया और द्रौपदी की रक्षा की.

माना जाता है कि बतौर भाई के रूप में कृष्ण जी ने जिस तरह बहन द्रौपदी की रक्षा की, उसी तरह रक्षा बंधन पर्व पर बहन भी अपने भाई की कलाईयों में राखी बांधती है, और भाई सुरक्षा का वचन देता है.

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प्रशांत सिंह

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