1930 में महात्मा गांधी ने नमक कानून के खिलाफ दांडी यात्रा शुरू की. ये आंदोलन नमक सत्याग्रह के नाम से जाना गया. इस शांतिपूर्ण विरोध ने पूरे देश में आजादी की भावना जगा दी और ब्रिटिश सरकार पहली बार भारतीय नेताओं से बातचीत करने पर मजबूर हुई.
Trending Photos
भारत की आजादी की लड़ाई में कई आंदोलन हुए, लेकिन 1930 में शुरू हुआ नमक सत्याग्रह (Salt Satyagraha) ऐसा आंदोलन था, जिसने पहली बार ब्रिटिश सरकार को भारतीय नेताओं से बातचीत यानी नेगोशिएशन करने पर मजबूर कर दिया. ये वो वक्त था जब भारत की जनता सीधे-सीधे ब्रिटिश हुकूमत को चुनौती देने के लिए सड़कों पर उतर आई थी. इस आंदोलन की शुरुआत हुई महात्मा गांधी की दांडी यात्रा से, जिसने पूरे देश में आजादी की एक नई लहर पैदा कर दी थी.
दांडी यात्रा की शुरुआत कैसे हुई?
महात्मा गांधी ने 12 मार्च 1930 को गुजरात के साबरमती आश्रम से दांडी तक 24 दिन की यात्रा शुरू की. उनके साथ 78 चुने हुए सत्याग्रही थे. ये यात्रा करीब 240 किलोमीटर लंबी थी. इसका मकसद था ब्रिटिश नमक कानून का उल्लंघन करना, जो कहता था कि आम भारतीय नमक नहीं बना सकता और उसे सिर्फ सरकार से खरीदना होगा.
नमक क्यों बना आंदोलन का हिस्सा?
नमक एक ऐसी चीज है जो हर गरीब-अमीर की जरूरत है. अंग्रेजों ने इस पर टैक्स लगाकर लोगों को मजबूर किया कि वो सिर्फ सरकार से नमक खरीदें. गांधी जी ने इसे गरीब जनता से जुड़ा मुद्दा बनाकर आंदोलन की शक्ल दी. 6 अप्रैल 1930 को गांधी जी ने दांडी समुद्र तट पर पहुंचकर खुद नमक बनाया, और यहीं से कानून तोड़ने की शुरुआत हुई.
कैसे फैला ये आंदोलन पूरे देश में?
गांधी जी की इस कार्रवाई ने पूरे भारत में आंदोलन को हवा दे दी. लाखों लोगों ने सरकारी नमक का बहिष्कार किया, कई जगहों पर खुद नमक बनाया गया, विदेशी कपड़ों का बहिष्कार हुआ, और जगह-जगह अहिंसक प्रदर्शन हुए. महिलाएं, छात्र, मजदूर और हर तबके के लोग इस आंदोलन से जुड़ने लगे.
ब्रिटिश सरकार को क्यों हुआ डर?
इस आंदोलन की सबसे बड़ी खासियत ये थी कि ये पूरी तरह अहिंसक था लेकिन इसका असर बहुत गहरा था. लोगों की एकजुटता और शांतिपूर्ण विरोध ने अंग्रेजों की नींव हिला दी. 60,000 से ज्यादा लोगों को जेल में डाला गया, जिनमें खुद गांधी जी भी शामिल थे. आखिरकार, ब्रिटिश सरकार को समझ आ गया कि अगर ये आंदोलन और बढ़ा, तो हालात उनके हाथ से निकल सकते हैं.
बातचीत की टेबल पर आए अंग्रेज
इस आंदोलन के दबाव में आकर ब्रिटिश सरकार ने गांधी जी को 1931 में लंदन बुलाया, जहां उन्होंने गांधी-इरविन समझौते पर बातचीत की. यही वो मोड़ था जब अंग्रेजों ने पहली बार भारतीय नेता से बात की, बिना किसी शर्त के. मानसिक रूप से ये भारत के लिए एक बड़ी जीत थी.