ईरान पर अमेरिकी हमला चीन को संदेश तो नहीं, अब क्या इस देश के कारण भीड़ जाएंगी दो शक्तियां?
Advertisement
trendingNow12818734

ईरान पर अमेरिकी हमला चीन को संदेश तो नहीं, अब क्या इस देश के कारण भीड़ जाएंगी दो शक्तियां?

US China News: विश्लेषकों का कहना है कि ईरान के भूमिगत परमाणु ठिकानों पर अमेरिकी हमले चीन को ताइवान पर आक्रमण के खिलाफ संदेश देते हैं.

 

ईरान पर अमेरिकी हमला चीन को संदेश तो नहीं, अब क्या इस देश के कारण भीड़ जाएंगी दो शक्तियां?

US China Tension: ईरान पर अमेरिका हमला क्या कहता है? क्या चीन को कोई संदेश? विश्लेषकों के अनुसार, ईरान के परमाणु प्रतिष्ठानों पर अमेरिकी हवाई हमले चीन को ताइवान पर आक्रमण के विरुद्ध संदेश देते हैं. चीन ताइवान के स्वशासित द्वीप को एक अलग प्रांत मानता है और उसे मुख्य भूमि के साथ पुनः एकीकृत करने के लिए कोशिश करता रहता है. यदि आवश्यक हो तो बलपूर्वक भी करेगा. 

चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सेना को 2027 तक ताइवान पर आक्रमण करने और पुनः एकीकृत करने के लिए तैयार रहने का आदेश दिया है. विश्लेषकों ने कहा है कि जिस तरह से अमेरिका ने ईरानी परमाणु स्थलों पर हमला किया और इंडो-पैसिफिक में गुआम में बमवर्षकों के एक समूह को तैनात किया, उससे पता चलता है कि संयुक्त राज्य अमेरिका दो थिएटरों में बमवर्षक तैनात करने और दो समानांतर ऑपरेशन करने में सक्षम था. तो क्या यह चीन नहीं समझता?

Firstpost रिपोर्ट में विश्लेषकों ने इस बात पर जोर दिया है कि इसमें ईरान पर अमेरिका का हमला और इधर चीन और ताइवान इसमें एक पेंच है जो अमेरिका-चीन टकराव को अमेरिका-ईरान टकराव से बहुत अलग बना देगा.

ईरान में अमेरिकी हमलों ने चीन को कैसे संदेश दिया?
सबसे पहले अमेरिकी हमलों ने चीन को बताया कि उसके शीर्ष रणनीतिक स्थल जैसे कि केंद्रीय सैन्य आयोग कमांड सेंटर और अग्रिम युद्धकालीन मुख्यालय, अमेरिकी बमों की पहुंच से परे नहीं होंगे. संयुक्त राज्य अमेरिका 'बंकर बस्टर' बम विकसित कर रहा है, जो पिछले सप्ताह ईरान पर गिराए गए बमों से चार गुना अधिक शक्तिशाली होने की उम्मीद है.

दूसरा चीन पर विदेश विभाग के पूर्व नीति नियोजक माइल्स यू के अनुसार, इंडो-पैसिफिक में दिखाने के लिए बमवर्षकों की तैनाती एक शानदार निवारक अभियान था और इसने तेहरान से लेकर ताइवान तक दुनिया भर में संचालन करने की अमेरिकी क्षमताओं को प्रदर्शित किया.

यू ने वाशिंगटन टाइम्स को बताया, 'इस अभियान ने CCP [चीनी कम्युनिस्ट पार्टी] को इस बात की सख्त चेतावनी भी दी कि अमेरिकी सेना क्या करने में सक्षम है, खासकर किसी भी विरोधी को मात देने, योजना बनाने, समन्वय करने और दूर-दूर तक फैले वैश्विक संघर्ष में उसे मात देने की हमारी क्षमता, चाहे वह आधी दुनिया दूर तेहरान में हो या ताइवान जलडमरूमध्य के ऊपर.'

अमेरिकी नौसेना में प्रशांत बेड़े के पूर्व खुफिया प्रमुख कैप्टन जिम फैनेल के अनुसार, इस तरह के संदेश से चीन को यह भी पता चला कि वह हिंद-प्रशांत क्षेत्र का 'मालिक' नहीं है. फैनेल ने वाशिंगटन टाइम्स से कहा, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के पास पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र का कोई स्वामित्व नहीं है और अमेरिका अभी भी दुनिया में सबसे प्रभावशाली सैन्य शक्ति है.

तीसरा, ईरानी परमाणु स्थलों पर बमबारी ने ट्रंप की इच्छाशक्ति को प्रदर्शित किया कि यदि आवश्यक हो तो वे विदेश में हस्तक्षेप करेंगे और सहयोगियों तथा साझेदारों की सहायता करेंगे, अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ फेलो जैक कूपर ने न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा, 'ईरान के हमलों के बाद, मुझे संदेह है कि चीनी नेता अब ताइवान पर राष्ट्रपति ट्रंप के संकल्प का परीक्षण करने के बारे में अधिक चिंतित होंगे.' कूपर ने आगे कहा, 'सावधानी बरतना उचित है, क्योंकि ट्रंप कई लोगों की अपेक्षा से अधिक बल प्रयोग करने के लिए इच्छुक प्रतीत होते हैं, लेकिन इसलिए भी क्योंकि उनके कार्य कम पूर्वानुमानित लगते हैं.'

लेकिन इसमें एक पेंच है
ईरान में अमेरिका द्वारा किए गए हमलों से चीन को जो संदेश मिला है, उसकी गंभीरता के बावजूद, इसमें एक पेंच है: ईरान के विपरीत, चीन के पास परमाणु हथियार हैं.

चूंकि चीन के पास परमाणु हथियार हैं और उसकी नौसेना और वायु रक्षा क्षमताएं ईरान से कहीं बेहतर हैं, इसलिए अमेरिका-चीन टकराव अमेरिका-ईरान टकराव से बहुत अलग होगा.

इसके अलावा, इजरायल का अमेरिका के लिए एक विशेष स्थान है, जो ताइवान का नहीं है. ट्रंप या कोई भी अन्य अमेरिकी राष्ट्रपति ताइवान के लिए इजरायल जैसी सुरक्षा प्रतिबद्धता महसूस नहीं कर सकता है.

दशकों से चीन ताइवान पर आक्रमण और अमेरिकी हस्तक्षेप के लिए खुद को मजबूत करने की तैयारी कर रहा है.

NYT के अनुसार, सेंटर फॉर ए न्यू अमेरिकन सिक्योरिटी के वरिष्ठ फेलो स्टेसी पेटीजॉन ने कहा कि चीनी नेताओं को भरोसा है कि उनकी सेना कमजोर ईरानी सेना की तुलना में कहीं अधिक शक्तिशाली है, जिसे इजरायल और अमेरिकी सेना ने हराया है.

सेंटर फॉर स्ट्रेटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज (CSIS) के एक युद्ध अभ्यास के अनुसार, ताइवान पर चीनी आक्रमण की स्थिति में, जिसमें ताइवान की ओर से अमेरिकी सैन्य भागीदारी देखी जाती है, विनाश उस पैमाने पर होगा जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से नहीं देखा गया है.

CSIS  अभ्यास ने निष्कर्ष निकाला कि अमेरिकी-ताइवान सेनाएं ताइवान पर चीनी कब्जे को विफल कर देंगी, लेकिन इसकी लागत इतनी बड़ी होगी कि अमेरिकी सेना कई वर्षों तक कमजोर हो जाएगी.

Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.

About the Author
author img
नितिन अरोड़ा

लिखने के शौकीन हैं, पिछले 6 सालों से अधिक समय से मीडिया के कई अलग-अलग संस्थानों में काम कर चुके हैं और फिलहाल Zee News की डिजिटल टीम का हिस्सा हैं. यहां जनरल न्यूज व नेशनल, इंटरनेशनल खबरों पर एक्सप...और पढ़ें

TAGS

Trending news

;