Mumbai Train Blast Case in Supreme Court: 2006 में मुंबई ट्रेन ब्लास्ट की घटना जिसमें 189 लोगों की मौत हुई थी और इस मामले में 12 लोगों को मकोका अदालत ने फांसी और उम्रकैद की सजा सुनाई थी और सभी मुजरिम जेल में सजा काट रहे थे. 21 जुलाई को मुंबई हाई कोर्ट ने सभी को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था. इस मामले में महाराष्ट्र सरकार ने HC के फैसले को SC में चुनौती दी थी, जिसके बाद SC ने सभी 12 लोगों की रिहाई पर रोक लगा दी है.
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Mumbai Train Blast Case in Supreme Court: मुंबई ट्रेन ब्लास्ट के मामले में बेगुनाह होने के बावजूद 18 सालों तक सज़ा काटने के बाद रिहा होने वाले 12 मुजरिमों की खुशियों पर फिर से ग्रहण लग गया है. एक बार फिर से उनकी बेगुन्ही और आज़ादी पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं. 24 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने उनकी रिहाई पर रोक लगा दी है.
21 जुलाई को बॉम्बे हाईकोर्ट ने साल 2006 में मुंबई ट्रेन ब्लास्ट के मामले में सज़ा काट रहे 12 मुजरिमों को सभी इल्जामों से बरी करते हुए रिहा कर दिया गया था. हाईकोर्ट ने कहा था कि जो भी सबूत पेश किए गए थे, उनमें कोई ठोस तथ्य नहीं था, और इसी आधार पर सभी को बरी कर दिया गया है. पुलिस और जांच एजेंसियों ने पकड़े गए मुलजिमों से मारपीट और प्रताड़ित कर अपने पक्ष में बयान दर्ज करवाए थे.
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हाईकोर्ट के इस फैसले से जहाँ उन 12 लोगों को 19 सालों से आतंकवादी कहलाने का दाग धोने और जेल से रिहा होने की ख़ुशी मिली थी. वहीँ, हाईकोर्ट के इस फैसले से कई सवाल खड़े हो गए थे. पहला सवाल ये था कि आखिर पुलिस और जांच एजेंसियों ने ऐसी लापरवाही क्यों की, जिसमें 12 बेगुनाह लोगों को 18 साल तक उस बात की सजा दी गई, जो गुनाह उन्होंने कभी किया ही नहीं था ? इसमें दूसरा बड़ा सवाल ये था कि अगर वो 12 मुजरिम बेक़सूर और बेगुनाह हैं, तो इस जुर्म का असली मुजरिम कौन है? यह ब्लास्ट 11 जुलाई 2006 की शाम में हुई थी. सात अलग-अलग जगहों पर बम धमाके हुए थे. इस धमाके में 189 लोगों की जान गई थी और 827 से ज़यादा मुसाफिर घायल हुए थे.
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21 जुलाई को 12 मुजरिमों को रिहा किये जाने के बाद से ही महाराष्ट्र सरकार ने हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कही थी. गुरुवार को इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई जिसमें महाराष्ट्र सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए इस मामले की दुबारा सुनवाई करने की मांग की. महाराष्ट्र सरकार की जानिब से पेश हुए SG तुषार मेहता ने कहा कि इस केस में सभी आरोपी बरी कर चुके हैं. हम यह नहीं कह रहे कि आप वापस उन्हें जेल भेज दे, लेकिन इस फैसले में कई ऐसी टिप्पणी की गई है, जो मकोका के दूसरे केस में ट्रायल को प्रभावित कर सकता है. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सभी की रिहाई पर रोक लगा दी है. लेकिन कोर्ट ने कहा है कि उन्हें अभी गिरफ्तार कर जेल नहीं भेजा जाएगा.
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ किया है कि बॉम्बे हाई कोर्ट का आदेश किसी दूसरे मामले में नज़ीर नहीं बनेगा. यानी इसका हवाला देकर कोई अन्य कोर्ट किस दूसरे आरोपी को किसी दूसरे केस में राहत नहीं देगा. SC ने महाराष्ट्र सरकार की याचिका पर सभी आरोपियों को नोटिस जारी किया है. उनका जवाब आने के बाद कोर्ट आगे सुनवाई करेगा. SC आगे विस्तृत सुनवाई के बाद यह तय करेगा कि सभी आरोपियों को बरी किए जाने का फैसला ठीक है या नहीं ?
ओवैसे ने पूछा, "क्या माले गाँव के आरोपी अगर बरी होंगे तो भी आप ऐसी ही अपील करेंगे ?"
वहीँ, 2006 के मुंबई ट्रेन विस्फोट मामले में 12 आरोपियों को बरी करने के बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोक लगाए जाने पर AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है, और कहा है कि 18 साल बाद रिहा हुए आरोपियों को दोबारा गिरफ्तार नहीं किया जाएगा. मैं केंद्र सरकार और महाराष्ट्र सरकार से पूछना चाहता हूं कि जब वे पूरी तरह से निर्दोष साबित हुए हैं, तो आप यह अपील क्यों कर रहे हैं? मैं यह भी पूछना चाहता हूं कि अगर मालेगांव विस्फोट के आरोपी जिस पर फैसला सुरक्षित है, बरी हो जाते हैं, तो क्या आप तब भी अपील करेंगे?"
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