Mustafabad Building Collapsed: गर्मियों की एक आम सी रात थी... हवा में उमस थी, मगर माहौल में कोई हलचल नहीं थी. दयालपुर थाना क्षेत्र के शक्ति विहार गली नंबर 1 में लोग अपने-अपने घरों में सोने की तैयारी कर रहे थे. घर में कुछ बच्चे मोबाइल पर गेम खेल रहे थे, तो कहीं कोई मां अपने बच्चों को कहानी सुना रही थी. मगर किसे पता था कि यही कहानियां, यही हंसी- कुछ घंटों में हमेशा के लिए मलबे में दब जाएगी. रात के करीब 2:15 बजे जमीन ऐसे कांपी कि मानो धरती ने खुद चीख मारी हो. चार मंजिला पुरानी इमारत अचानक ऐसे गिरी जैसे रेत का घर हो. जो लोग भीतर थे, उन्हें निकलने तक का मौका भी नहीं मिला. आसपास के लोग नींद से हड़बड़ा कर उठे, लेकिन जो देखा वो किसी बुरे सपने से कम नहीं था- धूल का गुबार, चीखें और सन्नाटा. पहली चीख पास वाले मकान से आई- बचाओ ... फिर एक और हर तरफ मातम. मलबे में दबने वालों के रिश्तेदार घटना स्थल पर पहुंच गए, कोई अपने भाई को पुकार रहा था तो कोई अपनी बेटी को ढूंढ रहा था. एक मां अपनी तीन साल की बच्ची को सीने से लगाए मलबे के नीचे मिलती है. उसे देखकर रेस्क्यू टीम की आंखें भी भर आईं. पड़ोसियों की आंखों में सिर्फ आंसू नहीं थे, एक सवाल भी था-क्या ये हादसा था या किसी की लापरवाही की सजा. NDRF की टीम ने सुबह तक 19 शव निकाले. बाकी लोगों की तलाश जारी थी. इस त्रासदी ने फिर से दिखा दिया कि पुराने और जर्जर इमारतों पर समय रहते कार्रवाई ना करना कितना भारी पड़ सकता है. मुस्तफाबाद अब चुप है, मगर उसकी दीवारों पर आज भी वो चीखें गूंज रही हैं और उस गली में एक सवाल हवा में तैर रहा है कि किसकी जिम्मेदारी थी ये?.