Indian History in Hindi: अपनी खुशहाली की वजह से भारत सदियों के इस्लामिक हमलावरों का आसान निशाना बनता रहा. लेकिन आज से करीब 1 हजार साल पहले भारत में ऐसा महायोद्धा भी जन्मा था, जिसने गाजी की सेना को गाजर-मूली की तरह काटकर रख दिया था.
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Maharaj Suheldev-Salar Ghazi Masood War: अपनी सुख-समृद्धि की वजह से भारत को प्राचीन काल से सोने की चिड़िया माना जाता था. यही वजह थी कि दुनिया के बहुत सारे शासकों की भारत की इस अमीरी को देखकर लार टपकती थी. इस दौलत को लूटने के लिए इस्लामी हमलावरों ने रह-रहकर कई बार भारत पर हमले किए. इन्हीं में से एक क्रूर शासक अफगानिस्तान का महमूद गजनवी था. उसने 17 बार भारत पर हमले किए और सोमनाथ समेत देश के कई अहम मंदिरों को ध्वस्त कर डाला. साथ ही हजारों हिंदुओं को कतार में खड़ा करके मार डाला और महिलाओं का अपहरण करके गजनी ले गया. उसने जिन-जिन इलाकों को जीता, वहां पर लोगों को जबरन मुसलमान बनने का अभियान चला दिया. जो उसकी बात नहीं मानता था, उसकी गर्दन सरेआम काट ली जाती थी.
गाजी की सेना का कर दिया सफाया
जब पूरा हिंदुस्तान उसके जुल्मोसितम के आगे कराह रहा था, तब देश में एक 'परम' योद्धा उभरकर सामने आया. उसने आसपास के दूसरे स्थानीय राजाओं और बहादुर समुदायों के साथ गठबंधन करके विशाल सेना का निर्माण किया. इसके बाद उसने गाजी की सेना पर हमला कर उसे गाजर-मूली की तरह काटकर रख दिया. उसका हमला इतना भयानक और सटीक था कि गजनी की लगभग पूरी सेना ही नष्ट हो गया. इस महासंग्राम का असर ये हुआ कि अगले डेढ़ सौ साल तक कोई भी इस्लामी हमलावर भारत की ओर झांकने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाया और देश पूरी तरह आजाद हो गया.
महाराज सुहेलदेव ने सालार गाजी का किया खात्मा
यह 'परम' योद्धा कोई और नहीं बल्कि श्रावस्ती के राजा महाराजा सुहेलदेव थे. उनका शासन 11वीं सदी में वर्तमान यूपी के बहराइच और श्रावस्ती जिलों में फैला हुआ था. उन्होंने 1034 ईस्वी में बहराइच में गजनी के भांजे और सेनापति सैयद सालार मसूद गाजी को हराकर सेना समेत खत्म कर दिया था.
सैयद सालार मसूद गाजी 11वीं शताब्दी में भारत पर हमला करने आया था. उसने सिंधु नदी को पार करके मुल्तान, दिल्ली, मेरठ, और सतरिख पर कब्जा कर लिया था. मसूद ने बहराइच पर हमला किया, जहां उसका सामना सुहेलदेव और उनकी सेना से हुआ. कुछ स्रोतों के अनुसार, मसूद ने रात में हमला किया, लेकिन सुहेलदेव ने रणनीतिक कौशल से उनकी सेना को परास्त कर दिया.
बहराइच में चित्तौरा झील के किनारे हुआ युद्ध
बहराइच का युद्ध 1034 ईस्वी में चित्तौरा झील के तट पर हुआ, जिसे कौड़ियाला नदी के नाम से भी जाना जाता है. सुहेलदेव गजनी की सेना की विशालता और क्रूरता के बारे में पहले से जानते थे. इसलिए उन्होंने सुनियोजित तरीके से आसपास के 21 पासी राजाओं और अन्य स्थानीय समुदायों (जैसे थारू और बंजारा) के साथ एक गठबंधन सेना का निर्माण किया. इस संयुक्त सेना ने मसूद की विशाल सेना को हराया.
कई स्रोतों के मुताबिक, सालार गाजी मसूद ने अपनी सेना में आगे गायों को आगे रखकर हिंदू योद्धाओं को कमजोर करने की रणनीति बनाई थी. लेकिन सुहेलदेव ने चतुराई से गायों को पहले ही छुड़ा लिया, जिससे मसूद की रणनीति विफल हो गई. इसके बाद सुहेलदेव की सेना उन पर कहर बनकर टूट पड़ी और एक-एक करके अफगानी मुस्लिम हमलारों के सिर कटकर नीचे गिरने गिरने.
150 साल तक नहीं हुआ विदेशी हमला
इस भयंकर युद्ध में सालार गाजी भी बुरी तरह घायल हो गया, जहां पर बाद में उसकी मौत हो गई. उसके साथ आई सेना भी लगभग पूरी तरह खत्म कर दी गई. जो थोड़े-बहुत बच गए, उन्होंने बाद में महाराज सुहेलदेव के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. मरने के बाद गाजी को बहराइच में दफनाया गया.
इस महायुद्ध का परिणाम ये हुआ कि करीब 150 साल तक किसी भी मुस्लिम हमलावर की हिम्मत भारत पर हमला करने की नहीं हुआ. उन्हें गाजी मसूद की तरह अपने अंत का डर सताने लगा. उन्हें लगा कि कहीं फिर से भारतीय राजा एकजुट होकर उन्हें दोजख में न पहुंचा दें.
सीएम योगी ने बंद कर दी थी कुप्रथा
गाजी मसूद की मौत के कई साल बाद कुछ लोगों ने उसकी कब्र पर मजार बना दी. जिसे बाद में कट्टरपंथियों ने दरगाह का रूप दे दिया और क्रूर गाजी मसूद को पीर (महात्मा) घोषित कर उसकी मौत पर सालाना उर्स (दुख) मनाने लगे. हैरानी की बात ये रही कि लाखों हिंदुओं का सिर काटने वाले दरिंदे गाजी मसूद की कब्र पर हर साल सैकड़ों हिंदू भी अपना शीश झुकाने पहुंचते थे और उससे अच्छे जीवन की दुआ मांगते थे.
लेकिन इस साल यूपी की योगी सरकार ने आदेश जारी कर उर्स की इस कुप्रथा को बंद करवा दिया. जिसके बाद अब गाजी मसूद का नाम धीरे-धीरे इतिहास से मिटाने का काम शुरू हो गया है. वहीं हर साल बसंत पंचमी और 10 जून को बहराइच में सुहेलदेव विजयोत्सव मनाया जाता है, जो उनकी जीत की स्मृति में आयोजित होता है.