1947 से 5 साल पहले ही आजाद हो गया था देश का ये जिला! कौन था वो योद्धा जिससे थर्रा गई थी ब्रिटिश हुकूमत?
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1947 से 5 साल पहले ही आजाद हो गया था देश का ये जिला! कौन था वो योद्धा जिससे थर्रा गई थी ब्रिटिश हुकूमत?

देश का एक ऐसा भी जिला रहा जिसने 5 साल पहले यानि कि 1942 में ही ब्रिटिश हुकूमत से खुद को आजाद कर लिया था. अब आपके दिमाग में ये सवाल जरूर उठ रहा होगा कि आखिर देश का वो कौन सा जिला है जिसने देश की आजादी से पहले ही खुद को आजाद घोषित कर दिया था.

Bhagi Ballia
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Independence Day 2025: हमारे देश को आजादी मिले 78 साल बीत चुके हैं. भले ही हमारे देश को आजादी 15 अगस्त 1947 में मिली हो लेकिन देश का एक ऐसा भी जिला रहा जिसने 5 साल पहले यानि कि 1942 में ही ब्रिटिश हुकूमत से खुद को आजाद कर लिया था. अब आपके दिमाग में ये सवाल जरूर उठ रहा होगा कि आखिर देश का वो कौन सा जिला है जिसने देश की आजादी से पहले ही खुद को आजाद घोषित कर दिया था. तो चलिए हम आपको बताते हैं कि वो कौन सा जिला था जिसने 5 साल पहले ही आजादी की हवा में सांस ले ली थी और कौन था वो योद्धा जिसने ब्रिटिश हुकूमत को इस जिले को आजाद करने पर मजबूर कर दिया था. 

उत्तर प्रदेश का बलिया जिला वो जिला था जिसने 20 अगस्त 1942 को ही खुद को ब्रिटिश हुकूमत से आजाद घोषित कर दिया था. हालांकि ये आजाद कुछ ही दिनों की थी. बाद में ब्रिटिश हुकूमत ने अंग्रेज सैनिकों को भेजकर बलिया को फिर से अपनी सत्ता में शामिल कर लिया था. बलिया को 5 साल पहले आजादी दिलाने वाले नायक थे चित्तू पांडेय, जिन्होंने अपने नेतृत्व में बलिया जिले को ब्रिटिश हुकूमत से 5 साल पहले ही आजाद करवा दिया था. चित्तू पांडेय को आज भी 'बलिया के शेर' के नाम से जाना जाता है.

'अंग्रेजों भारत छोड़ो' आंदोलन से सुलगी थी आग
9 अगस्त 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो का आंदोलन शुरू हो चुका था. देश का कोना-कोना असंतोष की आग से झुलस रहा था. पूरे देश में 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' नारे की गूंज सुनाई दे रही थी. इसी आंदोलन ने उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में जोरदार पकड़ बनाई. बलिया में इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे चित्तू पांडेय. ब्रिटिश हुकूमत ने इस आंदोलन को दबाने के लिए बलिया में चित्तू पांडेय को गिरफ्तार कर लिया. बस फिर क्या था 'बागी' बलिया के नाम से मशहूर इस जिले में जनता ने वर्तानिया सरकार के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंक दिया. चित्तू पांडेय की गिरफ्तारी के बाद पूरे जिले में प्रदर्शन शुरू हो गया.

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बलिया आंदोलन के बाद बंबई में हुई कांग्रेस नेताओं की गिरफ्तारी
वहीं मुंबई में इस आंदोलन के चलते कई कांग्रेस नेताओं की गिरफ्तारी हुई.इसके अगले दिन 10 अगस्त को नेताओं की गिरफ्तारी की खबर बलिया भी पहुंची इसके बाद बलिया में सभी स्कूलों को बंद करने का आह्वान किया गया. अब छात्र समूहों में घूमने लगे और देशभक्ति के नारे लगाने लगे. इसके अगले दिन यानि 12 अगस्त को बलिया के विद्यार्थियों ने एक जुलूस निकाला जिसमें उन्होंने कोर्ट को बंद करने की मांग कर डाली. इस जुलूस को अंग्रेजों के हथियारबंद सिपाहियों ने रोका, इस जुलूस पर लाठी चार्ज की लोग घायल हुए. इस घटना की गूंज लंदन तक पहुंची. ब्रिटिश संसद में कहा गया कि बलिया में विद्रोहियों ने सरकार को चुनौती दे दी है टेलीफोन और टेलीग्राफ के तार काट दिए हैं. न्याय और प्रशासन का काम ठप कर दिया गया है. सेना और भर्ती के कार्यक्रमों का जनता ने बहिष्कार कर दिया है. 

चित्तू पांडेय की गिरफ्तारी के बाद जनता ने संभाला मोर्चा
चित्तू पांडेय और कई सत्याग्रहियों की गिरफ्तारी के बाद बलिया की जनता ने आंदोलन की बागडोर अपने हाथों में ले ली. बलिया की जनता ने एक सीक्रेट प्लान के तहत 17 और 18 अगस्त की तारीखों तक जिले की सभी तहसीलों और जिले के प्रमुख स्थानों पर कब्जा जमाने की योजना बनाई.वहीं इसी बीच ब्रिटिश हुकूमत के एक बर्बर थानेदार ने 19 स्वतंत्रता सेनानियों की हत्या कर दी. इसके बाद बौखलाए आंदोलनकारियों ने पूरे थाने को आग के हवाले कर दिया. बागी जनता अब और अधिक उग्र हो गई.

बलिया की आजादी का ऐतिहासिक दिन
इसके अगले दिन यानि कि 19 अगस्त, 1942 को सरकारी आंकड़ों के मुताबिक लगभग 50 हजार लोग हाथों में हथियार लिए हुए अपने घरों बलिया जिला मुख्यालय की ओर निकल पड़े. इन सब का एक ही उद्देश्य था कि जेल में बंद अपने नेता चित्तू पांडेय की आजादी.जब जिला मजिस्ट्रेट को इस बात की जानकारी मिली तो वो घबरा गए और जेल में बंद चित्तू पांडेय सहित सत्याग्रही नेताओं से मुलाकात करने चले गए. आखिरकार मजबूर होकर मजिस्ट्रेट चित्तू पांडेय सहित 150 सत्याग्रही नेताओं को रिहा कर दिया था. इसी के साथ 20 अगस्त को ही आंदोलनकारियों ने बलिया को आजाद घोषित कर दिया था और जिले में राष्ट्रीय सरकार का विधिवत गठन किया और चित्तू पांडेय आजाद बलिया के पहले कलेक्टर और पंडित महानंद मिश्र पहले पुलिस अधीक्षक बने. हालांकि ये आजादी महज 4 दिनों तक ही रह पाई क्योंकि 24 अगस्त को अंग्रेज सेना ने सड़क मार्ग से होते हुए फिर से बलिया पहुंच गई और पूरे शहर में मार-काट मचाकर कब्जा कर लिया. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस बर्बरता में 84 लोग शहीद हो गए थे.

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रवीन्द्र सिंह

5 सालों तक टेलीविजन मीडिया के बाद बीते एक दशक से डिजिटल मीडिया में सक्रिय, देश-विदेश की खबरों के साथ क्रिकेट की खबरों पर पैनी नजर

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