DNA Analysis: श्री कृष्ण ने अर्जुन को ज्ञान किसी स्कूल में नहीं, रणभूमि में दिया था. वे दुनिया के पहले गुरु थे, जिन्होंने संसार में रहते हुए साधना सिखाई. युद्ध के कोलाहल में चैन की बांसुरी बजाने की कला सिखाई. आज विद्यार्थियों को परीक्षा का स्ट्रेस है, बरोजगारों को रोजगार हासिल करने का स्ट्रेस है.
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DNA Analysis: इस शिक्षक महोदय को योगी से दिक्कत है, लेकिन चंद संकीर्ण सोच वाले उन चंद मुस्लिम समुदाय के लोगों से दिक्कत नहीं है, जो भगवद् गीता को स्कूलों में पढ़ाए जाने का विरोध कर रहे हैं. आज हम ऐसी छोटी सोच का विश्लेषण करेंगे, क्योंकि अंग्रेज 'लॉर्ड मैकाले' के बनाए नियमों से शिक्षा लेने वाले इस महाशय को भारतीय ज्ञान परंपरा का कोई अनुमान ही नहीं है. इन्हें यह नहीं पता कि भारतीय परंपरा में ज्ञान किसी चारदीवारी की छत के नीचे नहीं दिया जाता था. यह दुनियादारी के बीच रह कर दिया जाता था. श्री कृष्ण ने अर्जुन को ज्ञान किसी स्कूल में नहीं, रणभूमि में दिया था.
वे दुनिया के पहले गुरु थे, जिन्होंने संसार में रहते हुए साधना सिखाई. युद्ध के कोलाहल में चैन की बांसुरी बजाने की कला सिखाई. आज विद्यार्थियों को परीक्षा का स्ट्रेस है, बरोजगारों को रोजगार हासिल करने का स्ट्रेस है. जिनके पास नौकरी है, उन्हें अपनी नौकरी में बने रहने और बेहतर परफॉर्म करने का स्ट्रेस है. वे इनसे कैसे निपटें, यह बड़ा सवाल है. अपना 100 पर्सेंट देने से पहले परिणाम की परवाह करने वाले लोगों को श्री कृष्ण की 'डिटैचमैंट थ्योरी' से अवगत करवाना समय की मांग है. 'कर्म करो, फल की चिंता मत करो क्योंकि फल की चिंता बेहतर परफॉर्म करने के आड़े आएगी.' यह अनोखा ज्ञान क्या किसी धर्म विशेष के लोगों के लिए है? नहीं, भगवद् गीता का यह ज्ञान पूरी मानवता के लिए है. यही वजह है कि अब गीता के श्लोक का पाठ रोज 'देवभूमि' के स्कूलों में करवाया जा रहा है.
#DNAWithRahulSinha | देवभूमि में गीता पढ़ाने पर क्यों हुआ बवाल? स्कूलों में गीता के श्लोक से किसे दिक्कत है?#DNA #Uttarakhand #CMDhami #BhagavadGita @RahulSinhaTV pic.twitter.com/teSDYui7PB
— Zee News (@ZeeNews) July 16, 2025
उत्तराखंड के स्कूलों में हर सुबह प्रार्थना में भगवद् गीता के श्लोक को शामिल किया गया है. मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने इसके लिए आदेश जारी किया है. उत्तराखंड के करीब 17 हजार सरकारी स्कूलों में अब सुबह की प्रार्थना सभा में हर दिन गीता के श्लोक का न सिर्फ उच्चारण होगा, बल्कि श्लोक का अर्थ भी बच्चों को बताया जाएगा. मंगलवार से यह आदेश सभी स्कूलों में लागू कर दिया गया है. उत्तराखंड सरकार का मकसद तो बच्चों को अपनी प्राचीन परंपराओं से अवगत कराना है, लेकिन सरकार के इस फैसले को धार्मिक विवाद बनाने की कोशिश की जा रही है.
स्कूलों में भगवद् गीता को पढ़ाए जाने का मुस्लिम समाज के चंद लोगों ने विरोध किया है. सवाल है कि आखिर इन लोगों को गीता पढ़ाए जाने से दिक्कत क्या है? मुस्लिम समाज के कुछ लोगों का कहना है कि सरकार एक विशेष समुदाय के लोगों को खुश रखने के लिए इस तरह के कदम उठा रही है. उनका कहना है कि जरूरत पड़ने पर मुस्लिम समाज सड़कों पर उतरेगा और इसका विरोध करेगा. वे यह भी दलील दे रहे हैं कि अगर स्कूलों में गीता पढ़ाई जा सकती है तो कुरान पढ़ाने में क्या एतराज है?
मुस्लिम समाज को यह खयाल दिल से निकाल देना चाहिए कि भगवद् गीता का ज्ञान कोई धार्मिक ज्ञान है. और इसलिए यह जानना जरूरी है कि भगवद् गीता का ज्ञान जीवन के अलग-अलग पहलुओं को समझने और रोजाना की समस्याओं से निपटने में कैसे फायदेमंद है. विरोध से पहले ये जान लेना जरूरी है कि गीता किस तरह हमें मानसिक, शारीरिक और वैज्ञानिक तरीके से लाभ पहुंचाती है.
मानसिक लाभ की बात करें तो गीता में मेडिटेशन और सेल्फ एनालिसिस की अहमियत बताई गई है. यह मेंटल पीस के लिए उपयोगी होता है. हर स्थिति में सम-भाव यानी कूल रहने का ज्ञान पॉजिटिविटी बढ़ाता है. मेंटल बैलेंस के लिए भी यह उपयोगी होता है. श्रीकृष्ण के उपदेश जटिल परिस्थितियों में नैतिक और तार्किक निर्णय लेने में मदद करते हैं.
शारीरिक लाभ की बात करें तो गीता में संतुलित आहार, योग और व्यायाम, और पर्याप्त विश्राम पर जोर दिया गया है. यह शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है. गीता की स्ट्रेस मैनेजमेंट टेकनीक से ब्लड प्रेशर, स्लीपिंग डिसऑर्डर और हार्ट से जुड़ी बीमारियों से बचा जा सकता है. ध्यान और प्राणायाम से हाई एनर्जी मिलती है और शरीर का रेजिस्टेंस पॉवर मजबूत होता है.
वैज्ञानिक रूप से देखें तो गीता में बताई गई माइंड कंट्रोल और इमोशनल इंटेलिजेंस की तकनीक मॉडर्न साइकोलॉजी और न्यूरोसाइंस के सिद्धांतों से मेल खाती है. गीता तर्क और विवेक के आधार पर फैसले लेने की वकालत करती है, यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है. गीता का निष्काम कर्म का सिद्धांत और टाइम मैनेजमेंट की तकनीक कॉरपोरेट वर्ल्ड में 'फ्यूचर लीडर्स' को तैयार करने में कारगर हो रही है.
भगवद् गीता, भले ही हिंदू धर्म और भारत का एक प्रमुख आध्यात्मिक और दार्शनिक ग्रंथ है, लेकिन इसे दुनिया भर के देशों, संस्थानों और संगठनों की ओर से अपनाया और सम्मानित किया जाता है. आज पूरी दुनिया में योग को स्वीकार किया गया है. गीता को ह्यूस्टन, टोक्यो, सिडनी जैसे शहरों में बड़े पैमाने पर पढ़ा और पढ़ाया जाता है, जो इसकी वैश्विक एकता और आध्यात्मिक महत्व को दर्शाता है. हार्वर्ड, येल, ऑक्सफोर्ड, कैंब्रिज, और शिकागो विश्वविद्यालय, में गीता को भारतीय दर्शन और धर्म के अध्ययन में शामिल किया गया है.
यानी भगवद् गीता को भारत और विश्व भर में कई धार्मिक, शैक्षिक, और सांस्कृतिक संस्थानों द्वारा अपनाया गया है, लेकिन भारत में ही कुछ संकीर्ण सोच वालों को यह स्वीकार नहीं है, यह बेहद अफसोस की बात है.