2 साल में भी ठीक से नहीं बोल पा रहा है बच्चा, पैरेंट की ये एक गलती बन रही है विलेन
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2 साल में भी ठीक से नहीं बोल पा रहा है बच्चा, पैरेंट की ये एक गलती बन रही है विलेन

आपने गौर किया होगा कि कई बार बच्चे 2 की उम्र पार करने के बाद भी सही तरीके से बोल नहीं पाते, दरअसल इसके पीछे ज्यादा स्क्रीन टाइम जिम्मेदार है. 

2 साल में भी ठीक से नहीं बोल पा रहा है बच्चा, पैरेंट की ये एक गलती बन रही है विलेन

Speech Delay: आजकल छोटे बच्चों को घंटों मोबाइल या लैपटॉप पर कार्टून देखते देखना आम बात हो गई है. माता-पिता अक्सर इसे बच्चों को बिजी रखने का एक आसान तरीका मानते हैं, लेकिन ये आदत बच्चों के डेवलपमेंट, खासकर उनके लैंग्वेज स्किन पर सीरियस नेगेटिव इफेक्ट डाल सकती है. रिसर्च से पता चला है कि जो बच्चे कम उम्र में स्क्रीन पर ज्यादा टाइम बिताते हैं, उनमें देर से बोलने की परेशानी होने की संभावना ज्यादा होती है.

कम्यूनिकेशन की कमी और लैंग्वेज डेवलपमेंट पर असर

बच्चे भाषा तब सीखते हैं जब वो अपने आस-पास के लोगों के साथ बातचीत करते हैं. जब एक बच्चा माता-पिता या देखभाल करने वाले से बात करता है, तो वो शब्दों को सुनते हैं, उन्हें दोहराने की कोशिश करते हैं, उसके लिप्सिंग को रीड करते हैं और उनके मतलब को समझते हैं. कार्टून देखते समय, ये कम्यूनिकेशन पूरी तरह से गायब होता है. स्क्रीन से आने वाली आवाजें एकतरफा होती हैं; वो बच्चे के जवाब का इंतजार नहीं करतीं और न ही उसके इशारों या हाव-भाव पर रिएक्ट करती हैं. ये एकतरफा एक्सपोजर बच्चे के दिमाग को लैंग्वेज प्रोसेसिंग के लिए जरूरी सोशल सिग्नल्स और बातचीत के पैटर्न को समझने से रोकता है.

बच्चे की जरूरत को समझें
साइकोलॉजिस्ट्स का मानना है कि बच्चों को भाषा सीखने के लिए इंसान की आवाज और चेहरे के एक्सप्रेशन की जरूरत होती है. जब बच्चे किसी शख्स को बोलते हुए देखते हैं, तो वो होंठों की हरकतों, आंखों के इशारों और हाव-भाव को समझते हैं, जो शब्दों के मतलब को समझने में मदद करते हैं. स्क्रीन पर कार्टून कैरेक्ट, भले ही वे रंगीन और अट्रेक्टिव हों, लेकिन इन मानवीय इशारों की नकल नहीं कर सकते. इससे बच्चे की शब्दों को आवाज से जोड़ने और उनके मतलब को समझने की क्षमता में रुकावट पैदा होती है.

सोशल ऑफ कोगनिटिव डेवलपमेंट पर असर
बोलने में देरी सिर्फ लैग्वेज स्किल तक ही सीमित नहीं है. ये बच्चे के सोशल ऑफ कोगनिटिव डेवलपमेंट को भी अफेक्ट करती है. जो बच्चे देर से बोलना शुरू करते हैं, उन्हें अपने जज्बात को बयां करने या दूसरों के साथ बातचीत करने में परेशानी हो सकती है. इससे उनमें निराशा और चिड़चिड़ापन बढ़ सकता है. इसके अलावा, बहुत ज्यादा स्क्रीन टाइम बच्चों की कल्पना की ताकत और क्रिएटिविटी को भी सीमित कर सकता है. 

 

कब दें बच्चों को गैजेट्स?
ज्यादातर एक्सपर्ट्स सलाह देते हैं कि 2 साल से कम उम्र के बच्चों को स्क्रीन से पूरी तरह से दूर रखना चाहिए, और 2 से 5 साल के बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम हर दिन एक घंटे तक सीमित होना चाहिए, वो भी माता-पिता की देखरेख में. इसके बजाय, बच्चों को किताबें पढ़ने, गाने गाने, खेल खेलने और परिवार के सदस्यों के साथ बातचीत करने के लिए एनकरेज करना चाहिए. ये एक्टिविटीज उनके लैंग्वेज और ओवरऑल डेवलपमेंट के लिए बेहद जरूरी हैं.

Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में घरेलू नुस्खों और सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.

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