भारत में CBI का गठन कब और क्यों हुआ था? जानिए इसका पहला केस और पूरी कहानी
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भारत में CBI का गठन कब और क्यों हुआ था? जानिए इसका पहला केस और पूरी कहानी

भारत में CBI की स्थापना 1963 में भ्रष्टाचार और गंभीर अपराधों की निष्पक्ष जांच के लिए की गई थी. इसका पहला केस LIC घोटाले से जुड़ा था. यह एजेंसी आज देश की सबसे बड़ी जांच संस्था मानी जाती है, जो हाई-प्रोफाइल मामलों की जांच के लिए जानी जाती है.

भारत में CBI का गठन कब और क्यों हुआ था? जानिए इसका पहला केस और पूरी कहानी

भारत में जब भी कोई बड़ा घोटाला, मर्डर या भ्रष्टाचार का मामला सामने आता है, तो एक नाम सबसे पहले सुनाई देता है 'CBI' (Central Bureau of Investigation). लोग इसे एक भरोसेमंद एजेंसी मानते हैं, जो निष्पक्ष और गहराई से जांच करती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि CBI की शुरुआत कब और क्यों हुई थी? उसका पहला केस क्या था? आइए इस कहानी को विस्तार से समझते हैं.

  1. CBI का गठन 1963 में हुआ था
  2. LIC घोटाले से जुड़ा था पहला केस  

CBI की शुरुआत: एक जरूरी कदम
CBI की शुरुआत आजादी के बाद नहीं, बल्कि ब्रिटिश शासन के दौरान हुई थी. साल 1941 में Special Police Establishment (SPE) नाम की एक जांच एजेंसी बनाई गई थी, जिसका मकसद था दूसरे विश्व युद्ध के दौरान हो रहे भ्रष्टाचार और घोटालों की जांच करना. उस समय कई सरकारी कर्मचारी और ठेकेदार रक्षा सामग्री में धोखाधड़ी कर रहे थे.

इसके बाद आजादी के बाद भी इस एजेंसी की जरूरत बनी रही. भ्रष्टाचार के मामले बढ़ते जा रहे थे और एक स्वतंत्र, प्रभावशाली जांच एजेंसी की मांग तेज हो गई थी. इसके चलते 1 अप्रैल 1963 को भारत सरकार ने एक अधिसूचना जारी करके SPE का नाम बदलकर CBI (Central Bureau of Investigation) रख दिया. CBI को गृह मंत्रालय के अंतर्गत लाया गया और इसे भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी, हत्या, घोटाले जैसे गंभीर मामलों की जांच की जिम्मेदारी दी गई.

CBI की पहली जांच: किस केस से हुई शुरुआत?
CBI का पहला केस 1 अप्रैल 1963 को दर्ज हुआ था, जब इसे आधिकारिक रूप से गठित किया गया. पहला मामला था 'LIC घोटाला' यानी Life Insurance Corporation Scam. इस केस में LIC (भारतीय जीवन बीमा निगम) और कुछ निजी कंपनियों के बीच आर्थिक धोखाधड़ी की शिकायत थी. इसमें धन का गलत इस्तेमाल, मूल्य बढ़ाने की साजिश, और शेयर बाजार में हेराफेरी जैसे आरोप शामिल थे. यह केस दर्शाता है कि कैसे निजी और सरकारी संस्थाएं मिलकर जनता के पैसों से खेल कर सकती हैं, और CBI को इसे उजागर करने की जिम्मेदारी मिली. उसके बाद धीरे-धीरे CBI ने कई बड़े मामलों की जांच की, जैसे बोफोर्स घोटाला, हर्षद मेहता शेयर घोटाला, 2G स्कैम, निर्भया केस आदि.

CBI की शक्तियां और अधिकार
CBI को भारतीय दंड संहिता (IPC) और भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम (Prevention of Corruption Act) के तहत अधिकार प्राप्त हैं. हालांकि, इसे किसी राज्य में जांच करने के लिए उस राज्य की अनुमति लेनी होती है.

इसकी प्रमुख शाखाएं होती हैं:

Anti-Corruption Division

Economic Offenses Division

Special Crimes Division

इसके अलावा, कई बार सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के आदेश पर भी CBI किसी मामले की जांच करती है.

CBI पर सवाल और आलोचनाएं
CBI को लेकर कई बार यह सवाल उठता रहा है कि यह सरकार के दबाव में काम करती है. कई विपक्षी दल इसे 'तोते की तरह सरकार की जुबान बोलने वाली एजेंसी' भी कह चुके हैं. 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने भी एक टिप्पणी में यही बात कही थी. इसके बावजूद, जब भी कोई संवेदनशील और बड़ा मामला सामने आता है, तो देश की जनता CBI से ही निष्पक्ष जांच की उम्मीद करती है.

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