DNA में अब SIR मॉडल का देशव्यापी विश्लेषण. SIR यानी स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन. चुनाव आयोग की ओर से मतदाता सूची अपडेट करने के लिए ये अभियान इस वक्त बिहार में चल रहा है. SIR पर बिहार में जुबानी हिंसा देखने को मिली. कोई काले कपड़ों में दिखा तो कोई हेलमेट में, इस बीच मुख्यमंत्री ने काले कपड़ों का असली मतलब देश को बता दिया.
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SIR Row: चुनाव आयोग (ECI) जल्द ही पूरे देश में मतदाता सूची को अपडेट करने के लिए विशेष अभियान की शुरुआत करने जा रहा है. इसकी सियासी तपिश पटना से 1000 किलोमीटर दूर राजधानी दिल्ली में महसूस की जा रही है. इस वक्त संसद का मॉनसून सत्र चल रहा है. बिहार में भी मॉनसून सत्र चल रहा है. दोनों जगहों पर सदन के बाहर और भीतर SIR के ख़िलाफ़ ऐसा शोर हुआ कि सबकुछ ठप हो गया.
राहुल गांधी ने फाड़ा पोस्टर
संसद भवन के बाहर विपक्षी सांसदों ने गांधी प्रतिमा के पास पोस्टर बैनर के साथ नारेबाजी की. राहुल गांधी ने तो प्रतीकात्मक तौर पर SIR के पोस्टर को फाड़ डाला और उसे डस्टबिन में फेंक दिया. बिहार विधानसभा में मॉनसून सत्र के अंतिम दिन विपक्षी विधायकों ने आज भी काले कपड़े पहन कर प्रदर्शन किया और SIR को वापस लेने की मांग करते हुए नारेबाजी की.
देशव्यापी अभियान जल्द
लेकिन विरोध प्रदर्शन के बीच चुनाव आयोग ने ये साफ कर दिया कि बिहार के बाद पूरे देश में मतदाता सूची को अपडेट करने के लिए विशेष अभियान की शुरुआत करने जा रहा है. SIR यानी स्पेशल इंटेसिव रिवीज़न अभियान का पूरे देश के लिए शेड्यूल चुनाव आयोग जल्द जारी करने वाला है. चुनाव आयोग का कहना है कि मतदाता सूची को सही रखना. उनका संवैधानिक कर्तव्य है. इसलिए पूरे देश में विशेष अभियान चलाया जाएगा.
SIR क्यों जरूरी है?
SIR का विरोध, सियासी हंगामा, बयानबाजी अपनी जगह है. लेकिन आज देश के हर मतदाता को ये ज़रूर जानना चाहिए कि आखिर मतदाता सूची का विशेष जांच अभियान का उद्देश्य क्या है. चुनाव आयोग का संवैधानिक कर्तव्य है कि वो 18 वर्ष या उससे ज्यादा उम्र के तमाम नागरिकों की एक सटीक और अपडेट मतदाता सूची सुनिश्चित करे. जिसके लिए ज़रूरी है कि जिनकी मृत्यु हो चुकी है, उनके नाम हटाए जाएं, जिनके पास एक से ज्यादा वोटर कार्ड हैं, उनके नाम हटाएं, जिनके पास भारत की नागरिकता नहीं रही, उनके नाम हटाएं. या फिर कोई व्यक्ति किसी खास जगह से दूसरे जगह शिफ्ट हुआ हो तो उसका नाम वहां से हटाया जाए.
कब आएगी नई वोटर लिस्ट, जानिए
एक व्यक्ति, एक वोट के सिद्धांत को बनाए रखने के लिए ऐसा करना जरूरी है. इसकी ज़रूरत इसलिए पड़ी क्योंकि बिहार में आखिरी बार SIR यानी वोटर लिस्ट रिवीजन 2003 में की गई थी. चूंकि 3-4 महीने में बिहार में चुनाव होने हैं. इसलिए SIR करवाया जा रहा है.
बिहार में अभी मतदाता सूची की जांच की जा रही है. 1 सितंबर को मतदाता सूची प्रकाशित होगी. इसके बाद जिनके नाम छूट गए या कट गए, उन्हें अपील का मौका भी मिलेगा. लेकिन मतदाता सूची की जांच से पहले बिहार से लेकर दिल्ली तक सियासी पारा हाई है.
ये नागरिकता की जांच का जरिया?
जो इसका विरोध कर रहे हैं, उनका कहना है कि प्रवासी मजदूरों, छात्रों के लिए समयसीमा के भीतर ज़रूरी दस्तावेज जमा करना एक मुश्किल भरा काम है. विरोधियों का ये भी तर्क है कि आधार कार्ड को नागरिकता पहचान पत्र के तौर पर क्यों नहीं माना जा रहा है. विरोधियों को ये भी लग रहा है कि बड़े पैमाने पर प्रवासियों के नाम वोटर लिस्ट से बाहर हो जाएंगे. SIR विरोधियों का ये भी दावा है कि ये नागरिकता की जांच का जरिया बन रहा है. और इससे बड़े पैमाने पर लोग मताधिकार के अधिकार से वंचित हो सकते हैं.
#DNA | बिहार के सदन में 'हमला Vs हेलमेट'! बिहार में बढ़ती 'जुबानी हिंसा' का विश्लेषण
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— Zee News (@ZeeNews) July 25, 2025
लेकिन आज हम SIR विरोधियों को ये बताना चाहते हैं कि मतदाता बनने के लिए आखिर क्या ज़रूरी है. कोई भी भारतीय जन्म से या नागरिकता से वोट मतदाता नहीं होता है. इसके लिए उसे कुछ ज़रूरी शर्तें पूरी करनी होती है. बिहार को लेकर बीजेपी का दावा है कि मतदाता सूची की जांच से घुसपैठिये, बांग्लादेशी, रोहिंग्याओं के नाम वोटर लिस्ट से बाहर हो जाएंगे. लेकिन विपक्ष को लगता है कि ये पूरी कवायद सिर्फ और सिर्फ गरीबों को चुनाव में वोट देने से रोकने के लिए हो रही है. मतदाता सूची में अयोग्य व्यक्ति का नाम होना उतना ही गलत है, जितना कि योग्य व्यक्ति का नाम नहीं होना.
इसलिए स्पेशल इंटेसिव रिवीजन को लेकर विपक्षी पार्टियां अपने तरीके से मतलब निकालकर चुनाव आयोग और केंद्र सरकार पर निशाना साध रही है. लेकिन उन्हें ये साफ-साफ समझ लेना चाहिए कि अभी तो ये सिर्फ बिहार में हो रहा है. जल्द ही पूरे देश में चुनाव आयोग मतदाता सूची का इसी तरीके से निरीक्षण करेगी. जहां-जहां विधानसभा के चुनाव होने वाले होंगे. अगला नंबर शायद उन्हीं राज्यों का होगा.