Dadra and Nagar Haveli: भारतीय तारीख में दिलचस्पी रखने वाले लोगों को देश की हालात पर कई लंबे और जानकारी से भरपूर लेख पढ़ने को मिली हैं, जिनमें देश के अलग-अलग वक्त और हिस्सों के इतिहास का हवाला दिया गया है. लेकिन सच यह है कि हममें से ज्यादातर भारतीय अपने हाल की तारीख से भी अनजान हैं, पुरानी तारीख की तो बात ही छोड़िए. आज हम आपको ऐसी ही एक खूबसूरत यूटी की दिलचस्प कहानी बताएंगे.
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सोचिए, अगर कोई सरकार किसी भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारी को सिर्फ एक दिन के लिए किसी इलाके का प्रधानमंत्री बना दे, ताकि वह भारत में किसी इलाके के विलय का दस्तावेज़ (इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन) पर हस्ताक्षर कर दे, तो कैसी प्रतिक्रियाएं होंगी! यकीनन इसके खिलाफ भारी विरोध-प्रदर्शन, सुप्रीम कोर्ट में अपीलें और सोशल मीडिया पर तूफान मच जाएगा. लेकिन ऐसा हुआ है. यह कोई नई सनसनीखेज़ ख़बर नहीं है, बल्कि यह वह कहानी है जब दादरा और नगर हवेली भारत में शामिल हुआ था. पुर्तगालियों ने इन दोनों छोटे-छोटे इलाकों को छोड़ने से मना कर दिया था. इसी वजह से ये अनोखा तरीका अपनाया गया.
भारतीय तारीख में दिलचस्पी रखने वाले लोगों को देश की हालात पर कई लंबे और जानकारी से भरपूर लेख पढ़ने को मिली हैं, जिनमें देश के अलग-अलग वक्त और हिस्सों के इतिहास का हवाला दिया गया है. लेकिन सच यह है कि हममें से ज्यादातर भारतीय अपने हाल की तारीख से भी अनजान हैं, पुरानी तारीख की तो बात ही छोड़िए.
असल में ज्यादातर लोग यह जानकर हैरान होंगे कि भारत का नक्शा हमेशा बदलता रहा है. मिसाल के तौर पर आजादी के तुरंत बाद सरदार पटेल ने जूनागढ़ और हैदराबाद को भारत में शामिल करने में अहम भूमिका निभाई. जबकि, बाद में आंतरिक पुनर्गठन से भी कई बदलाव हुए औ गोवा, सिक्किम भी भारत का हिस्सा बने. लेकिन छोटा दादरा और नगर हवेली (DNH) भी आईन ( संविधान ) के दसवीं तरमीम (दसवें संशोधन) के तहत 11 अगस्त 1961 को एक केंद्र शासित प्रदेश के रूप में भारत में शामिल हो गया. ऐसे में चलिए जानते हैं तारीख में दर्ज उन दो छोटे-छोटे इलाकों में सालों पहले घटित हुई अनोखी घटनाओं के बारे में.
पश्चिमी भारत के कोने में जो कुछ हुआ, उसकी कहानी सचमुच हैरतअंगेज और दिलचस्प हैं. जून-अगस्त 1961 में देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की अगुआई वाली सरकार द्वारा डीएनएच के लिए निकाला गया अनोखा हल उतना ही अप्रत्याशित था जितना कि 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर में हुआ.
एक जिद्दी औपनिवेशिक ताकत का सामना करते हुए, गोवा के कौमपरस्त (राष्ट्रवादियों) ने अपना ध्यान दो छोटे-छोटे लैंड-बाउंड पुर्तगाली एंक्लेव की तरफ मोड़ दिया था, जो उस वक्त पूरी तरह से बॉम्बे राज्य से घिरे हुए थे,जो अब महाराष्ट्र और गुजरात के बीच मौजूद हैं.
गोवा की तुलना में पुर्तगालियों से दादरा और नगर हवेली (डीएनएच) को आज़ाद कराना आसान माना जाता था. इसलिए पुर्तगाल विरोधी कार्यकर्ताओं ने यहां खासकर आदिवासी बहुल गांवों और छोटे कस्बों में सभाएं कीं. लेकिन कई बड़े इतिहासकार डीएनएच की आज़ादी का ज़िक्र कम करते हैं. ऐसा इसलिए कि इसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की अहम भूमिका रही. पुर्तगाली इलाकों को आज़ाद कराने का आंदोलन 15 अगस्त 1947 से पहले ही शुरू हो गया था और हर साल तेज होता गया. राम मनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण जैसे नेताओं ने इस आंदोलन को मज़बूती दी. यहां तक कि गोवा की मशहूर गायिका लता मंगेशकर ने भी 1954 में पुणे में इसके लिए धन जुटाने वाले एक प्रोग्राम में गाया.
तारीख में दर्ज राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन संगठन (NLMO), आज़ाद गोमांतक दल (AGD) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के स्वयंसेवकों ने डीएनएच को मुक्त कराने के लिए एक सशस्त्र हमले की मंसूबा बंदी की. उन्होंने 1953 में इलाके की टोह ली और लोकल लीडरों से मुलाकात की और एक साल बाद प्रदेशों की मुक्ति के लिए संयुक्त मोर्चा का गठन किया. इस बीच, गोवा के संयुक्त मोर्चे (UFG) ने भी सरहद पार भारत के स्पेशल रिजर्व पुलिस बल के डीआईजी जेडी नागरवाला की मदद से ऐसी ही मंसूबाबंदी की गईं. 22 जुलाई 1954 को, यूएफजी ने दादरा के पुलिस स्टेशन पर हमला किया, जिसमें एक सब-इंस्पेक्टर की मौत हो गई. फिर इसके अगले ही दिन गोवा को एक स्वतंत्र देश घोषित कर दिया गया.
वहीं, 28 जुलाई 1954 को एजीडी के वॉलंटियर नरोली पहुंचे और पुर्तगाली पुलिसकर्मियों से सरेंडर करने का दरख्वास्त किया. उन्होंने ऐसा ही किया. यूएफजी, एजीडी और आरएसएस के भारत समर्थक 'हमलावरों' के हाथों गांव-गांव गिरते गए. 2 अगस्त 1954 को सिलवासा के 'पतन' के साथ ही दादरा और नगर हवेली एक आजाद मुल्क बन गया!
जबकि 1954 से 1961 तक, 'आजाद दादरा और नगर हवेली की वरिष्ठ पंचायत' का बोलबाला रहा और मामला अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) तक पहुंचा. अप्रैल 1960 में ICJ ने फैसला सुनाया कि दादरा और नगर हवेली पर पुर्तगाल का संप्रभु अधिकार है. इसके बाद, साफतौर से इस विवादास्पद स्पेशल स्टेटस के स्थायी समाधान का वक्त करीब आ गया था. चिंतित DNHI वासियों ने भारत से मदद मांगी और आईएएस अफसर केजी बदलानी को एडमिनिस्ट्रेटर बनाकर भेजा गया. इसके बाद सीनियर पंचायत ने बदलानी को प्रधानमंत्री नियुक्त किया, जिससे वे नेहरू के समकक्ष हो गए और 11 अगस्त 1961 को भारत में विलय के दस्तावेज़ पर कानूनी तौर पर साइन करने वाले बन गए!
1961 में जब गोवा भारत में मिला और दादरा-नगर हवेली भी जुड़ा तो पंडित नेहरू खुश थे. लेकिन दुनिया के देशों ने इसे 1974 में ही मान्यता दी. तब तक नेहरू समझ गए थे कि संयुक्त राष्ट्र में इस मामले को नहीं ले जाना चाहिए, वरना शायद हमें संविधान में एक और नया प्रावधान जोड़ना पड़ता. हालांकि, देश के नक्शे पर ये कोई पहली इस तरह की जगह नहीं है. पांडिचेरी और ऑरोविले की भी आज़ादी और विरोध की अपनी कहानियां हैं, जैसे सिक्किम और गोवा की. इन सबके लिए अलग और समझदारी भरे हल निकाले गए. गौर करें तो पिछले सात दशकों में भारत सरकार को खुदमुख्तारी ( संप्रभुता ) और शासन के ऐसे मामलों में जबरदस्त तजुर्बा और सफलता मिली है. खबर पढ़कर इसपर दो बढ़िया सा हेडलाइन दें