2006 Mumbai train blasts case: महाराष्ट्र सरकार ने क्या दी दलील? सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले पर लगाई रोक
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2006 Mumbai train blasts case: महाराष्ट्र सरकार ने क्या दी दलील? सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले पर लगाई रोक

2006 Mumbai Train Blast Case Update: 2006 मुंबई ट्रेन ब्लास्ट केस में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है. 19 साल पहले हुए भयानक घटना में 189 लोग मारे गए थे और 800 से ज्यादा घायल हुए थे, बॉम्बे हाई कोर्ट ने सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया था. जिसके बाद महाराष्ट्र सरकार इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट आ गई थी. अब इस मामले में बड़ा फैसला आया है. जानते हैं पूरी खबर.

2006 Mumbai train blasts case: महाराष्ट्र सरकार ने क्या दी दलील? सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले पर लगाई रोक

Supreme Court stays in 2006 Mumbai train blasts case: मुंबई में 19 साल पहले हुए ट्रेन ब्लास्ट मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. उस भयानक घटना के बाद, जिसमें 189 लोग मारे गए थे और 800 से ज्यादा घायल हुए थे, बॉम्बे हाई कोर्ट ने सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया था. जिसके बाद महाराष्ट्र सरकार को हाई कोर्ट का यह फैसला पसंद नहीं आया और मामले को सुप्रीम कोर्ट ले आई. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की कि हाई कोर्ट का फैसला गलत है. सुप्रीम कोर्ट ने 24 जुलाई 2025 को इस मामले की सुनवाई शुरू की.

हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को 2006 के मुंबई ट्रेन विस्फोट मामले में सभी 12 लोगों को बरी करने के बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है. महाराष्ट्र सरकार की इस चिंता को ध्यान में रखते हुए कि इस फैसले से महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के तहत लंबित कई मुकदमों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- हम फैसले को मिसाल नहीं बनने देंगे
हालांकि, शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि वह उन 12 आरोपियों की रिहाई पर रोक नहीं लगा रही है, जो इस सप्ताह की शुरुआत में बरी होने के बाद पहले ही रिहा हो चुके हैं. न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने सभी 12 आरोपियों को नोटिस जारी किए और राज्य की अपील पर उनसे जवाब मांगा है. 

महाराष्ट्र सरकार ने क्या दी दलील
महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाने का आग्रह किया, बरी किए गए लोगों की रिहाई के विरोध के आधार पर नहीं, बल्कि इसलिए कि फैसले में कुछ ऐसी टिप्पणियाँ थीं जो वर्तमान में विचाराधीन अन्य मकोका मामलों पर प्रभाव डाल सकती हैं. मेहता ने कहा, "मैं रिहाई के मुद्दे से अवगत हूँ. मैं उनकी रिहाई पर रोक लगाने की मांग नहीं कर रहा हूं. लेकिन हम चाहते हैं कि फैसले पर रोक लगाई जाए क्योंकि उच्च न्यायालय के कुछ निष्कर्ष ऐसे हैं जो अन्य लंबित मकोका मुकदमों को प्रभावित कर सकते हैं. इसलिए, इस विवादित फैसले पर रोक लगाई जानी चाहिए." इस तर्क को स्वीकार करते हुए, पीठ ने कहा कि अगले आदेश तक उच्च न्यायालय का फैसला मिसाल के तौर पर मान्य नहीं होगा.

यह घटनाक्रम महाराष्ट्र सरकार द्वारा बॉम्बे उच्च न्यायालय के 21 जुलाई के फैसले के खिलाफ त्वरित अपील के बाद आया है, जिसमें 2015 में मकोका की एक विशेष अदालत द्वारा 12 लोगों की दोषसिद्धि को पलट दिया गया था. इनमें से पांच को मौत की सजा और बाकी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी.

पीड़ितों के परिवारों को नई उम्मीद
इस फैसले ने पीड़ितों के परिवारों में नई उम्मीद जगाई है. कई लोग चाहते हैं कि असली गुनहगार पकड़े जाएं. वहीं, बरी हुए लोगों के परिवारों का कहना है कि उनके अपने बेगुनाह थे और 19 साल तक जेल में गलत सजा काटी. लेकिन कुछ लोग ये भी पूछ रहे हैं कि अगर ये 12 लोग गुनहगार नहीं थे, तो फिर असली दोषी कौन हैं?

आगे क्या होगा?
सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले को गहराई से देखेगा. क्या हाई कोर्ट का फैसला पलटेगा या बरकरार रहेगा, ये आने वाला वक्त बताएगा. ये मामला सिर्फ एक मुकदमा नहीं, बल्कि मुंबई के लोगों की भावनाओं और न्याय पर भरोसे का सवाल है.

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