Jamiat Ulema E Hind: 2 दिन पहले, यानी 21 जुलाई को बॉम्बे हाईकोर्ट ने सिस्टम की लापरवाही के कारण 2006 मुंबई लोकल ब्लास्ट के आरोपियों को बरी कर दिया. इन आरोपियों को जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने कानूनी मदद की थी. हमारे देश का संविधान हर आरोपी को अपने कानूनी बचाव का अधिकार देता है.
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Mumbai Local Blast Case: राजनीतिक लाभ के लिए कुछ लोग धर्मस्थलों को भी खास नजरिए से देखते हैं. ऐसे लोग अपने लाभ के लिए धर्मस्थलों में भी भेद करते हैं. यही भेद मतभेद और मनभेद को बढ़ाता है और विद्वेष को जन्म देता है. आज हम उस सोच का विश्लेषण करेंगे जो हर बात में धर्म देखती है. ये सेलेक्टिव सोच कितनी दूषित है, समाज के लिए कितनी खतरनाक है, अब वो समझिए.
2 दिन पहले, यानी 21 जुलाई को बॉम्बे हाईकोर्ट ने सिस्टम की लापरवाही के कारण 2006 मुंबई लोकल ब्लास्ट के आरोपियों को बरी कर दिया. इन आरोपियों को जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने कानूनी मदद की थी. हमारे देश का संविधान हर आरोपी को अपने कानूनी बचाव का अधिकार देता है. कोर्ट के फैसले के बाद पीड़ित परिवार सवाल पूछे रहे हैं आखिर उनके अपनों को किसने मारा. महाराष्ट्र सरकार आरोपियों को सजा दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट जा रही है.
धर्म के चश्मे से देख रही आतंकी घटना को
लेकिन आरोपियों की कानूनी मदद करनेवाली जमीयत-उलेमा-ए हिंद 187 निर्दोष लोगों की जान लेनेवाली इस आतंकी घटना को भी धर्म के चश्मे से देख रही है. जमीयत का आरोप है कि 2006 लोकल ब्लास्ट केस में जानबूझ कर मुस्लिमों को निशाना बनाया गया. मुसलमानों को बिना किसी ठोस सबूत के गिरफ्तार किया गया. 12 मुसलमानों को 19 साल अकल्पनीय उत्पीड़न, यातना और अन्याय सहना पड़ा.
2006 में महाराष्ट्र और केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी. इसलिए जमीयत कह रही है कि कांग्रेस मुसलमानों से माफी मांगे. बेशक जमीयत कांग्रेस से माफी मांगने की बात कर रही है. लेकिन जमीयत के निशाने पर देश का पूरा सिस्टम है. हालांकि जमीयत ने कांग्रेस पर जो आरोप लगाए हैं उसे लेकर कांग्रेस विरोधी पार्टियों के भी निशाने पर है.
ये कैसी सेलेक्टिव सोच है जमीयत की?
मुंबई रेल ब्लास्ट का केस अभी सुप्रीम कोर्ट में चलेगा. अब सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि आरोपी निर्दोष हैं या नहीं. लेकिन हम जमीयत की सोच पर चर्चा कर रहे है. ये कैसी सेलेक्टिव सोच है जो आतंकी वारदात में भी धर्म देखती है. सोचिए इस सेलेक्टिव सोच वाली जमीयत को आरोपियों का धर्म दिखता है. लेकिन धमाके में मारे गए 187 परिवारों का दुख नहीं दिखता है. जमीयत को इंसानियत नहीं दिखती है.
बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के बाद जमीयत को आरोपियों का चेहरा निर्दोष दिखता है. लेकिन जमीयत को ये नहीं दिखता कि इन्हीं आरोपियों को 11 सितंबर 2015 को स्पेशल कोर्ट ने दोषी ठहराया था. 5 दोषियों को फांसी और 7 को उम्रकैद की सजा सुनाई थी.
#DNAWithRahulSinha | मुंबई लोकल ब्लास्ट केस..टारगेट पर कांग्रेस! जमीयत ने कांग्रेस को टारगेट पर क्यों लिया?#DNA #MumbaiTrainBlast #Congress @RahulSinhaTV pic.twitter.com/SZNdW11JUQ
— Zee News (@ZeeNews) July 23, 2025
अपनी सेलेक्टिव सोच की वजह से जमीयत को सिर्फ 12 आरोपियों का परिवार दिखता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि वो मुसलमान हैं. लेकिन जमीयत को ब्लास्ट में मारे गए 187 निर्दोष लोगों का परिवार नहीं दिखता..क्योंकि ये परिवार जमीयत की खास सोच के लिए लाभकारी नहीं हैं.
जमीयत को सिर्फ मजहब दिखता है
जमीयत को जेल में रहे आरोपियों की पीड़ा अकल्पनीय दिखती है. लेकिन अपनों को हमेशा के लिए खो देने वाले 187 परिवारों का दर्द, गम और गुस्सा नहीं दिखता. काश जमीयत को पीड़ित परिवारों के आंसू दिखे होते. काश जमीयत के नेता पीड़ित परिवारों के आंसू पोंछने गए होते. उन्हें यकीन दिलाया होता कि बेशक ये आरोपी बरी हो गए हैं. लेकिन वो दोषियों को सजा दिलाने की कानूनी लड़ाई लड़ेंगे. अगर जमीयत के लोग ऐसा करते तो पीड़ितों को कितना संतोष होता. लेकिन जमयीत के नेता ऐसा नहीं करेंगे. क्योंकि उनकी सेलेक्टिव सोच और खास चश्मे में पीड़ित नहीं आरोपी ही फिट होते हैं. उन्हें दर्द और न्याय नहीं..महजब दिखता है.
ये पहली बार नहीं है जब जमीयत ने आतंकी वारदात के आरोपियों की कानूनी मदद की है. जमीयत ने इससे पहले भी अपनी सेलेक्टिव सोच में फिट होनेवाले आतंकी घटनाओं के आरोपियों की कानूनी मदद की थी. हाफिज सईद के आतंकी संगठन लश्कर से कनेक्शन के आरोपी अब्दुल रहमान की जमीयत ने कानूनी मदद की थी. कोच्चि में आतंकी संगठन ISIS की साजिश से जुड़े केस में जमीयत ने अर्शी कुरैशी और अन्य आरोपियों का कानूनी तौर पर साथ दिया. राजस्थान में ISIS से जुड़ा सिराजुद्दीन हो या चिन्नास्वामी स्टेडियम ब्लास्ट केस से जुड़ा कातिल सिद्दीकी हो..इनकी कानूनी मदद जमीयत ने की थी.
कब-कब दी कानूनी मदद?
पुणे के जर्मन बेकरी बम ब्लास्ट केस में आरोपी हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकी मिर्जा हिमायत बेग को 2013 में जमीयत ने मुफ्त में कानूनी मदद दी थी. इंडियन मुजाहिदीन से जुड़े अफजल उस्मानी की कानूनी मदद भी जमीयत ने की. जावेरी बाजार सीरियल ब्लास्ट केस, औरंगाबाद आर्म्स केस, अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट केस और 26/11 मुंबई आतंकवादी हमले जैसे हाई-प्रोफाइल मामले में जमीयत ने आरोपियों की कानूनी मदद की है.
आतंकी घटनाओं को भी अपने खास धर्म से चश्मे से देखनेवाली जमीयत ने आरोपियों की मदद के लिए 2007 में लीगल सेल बनाया था. तब से जमीयत अब तक आतंकी घटनाओं के 700 से ज्यादा आरोपियों की मदद कर चुकी है. चिंता की बात ये है कि जमीयत की कानूनी मदद से जैसे मुंबई लोकल ब्लास्ट के आरोपी बरी हुए हैं. वैसे ही कई अन्य आतंकी घटनाओं के आरोपी भी कोर्ट से बरी हो चुके हैं.
जमीयत का दावा है कि वो निर्दोष लोगों को न्याय दिलाने के लिए कानूनी मदद मुहैया कराती है. जमीयत का दावा है कि वो आतंकवाद के खिलाफ है. लेकिन एक सामान्य सवाल जरूर है कि जमीयत खास मामलों में और आरोपियों का धर्म देखकर ही कानूनी मदद क्यों करती है.
यही संकुचित और सेलेक्टिव सोच समाज में विद्वेष पैदा करती है. यही संकुचित और सेलेक्टिव सोच समाज में विभाजन पैदा करती है. खुद को राष्ट्रवादी मुस्लिम संगठन कहनेवाले जमीयत उलेमा-ए-हिंद को इस संकुचित सोच के दायरे से बाहर निकलना चाहिए. जमीयत को चाहिए कि वो अपराध और अपराधी को धर्म के चश्मे से ना देखकर कानून के चश्मे से देखे.