Kanwar Yatra Supreme Court Verdict: कांवड़ यात्रा रूट पर नाम डिस्प्ले वाले सरकारी आदेश का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. सुनवाई के दौरान एक समय जज साहब ने मार्क्स का भी जिक्र किया. आखिर में अंतरिम आदेश देने से मना कर दिया. याचिकाकर्ताओं ने इस फैसले पर सवाल उठाते हुए इसे हिंदू-मुस्लिम से जोड़ा था.
Trending Photos
Kawar Yatra: कांवड़ यात्रा नेम प्लेट विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान एक समय ऐसा आया, जब जज साहब ने कह दिया, 'हम ज्यादा कुछ नहीं कहेंगे. मार्क्स ने सही कहा है कि धर्म अफीम है.' अभिषेक मनु सिंघवी याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए. उन्होंने आरोप लगाया कि पिछले साल के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन हो रहा है. विवाद वेज और नॉन-वेज खाने के साथ दुकानदार की धार्मिक पहचान से जुड़ा है. आगे पढ़िए सुप्रीम कोर्ट में कांवड़ यात्रा रूट पर दुकानों के बाहर क्यूआर कोड को लेकर क्या दलीलें रखी गईं.
सिंघवी - कांवड़ यात्रा रूट पर दुकानों के बाहर QR कोड का मकसद दरसअल मालिक का नाम उजागर करना है. यह फैसला समाज को धर्म के आधार पर बांटने वाला है. ये समुदाय विशेष के लोगों को अछूत बनाने की कोशिश है. कावड़ियों को उनकी धार्मिक मान्यता के हिसाब से खाना मिलना चाहिए पर खाने की क्वॉलिटी का दुकान के मालिक के नाम से कोई सम्बंध नहीं है. खाने की क्वॉलिटी का सम्बंध उस दुकान के मेन्यू कार्ड से है.
जस्टिस सुंदरेश - अगर आप शुद्ध शाकाहारी हैं तो आप ऐसे होटल में जाने से इनकार कर सकते है जहां शाकाहारी और मांसाहारी दोनों खाना बिकता हो.
सिंघवी- उस दुकान के मेन्यू कार्ड से किसी को भी पता चल सकता है.
सिंघवी- कांवड़ यात्रा के दौरान रूट पर मौजूद सभी दुकानों पर वैसे भी शाकाहरी ही खाना मिलता है लेकिन अगर किसी को सन्देह है तो वह मैन्यू कार्ड से आसानी से चेक कर सकता है.
जस्टिस सुंदरेश- अगर कोई होटल सालभर सिर्फ शाकाहारी भोजन परोस रहा है तो कोई दिक्कत नहीं है. नाम उजागर करने की जरूरत नहीं है लेकिन अगर कोई होटल साल भर non-veg खाना परोसा रहा है और सिर्फ कांवड़ यात्रा के लिए VEG परोस रहा है तो ग्राहकों को इसकी जानकारी होनी चाहिए. कुछ तरीका होना चाहिए जिससे उनको यह पता लगे.
हुजैफा अहमदी- जो दुकानदार नॉन वेज परोस भी रहे थे, वे भी कावंड़ यात्रा के दौरान सिर्फ VEG ही परोसते हैं. मेरे विचार से उन्हें यह खुलासा करने की ज़रूरत नहीं है कि वे पहले Non veg परोस रहे थे.
हुजैफ़ा- दुकान के मालिक/ स्टाफ के नाम का, उसकी धार्मिक पहचान का फ़ूड की क्वॉलिटी से कोई संबंध नहीं है. इसके पीछे मकसद क्या है, ये आप समझ सकते हैं.
हुजैफ़ा- दुकान के अंदर अहम जगहों पर लाइसेंस लगा होता है. इस लाइसेंस से पता चल जाता है कि फूड कौन सा परोसा जा रहा है.
जस्टिस सुंदरेश- यह लोगों के माइंडसेट का मसला है. कुछ लोग चाहेंगे कि वे साल भर उस रेस्टोरेंट में खाएं जो सालभर वेज खाना ही परोसता हो.
हुजैफ़ा अहमदी- उदाहरण के लिए मैं बॉम्बे मार्ट से कोई बिजनेस शुरू करता हूं. सर्टिफिकेट में इसका नाम बॉम्बे मार्ट ही नज़र आएगा. बॉम्बे मार्ट/ हुजेफा नज़र नहीं आएगा. यहां सवाल किसी भी तरह दुकान मालिक के नाम उजागर करने का है. QR कोड के ज़रिए मकसद दुकानदार की धार्मिक पहचान को उजागर करना है.
अहमदी- कोर्ट को ऐसी किसी भी कवायद को बढ़ावा नहीं देना चाहिए जहां किसी समुदाय विशेष को धर्म के आधार पर अछूत करार देने की कोशिश हो।
जस्टिस सुंदरेश- हम ज़्यादा कुछ नहीं कहेंगे. मार्क्स ने सही कहा है कि धर्म अफीम है.
पढ़ें: 'धर्म अफीम जैसा काम करता है' ऐसा कहने वाले कार्ल मार्क्स कौन थे?
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि हमें पता चला है कि आज कावड़ यात्रा का आखिरी दिन है. इस स्टेज पर हम यह कहना चाहते हैं कि सभी होटल और रेस्टोरेंट लाइसेंस और रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट को डिस्प्ले करेंगे. बाकी मसलों पर अभी कोई अंतरिम आदेश हम नहीं दे रहे हैं.